
शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें प्रदेश के अंदर डीजे बजाने पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी गई थी।
साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने शादी या अन्य समारोहों में डीजे चलाने वालों को अदालत ने वैवाहिक सीजन की शुरुआत से ठीक पहले उत्तर प्रदेश सरकार को नियमों के तहत इन लोगों को डीजे चलाने की इजाजत देने का आदेश दिया है।

बता दें कि 20 अगस्त को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ध्वनि प्रदूषण के मद्दनेजर राज्य में डीजे चलाने पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने कहा था कि डीजे से तेज आवाज में निकलने वाली ध्वनि लोगों के स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा है, खासकर बच्चों के लिए। हाईकोर्ट ने कहा था कि अगर डीजे न्यूनतम आवाज में भी बजाई जाए, तो भी वह नियम के तहत तय स्वीकृत डेसीबल रेंज से अधिक होती है।
लेकिन आज सुप्रीमकोर्ट ने डीजे संचालकों को आज़ादी दे दी है कि वे कहीं भी डीजे बजाएं, कितनी तेज़ आवाज में बजाएं।
अब यहां पर सुप्रीमकोर्ट के फैसले में विरोधाभास है।
सद्गुरु स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज ने सुप्रीमकोर्ट के इस फैसले पर विरोध जताया है। स्वामी जी ने सरकार व सुप्रीमकोर्ट से कुछ सवाल किये हैं जो वाजिब भी हैं।
स्वामी जी का कहना है कि….
सुप्रीम कोर्ट का डीजे बजाने पर आज जो फैसला आया है, क्या उस फैसले में डीजे बजाने की परमिशन दी गयी? इसका क्या अर्थ है?

मतलब जाओ, खूब ध्वनि प्रदूषण फैलाओ?
लोगों की नींद छीन लो, उनका सोना हराम कर दो?
लोगों के ब्लड प्रेशर बढा दो?
पढ़ने वाले बच्चों को पढ़ने से रोक दो, कि उनके दिमाग पर बुरा असर पड़े और वे दिन में स्कूल में पढ़े, तब खूब डीजे बजाओ और जब उनका घर पर अपनी देंनिक स्टडी करने का वक़्त हो और पेपर की तैयारी करें, तो उनकी एकाग्रता भंग करके उन्हें फेल हो जाने दो?
अस्पताल में रोगी जो अपने कष्टदायक रोगों से, डिप्रेशन से परेशान होकर कष्ट पा रहे हैं, दिल के मरीज हैं, उनके अस्पताल के पास में जाकर यात्रा, बरात निकालें और खूब डीजे बजाकर उन्हें और डिप्रेशन में पहुंचा दें, दिल के मरीज को हार्टअटैक दे दें? मरीज अंत मे स्वस्थ होने के बजाय डीजे के बजने से आई अशांति से घुट-घुट कर मर जाये?
कुछ हजार लोगों के डीजे व्यवसाय से पल रहे परिवार की आय वृद्धी के लिए सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला आज दिया है उससे समाज के करोड़ो लोगों की जिंदगी को नरक बनाने का आदेश देकर क्या सिद्ध किया है?
आखिर ये कुछ हजार ध्वनि प्रदूषण के फैलाने वाले, तेज़ आवाज से लोगों को आतंकित करने वाले, सुप्रीम कोर्ट के इस सामाजिक विरोधी निर्णय से अपनी रोजी रोटी चलाने के नाम पर ध्वनि प्रदूषण, नियम के शांति पक्ष को भंग करके क्या सिद्ध करना चाहते हैं, जिसमे सुप्रीम कोर्ट भी इनका साथ दे रहा है?
क्या अब शांति चाहने और शांति से जीने वाले लोग भी अपना सामूहिक चंदा करके, सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के खिलाफ जाकर केस लड़ें? कभी सुप्रीम कोर्ट इन ध्वनि प्रदूषण वालों के पक्ष में निर्णय दे देता है, तो कभी ध्वनि प्रदूषण नहीं चाहने वाले लोगों के पक्ष में!!
आखिर न्याय का सच्चा चेहरा और न्याय का सच्चा पक्ष क्या है?
कौन करेगा इस बात का सच्चा निर्णय कि क्या सही और क्या गलत है?
ये समाज या ये चंद लोग?
सोचो !! क्या आप खुद ध्वनि प्रदूषण से मरना चाहते हैं? या इसके खिलाफ एक सँगठित आंदोलन करना चाहते हैं?
और इस विषय पर प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार खामोश क्यो बैठी हैं?
सरकारें किस बात का इंतजार कर रही हैं कि लोग बहरे, भर्मित, कम बुद्धि के और रोगी होकर मरने लगें तब लीगल एक्शन लेगी?
आखिर सामाजिक उत्थान और शांति के विषय मे राज्य और केंद्र सरकार क्या कदम उठा रही हैं?
या आप सामाजिक लोगों को अपनी अपनी ओर से पहल करके शीघ्र ही इस विषय पर कानूनी याचिका कोर्ट में डालनी चाहिए? तब रुकेगा ये ध्वनि प्रदूषण?

स्वामी जी ने कहा कि वे डीजे पर पाबंदी के खिलाफ नहीं हैं.