इस दिन शाखाहारी दिवस और ऑल संयासी दिवस भी मनाया जाता है,,
इस दिवस पर अपनी कविता के माध्यम से स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी लेखन की नवीन व्रद्धि ओर स्वयं व सामाजिक लाभ के पाने के साथ साथ क्या आत्मिक विकास होता है इस सम्बन्धित अपनी कविता लिखते हुए लेखक बनने को प्रेरित करते हुए कहते है कि,,
आत्मा की शाब्दिक अभिव्यक्ति मन है
ओर मन सभी आत्म इच्छाओं का नाम।
शब्द उन संसार अध्यात्म इच्छित विचारों को
अभिव्यक्त करते लेखन बन अविराम।।
लेखक ब्रह्मा नाम अर्थ है
पहले इच्छा करता नव सृष्टि।
तदुपरांत ब्रह्म शब्द बोलता
उस शब्दों को दे जीवन करता जीवित सृष्टि।।
जीवन के सभी सम्बन्ध पहलू
अनुभव और होने करने की इच्छा।
वही ढलते शब्द व्यंग्य भाव तरंग बन
कर्मी हाथ लेखन जन कागज पे सुशिक्षा।।
खोल देता लेखक अपने आत्म भाव
कुछ रखता नहीं शब्द शेष।
जो लगती कल्पना सहज कठिन
वो सच्च हुई होती आज बन भेष।।
यो घुटो न घोटो मन उमंग
उन्हें शब्द दे ढालों अपनी भाषा।
उडेलो उन्हें कागज के कर्मक्षेत्र
खड़ा कर लड़ाओ शब्द युद्ध आशा।।
विजयी बनाओ भावना दे अस्त्र
ओर पहनाओ उन्हें नवरंगी वस्त्र।
जँचा दो उन्हें गर्वित सत्यप्रभा सूर्य
मिटा दें अंध स्वं औरों के मन तन प्रकाशे नस्त्र।।
यो आज लेखक दिवस मनाओ
कर मन अभिव्यक्त कागज पर भाव।
यो लिखो कविता ज्ञान की गीता
जला शब्दों के दीप मिटा मन अंध अभाव।।
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी
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