इस शरद पूर्णिमा दिवस पर इसकी महिमा को अपनी कविता में स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी इस प्रकार से कहते है कि,,
खिल उठा चांद चांदनी संग
शरद ऋतु की पूर्ण कर रात।
आज प्रेमिक पथिक पूर्ण हैं
षोड़श श्रंगारी दोनों मध्य बात।।
इसी प्रेम के दिव्य मिलन से
छींटकें ओसक प्रेम बूंदें।
जो पड़ें जगत में रसिक प्रेम पर
उन्हें दे चेतना प्रेम सुधे।।
प्रेम ही अमृत जीवन सरिता
जो पिये तो पाये जीवन तारण।
वही क्षीर बन खीर रसिक हो
हरे नाशक हो सर्व रोग कारण।।
ले जन्म वाल्मीकि पूर्णमासी
रची रामायण बन प्रेम अधीरा।
यो नाचे कृष्ण संग राधा
प्रेम रमणी गोपी ओर मीरा।।
आज काम बने मूलाधार ऊर्ध्व
खिल चतुर्थ कर्म धर्म रश्मि।
जप तप दान प्रेम चार पात
पल्लवित होकर चंद्र प्रभास्मि।।
जो आज रात साधक जागे
करें ध्यान अम्बर षोड़श पूर्णिमा।
उस तन छल मिट बल तत बढ़ता
मन भ्रांत शांत पाये नवधा गरिमा।।
जाग्रत हो सोलह चक्र वक्र
बैठ खुले में ले पूर्णिमा रश्मि।
निरोगी सुयोगी हो बने सिद्ध
कृपा सदा हो विष्णु प्रिया लक्ष्मी।।
ओर बांटे खीर पँचमेवा युक्त
मिटे सभी पाप दोष भुक्त।
करें सोलह पूर्णमासी व्रत
मोक्ष मिले स्वगत हो पूर्णिमाँ मुक्त।।
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी
Www.satyasmeemission.org