पितृ पक्ष की शुरुआत हो गई है। ऐसे में अक्सर कई लोगों को अपने पूर्वजों के सपने भी आते हैं। वे सपने में उन लोगों को देखते हैं, जो मर चुके हैं। श्राद्ध के दिनों में सपने आने को पूर्वजों के तर्पण से जोड़कर देखा जाता है।
इन सबको लेकर जगतगुरु स्वामी सत्येंद्र जी महाराज पितृपक्ष का महत्व बताया रहे हैं, और साथ ही बता रहे हैं कि इन पितृपक्षों में क्या करें क्या न करें।
सद्गुरु स्वामी सत्येंद्र जी महाराज के अनुसार भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर अश्विन अमावस्या तक श्राद्ध कर्म किए जाते हैं। 15 दिन तक चलने वाले इस विशेष अवधि की शुरुआत इस बार 2 सितंबर से हो रही है। श्राद्ध को पितृ पक्ष और महालय के नाम से भी जाना जाता है।
स्वामी जी के अनुसार हमारे पूर्वज जिनका देहान्त हो चुका है, वे श्राद्ध पक्ष में धरती पर सूक्ष्म रूप में आते हैं। इसलिए पितृपक्ष में पृथ्वी पर आए पितरों का तर्पण किया जाता है। माना जाता है कि जो लोग अपने पितरों को याद करते हैं, उनके यहां हमेशा सुख शांति बनी रहती है। वहीं जिस तिथि को पितरों का देहांत होता है उसी तिथि को पितरों का श्राद्ध किया जाता है।
भाद्र कृष्ण प्रतिपदा तिथि से हर साल पितृ पक्ष का आरंभ होता है। इस वर्ष भी पितृपक्ष (श्राद्ध पक्ष) 2 सितंबर से शुरू हो रहा है। पूर्णिमा श्राद्ध 2 सितंबर को होगा लेकिन पितृपक्ष के सभी श्राद्ध 3 सितंबर से ही आरंभ होंगे जो 17 सितंबर विसर्जन तक चलेंगे। धार्मिक मान्यता के अनुसार, पूर्वजों की आत्मा की शांति और उनके तर्पण के निमित्त श्राद्ध किया जाता है।
आज की पूर्णिमा रात्रि में 12 बजे से लेकर प्रातः तक आये जो भी स्वप्न, उसका अर्थ लगाएं और विशेषकर, इस रात्रि में जो भी आपका पितृ स्वप्न में दिखें, तो जाने की आपको उसी पितृ के लिए जप ध्यान दान करना है।
और जो पितृ नहीं दिखें तो, पक्के तौर पर जाने कि, वो आगामी जन्म लेकर आपसे उसका कोई नाता नहीं है। यानी उस पितृ का न तो आपसे शत्रुता है और न ही मित्रता है, उसके लिये जप तप दान करना व्यर्थ ही होगा। चाहे वो आपका ननसाल के पितृ हो या अपने वंश कुल के पितृ हो।
ध्यान रहे केवल और केवल जो भी पितृ इस पितृपक्ष में दिखाई दें वो चाहे जीवित परिजन या परिचित के साथ दिखें, उन पितरों के लिए जप तप दान करना है।
परिचितों जीवित व्यक्ति या अपने परिचित परिजनों या मित्रों, शत्रु के साथ अनजाने लोग दिखे, जिन्हें आप जानते नहीं तो वे आपके भूले बिछड़े और ऐसे पितृ हैं जो आपके पूर्वज है, या उनके लिए भी इन दिनों में कभी भी किसी भी समय, अपने सीधे हाथ में गंगाजल लेकर सादा भाषा मे संकल्प बोले कि, हे,, मेरे पितरों मेरे द्धारा किसी भी प्रकार का कोईं भी जाने अनजाने में पाप दुःखद कर्म हुआ हो, वो आप क्षमा करें और मेरे द्धारा किये अपनी सामर्थ्यानुसार जप ध्यान दान को स्वीकार करते हुए मुझ पर अपनी कृपा करें। मेरी मनोकामना पूर्ण करें।
और जप अपने सीधे हाथ की ओर पृथ्वी पर छोड़ दें।गुरु मंत्र का जप करते हुए रेहि क्रियायोग करते रहें। आपका जप तप स्वयं ही उन पितरों को पूरा का पूरा प्राप्त होगा।
चाहे तो, आप 15 व 16 वें दिन तक घी या तिल के तेल की अखण्ड ज्योति अपने पूजाघर में जला सकते है।
आपने गुरु व इष्ट मन्त्र से दिन में रात्रि के किसी भी समय मे यज्ञ अवश्य करें और चतुर्थी व अष्टमी व इंद्रा एकादशी और अमावस्या हो तो अवश्य ही जितना अधिक से अधिक हो तो यज्ञ करें।
एक मन्त्र उच्चारण के बाद सामान्य सामग्री डालते हुए यानी हर एक माला के अंत मे बना कर रखी खीर में से एक चम्मच खीर की आहुति यज्ञ में देते रहें।
इन पितृपक्ष में पितरों के लिए कोई अलग से भिन्न जप करने की जरूरत नहीं है। केवल अपना गुरु मंत्र ही सबसे महान कल्याणकारी है। केवल उसे ही करें
और जिन पर गुरु मन्त्र नही है,वे
चाहे तो महागुरूमन्त्र- “सत्य ॐ सिद्धायै नमः ईं फट स्वाहा” का जप कर सकते है। ये गुरु आज्ञा से तुरन्त फलित कृपालु महामंत्र है।
अन्यथा,,
ॐ श्री गुरुवे नमः की एक माला करने के बाद में, फिर ॐ श्री पितरायै नमः का जप सवा लाख या तीन लाख जप करें।
इन पितृपक्ष में नित्य प्रतिदिन किसी भी समय, जो भी मांगने आये या मन्दिर के पुजारी या दानपात्र में या गुरु आश्रम में जो बने दान अवश्य करें।
इन पितृपक्ष के 15 दिनों में कम से कम जप माला से अपने गुरु मन्त्र के सवा लाख या सवा तीन लाख जप अवश्य करें।
वैसे सबसे उत्तम है रेहीक्रियायोग करना। उससे स्वयं ही बिन यज्ञ व अनुष्ठान आदि के सर्व पितरों को स्वयं ही जप तप पहुँच जाता है।
और रेही क्रिया योग के बाद दैनिक रूप से जो बने अपना दान करें।
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
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