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जो भाजपा के किसी नेता में नहीं वो असली हिम्मत वरुण गांधी में है : विपक्ष की भूमिका निभा रहे हैं वरुण गांधी, भाजपा का हिस्सा होकर भी अपनी ही सरकार पर सवाल उठा रहे हैं : Khabar 24 Express

असली नेता तो वही होता है जो गलत बात पर अपनी ही पार्टी पर सवाल खड़ा कर दे। जो जनता के मुद्दों को बेबाकी से उठा सके। इतना बेबाक कि उसे पार्टी से निकाले जाने का जरा भी डर न हो। वो अपनी ही पार्टी की सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ हो खड़ा सके। क्या ऐसा जनता का नेता संभव है?

वरुण गांधी भाजपा के एक ऐसे फायरब्रांड नेता हैं जो मोदी सरकार की नाम में दम कर रहे हैं। और फिर भी मोदी सरकार उनका कुछ नहीं कर पा रही है उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता नहीं दिखा पा रही है।

वहीं दूसरी ओर हिंदू-मुस्लिम विवाद, कश्मीर में आतंकवादियों द्वारा कश्मीरी पंडितों और दूसरे लोगों की निशानदेही हत्याओं और पैगंबर मुहम्मद साहब को लेकर दो भाजपा प्रवक्ताओं द्वारा की गई विवादास्पद टिप्पणी और उसके बाद अरब देशों की तीखी प्रतिक्रिया और उसके दबाव में बयान देने वालों के खिलाफ कार्रवाई के बावजूद देश के कई हिस्सों में हिंसा के बाद देश का माहौल सेना में नई भर्ती नीति अग्निपथ के विरोध की आवाजों से गर्म है। सरकार और सेना के अधिकारी विरोध की इस आंच पर अग्निपथ योजना के तमाम फायदों के छींटे डालकर उसे ठंडा करने की कोशिश की है।

इन सारे शोर शराबे के बीच नेहरू गांधी परिवार के तीनों सियासी वारिस यानी तीनों गांधीवीर राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और वरुण गांधी भी अपनी राजनीति के अग्निपथ पर चल पड़े हैं। राहुल और प्रियंका जहां पिछली कई चुनावी विफलताओं की लहरों के थपेड़ों से डगमगाती कांग्रेस की जर्जर नाव को संभालने में जुटे हैं, वहीं वरुण भाजपा के भारी भरकम जहाज पर सवार तो हैं लेकिन सियासी तूफान की तमाम चुनौतियों का सामना खुद करने के लिए उस जहाज से अगर कूदना भी पड़े तो उसकी तैयारी उन्होंने शुरू कर दी है। जहां राहुल और प्रियंका के पीछे पूरी कांग्रेस पार्टी की ताकत है, वहीं वरुण खुद अपनी ताकत बन रहे हैं और युवा राजनीति के एक नए ध्रुव के रूप में उभर रहे हैं। राहुल प्रियंका की बात को देश में दूर-दूर तक पहुंचाने के लिए कांग्रेस का पूरा सूचना और प्रचार तंत्र जुटा है। वहीं वरुण अपने अकेले दम पर एक तरफ अपनी ही पार्टी की सरकार से लगातार सवाल कर रहे हैं बल्कि सोशल मीडिया के जरिए अपनी बात भी सफलतापूर्वक लोगों तक पहुंचा रहे हैं। पिछले करीब डेढ़ साल से किसान आंदोलन से लेकर युवाओं के असंतोष तक को स्वर देने में वरुण ने अपनी अलग छाप छोड़ी है। वह युवा राजनीति का एक नया ब्रांड बनते जा रहे हैं।

पिछले कुछ सालों में बेरोजगारी ने युवाओं के भीतर जो तूफान पैदा किया है, केंद्र सरकार की सेना भर्ती की नई अग्निपथ नीति ने उस ज्वाला को और भड़का दिया। अब नेहरू-गांधी परिवार के ये तीनों गांधीवीर इस युवा तूफान को अपने साथ जोड़ने में जुट गए हैं। जहां कांग्रेस ने बेहद सियासी होशियारी से राहुल गांधी से प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की होने वाली पूछताछ को लेकर जो सत्याग्रह शुरू किया था, उसे अग्निपथ के खिलाफ आंदोलनरत अग्निवीरों के गुस्से से जोड़ने की कोशिश की है। वहीं वरुण ने न सिर्फ लगातार बेरोजगारी को लेकर अपनी ही पार्टी की केंद्र सरकार को सवालों के घेरे में लिया, बल्कि सोशल मीडिया पर अपनी आक्रामकता से बेरोजगारी को एक बड़ा मुद्दा बना दिया। जिसके दबाव में प्रधानमंत्री मोदी ने अगले एक साल में दस लाख सरकारी नौकरियां देने की घोषणा की। इसके लिए प्रधानमंत्री को धन्यवाद देने के बाद वरुण यहीं नहीं रुके। उन्होंने अग्निवीरों के मुद्दे पर अपना हस्तक्षेप लगातार जारी रखा।

