शरद पूर्णिमा के दिवस पर मीराबाई जन्मोदिवस यानी जयंती पर उनके प्रेम भरे जीवन दर्शन की स्थिति को बहुत ही उच्चतर आध्यात्मिक महाज्ञान भरी कविता कहते हुए स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी सत्यास्मि सत्संग में कहते है कि,,,
धर्म चाहे कोई हो
प्रश्न सभी में एक।
कौन हूँ मैं?यही खोजता
धर्म पथिक चले अनेक।।
भक्ति प्रारम्भ कहीं से हो
मेरे पिता पति माँ कौन?
कहाँ है मेरा प्रेम अंत
पा बचता शेष है कौन??
प्रेम पथिक मीरा कथा
जहाँ प्रेम में ईश है वर।
मेरे तो गिरधर गोपाल
मांगू ना दूजे वर।।
भोज संग विवाह हुआ
यहाँ बटा प्रेम बन द्धैत।
भोज या कृष्ण कौन पति
मैं किसकी कौन मेरा अद्धैत।।
यहीँ छिपा है रहस्य प्रेम
कैसे चुनाव किया एक प्रेम।
पति भोग में सुख नही
कैसे कृष्ण योग में प्रेम।।
रात बिताये भोज संग
संग बीते कृष्ण दिन।
भोग योग मध्य चैन गया
विरह छोभ में बीते दिन।।
प्रथम अंतिम प्रेम कौन
और प्रेम कौन है मध्य?
और इस बीच प्रेम पाये कौन
मीरा प्रेम द्धंद इस मध्य।।
यही चिंतन बन साधन प्रेम
और पाया कृष्ण प्रेम।
अब भोज भी कृष्ण ही लगे
घटा भोग रास बन प्रेम।।
तन मन आत्मा कृष्ण अर्पित
इसे भोगे कोई भी रूप।
जो भोगे वही कृष्ण है
कृष्ण भोज रूप में रूप।।
अब बचता यहाँ एक ही
अंदर बाहरी प्रेम।
भोज विलिन कृष्ण हुए
शेष कृष्ण अशेष प्रेम।।
जब अभेद अवस्था ये बनी
सब रूप हुए बस एक।
विष भी अमृत बन गया
पंचतत्व हए सब एक।।
पँच चक्र से ऊपर पहुँची
छटे चक्र में स्थित मीरा।
कौन बताये अब शेष कौन है?
मुझमे कृष्ण या कृष्ण में मीरा।।
यहीँ गुरु की खोज है होती
और योग भोग भक्ति का अंत।
यहीँ गुरु की शरण परम् है
श्री गुरु महिमा यहीँ अनंत।।
मीरा काल में अनेक गुरु थे
कबीर सूर और अनेक।
इन्हें चुना नही क्यों मीरा ने
यहाँ छिपा है रहस्य अनेक।।
सूरदास थे भक्ति साधक
कबीरदास भी ज्ञान रसिक।
पँच चक्र तक इनकी क्रिया
छट चक्र के ये सभी पथिक।।
कोई कृष्ण की भक्ति डूबा
कोई गुरु महिमा गाये।
अभी झलक इन्हें आत्मतत्व देखी
ये सारे थे भक्ति बौराये।।
तब एक गुरु ही शेष था ऐसा
जो स्थित था निज में शेष।
गुरु यही चुन मीरा पहुँची
रविदास शरणं अशेष।।
रात्रि पहर रविदास घर
मीरा खटखटाये रवि दर।
प्रश्न हुआ तू कौन है ?
यही जानने आई इस दर।।। छटा चक्र तब यो खुला
शिष्य में गुरु हुया प्रवेश।
तीन वचन में सब पूर्ण हुआ
मीरा प्रेम पायी अशेष।।
प्रथम प्रश्न तेरे संग कौन
क्रष्ण संग क्यूँ है मूरत?
अंदर बाहर जब एक है
समझ छूटी कृष्ण मूरत।।
दूजा प्रश्न तुझमे कौन
तू या कृष्ण इष्ट।
एक रह बस तू या वो
यहाँ मीरा मिट रहा इष्ट।।
तीजा प्रश्न अब कौन तू
तू या कृष्ण शेष।
समा गया कृष्ण में कृष्ण
बिन मीरा कृष्ण अशेष।।
छठे चक्र की स्थिति यही
सप्तम प्रेम प्रवेश।
कोई विरल पहुँचे वहाँ
जो पहुँचे वही बन शेष।।
रविदास यहाँ मात्र साक्षी
मीरा कृष्ण द्धैत।
रविदास मात्र गुरु द्रष्टा पद
वे सिद्ध नही अद्धैत।।
भक्त विभक्त की स्थिति
है छठे चक्र तक मात्र।
मीरा चैतन्य कबीर और
ये सिद्ध सप्तम चक्र नही पात्र।।
लीन किसी में मैं हो
या कोई लीन हो मैं।
सब छठे सप्तम चक्र मध्य
जहाँ चक्र गुरु बन अहं।।
अवतार ही सप्तम और परे
वो सबका पूरक मैं।
वो मैं रहे मैं रहित बन
वही स्वयं सभी का अहं।।
अवतार कभी ना ये कहे
मैं किसी का हूँ अवतार।
जन जन उसके कर्म से
करे सिद्ध सत्यअवतार।।
ना वो कहता मैं राम हूँ
ना कहता हूँ मैं क्रष्ण।
ना कहे वो मैं वही हूँ
बस जीये वर्तमान कर अर्पण।।
यहीँ गुरु बनता मैं
और जनता मैं की सृष्टि।
लय प्रलय सृष्टि कर
मैं मोक्ष ज्ञान की वृष्टि।।
तब स्थित हो मैं सत्य में
अहम् सत्यास्मि शेष संकल्प।
अहं रहित रह और प्रेम परे
एकत्व मौन निर्विकल्प।।
इस रहस्य भरे सत्संग को बारम्बार पढ़े और तभी संसार के प्रेम और आत्म या इष्ट प्रेम और प्रेम परे का सत्य रहस्य समझोगे यो पढ़ो
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी
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