पहले उन्होंने आंदोलनकारी युवाओं से शांति और अहिंसा का रास्ता अपनाने की अपील की, तो दूसरी तरफ पीलीभीत के भाजपा सांसद ने अपने ही दल के महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को उनके इस बयान पर आड़े हाथों लिया, जिसमें विजयवर्गीय यह कहते हुए सुने गए कि अगर भाजपा कार्यालय में सुरक्षा गार्ड रखने की जरूरत हुई तो वह सेना से आए हुए अग्निवीरों को प्राथमिकता देंगे। हालांकि इन मुद्दों पर राहुल और प्रियंका ने भी सोशल मीडिया के जरिए हस्तक्षेप किया लेकिन वरुण उनसे पहले बोले इसलिए आगे निकल गए। दरअसल युवा की नब्ज पर हाथ रखने का रास्ता वरुण गांधी ने पहले ही पकड़ लिया था। आरोपों और मांग की परंपरागत विपक्षी राजनीति से हटकर भाजपा सांसद वरुण गांधी ने एक नई राह चुनी। उनकी यह राह अपनी पार्टी भाजपा और अपनी खानदानी पार्टी कांग्रेस दोनों से अलग हटकर रही। वरुण का यह नया रास्ता खेतों-खलिहानों से होता हुआ नौजवानों के अरमानों तक जाता है और जिस तरह कभी उनके पिता संजय गांधी को कांग्रेस ने युवा ह्रदय सम्राट के रूप में पेश किया था, वरुण कुछ उसी तरह अब अपनी मेहनत से यह मुकाम हासिल करना चाहते हैं। अपने इस नए रास्ते पर चलते हुए वरुण न सिर्फ एक नजीर पेश कर रहे हैं बल्कि वह राजनीति में एक नई लकीर खींच कर अपनी भावी सियासत की जमीन भी तैयार कर रहे हैं।

दरअसल वरुण गांधी बेरोजगार युवाओं की आवाज बनकर आने वाली राजनीति में अपनी एक अलग पहचान बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

अगर वरुण की यह मुहिम कामयाब होती है तो नकारात्मक राजनीतिक माहौल में वह खुद को एक सकारात्मक राजनीतिक विकल्प के रूप में जनता के सामने पेश कर सकते हैं। इसके लिए उनकी पूरी कार्ययोजना है। अपने बड़े भाई राहुल और बहन प्रियंका से वरुण की पहल इसलिए भी अलग है कि जहां राहुल-प्रियंका मुख्य विपक्षी दल के नेता होने के नाते उनका हर बयान सरकार के विरोध में आना स्वाभाविक है, वहीं वरुण सत्ता पक्ष के सांसद होने के बावजूद अपनी ही पार्टी की सरकार से सवाल पूछने का साहस जुटा रहे हैं और इसके लिए वह कोई भी कीमत चुकाने के लिए भी तैयार हैं। दूसरे जहां युवाओं के मुद्दों पर राहुल और प्रियंका सिर्फ विरोध तक सीमित हैं वहीं वरुण बेरोजगार युवाओं को उनका लक्ष्य प्राप्त कराने में सीधे मदद देकर एक नई मिसाल भी पेश कर रहे हैं। इसलिए उनकी पहल में एक सकारात्मकता है।

किसान आंदोलन के दौरान अपनी पार्टी और सरकार की लाइन से अलग हटकर वरुण गांधी किसानों के साथ खड़े थे। वैसे भी ग्रामीण भारत की आर्थिक बदहाली पर उन्होंने कई साल पहले एक बेहद विस्तृत शोधपरक किताब रूरल मैनिफेस्टो (ग्रामीण घोषणा पत्र) लिखी है जिससे उनकी किसानों और गावों के विकास के लिए प्रतिबद्धता स्पष्ट है। लखीमपुर खीरी कांड के बाद तो वरुण अपने संसदीय क्षेत्र पीलीभीत में जाकर खुलकर किसानों का समर्थन कर आए थे।

पिछले कुछ समय से वरुण ने आर्थिक तौर पर कमजोर पृष्ठभूमि के छात्रों और बेरोजगार युवाओं के हक की आवाज उठानी शुरू की। एक तरफ तो वह लगातार ट्वीट कर बेरोजगार युवाओं के मुद्दों को सार्वजनिक विमर्श में लाते रहे हैं और उनके लिए बेहतर नौकरियों के अवसर खोलने की मांग करते रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ वरुण उन जरूरतमंद युवाओं की आर्थिक मदद भी कर रहे हैं, जो किसी कारणवश प्रतियोगी परीक्षा देने के लिए जाने में असमर्थ हैं। अग्निपथ विरोधी आंदोलन से पहले तक वरुण गांधी लगातार ट्विटर और फेसबुक के जरिए उन तमाम बेरोजगार युवाओं की मदद करते दिखाई दिए जो आर्थिक रूप इतने कमजोर हैं कि उनमें कई के पास तो सरकारी नौकरियों के आवेदन फार्म के साथ लिया जाने वाला शुल्क भरने के पैसे नहीं हैं। कई ऐसे हैं जो आवेदन तो कर सके लेकिन उनके परीक्षा केंद्र इतनी दूर हैं कि वहां तक जाने का रेल किराया भी जुटाना उनके लिए मुश्किल है।

Bureau Report : Manish Kumar Ankur

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