श्री सत्येन्द्र जी महाराज गीता के कुछ ऐसे अनसुलझे रहस्यों को बता रहे हैं जिन्हें जानने के बाद आप जीवन की बहुत सारी कठिनाइयों को दूर कर सकते हैं।
आपने शायद ही पढ़ा होगा कि गीता में योग क्रिया का भी उल्लेख है, न केवल उल्लेख है बल्कि योग क्रिया की बहुत सारी विधियां बताई गयी हैं।
श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज आज उन योग क्रियाओं का उल्लेख विस्तारपूर्वक कर रहे हैं जिन्हें जानकर आप फायदा उठा सकते हैं।
“गीता” में जो क्रिया योग विधि छिपा दी है, उसे क्रिया योग के जिज्ञासुओं के लिए, यहाँ आपको सत्यसाहिब स्वामी सत्येंद्र जी महाराज सच्ची महाक्रिया योग विधि बता रहे है:-
गीता में योगी होने के लिए केवल ॐ जप के साथ सीधे बैठकर अपनी नासाग्र के छोर पर अपनी दोनों द्रष्टि एकाग्रता से जमाते हुए एक अपरिमित ज्योति को ध्याने का क्रिया योग बताया है।जो की वहाँ से पूरा क्रिया योग को लोगों से छिपा दिया गया,यो वो गीता में अधूरा है, क्योकि ये क्रिया योग गुरु के बताये अनुसार उसके सानिध्य में करने का नियम है,गुरु अपनी शक्तिपात से शिष्य का बाहरी मन को अंतर्मुखी करके योग दीक्षा देता है और नीचे बताई क्रिया योग विधि को उसके अनेक स्तरों के साथ बताता है की-कब क्या होगा..यो शिष्य उसी अनुसार योग की इस क्रिया को करता हुआ,योगी बनता है।यो इसी क्रिया योग विधि को बताने के कथित योगाचार्य शिष्यों से बहुत धन लेते है,और महावतार बाबा जी और उनके शिष्य योगी श्यामाचरण लाहड़ी आदि के योग के नाम पर या श्री कृष्ण के योग के नाम पर,या हिमालय के गुप्त योगी की गुप्त साधना के नाम पर भक्तों को यही योग सिखाते है।जो की सच्चे रूप में इस प्रकार से है…
क्रिया योग विधि:-
इस योग के 5 भाग है जो इस प्रकार से है-1- सबसे पहले कुछ क्रिया का अर्द्ध पश्चिमोत्तासन में बैठकर अभ्यास किया जाता है,इसके बाद बाकि योग ध्यान को पद्मासन में बैठकर अभ्यास किया जाता है।जिन पर अभी पद्मासन नही लगे,तो वे सहज आसन यानि पलोथी मार कर बेठे -3-मूलबंध-4-इसे मनोयोग प्राणायाम कहते है यानि केवल मन से की जाने वाली चिंतनात्मक क्रिया-5-दोनों नेत्रों की दृष्टि आँख बन्द करके अपने आज्ञाचक्र में एक ज्योतिर्मय बिंदु को देखते हुए एकाग्र करना,इसे योनि मुद्रा कहते है।-5-अपनी जीभ की ऊपर के खड्डे यानि तालु में लगाये रखना,जिसे तालव्य योग मुद्रा कहते है।यो इन 5 मुद्राओं के साथ ये क्रिया योग किया जाता है।
अभ्यास कैसे करें:-
प्रातः शौच आदि से निवर्त होकर बैठ जाये और पहले अपना सीधा पैर अपने सामने अर्द्ध पश्चिमोत्तसान की भांति फेला ले, जिसमें उल्टा पैर आपके मूलाधार और सीधी जांघ पर लगा रहे,अब 7 बार गहरे साँस पेट तक खिंच कर ले ओर छोड़े अब आठवां साँस गहरा लेकर अपने सामने की और फैले अपने सीधे पैर के अंगूठे सहित अँगुलियों को पकड़े, यदि ऐसा अभ्यास अभी नहीं हो तो अपने घुटने को ही पकड़ कर आगे की और झुके,यहां अपनी जीभ को अपने ऊपर के तालु में लगा ले और अपने दोनों नेत्रों को अपने आज्ञा चक्र में एक ज्योतिर्मय बिंदु की कल्पना में केंद्रित करें,
यहाँ मुख्य कार्य और क्रिया ये करनी है की-जब साँस भरे तो अपना मूलबन्ध ऐसे लगाये, की-जेसे की व्यक्ति जब पेशाब करते में अपनी जनेंद्रिय को सिखोड़ता है ठीक वैसे ही यहाँ मूलबन्ध लगाना है और मूलबन्ध लगाते ही उस समय इस मूलबन्ध के लगने के धक्के यानि झटके से जो मूलाधार चक्र में से जो प्राणों का स्पंदन या प्राणों का स्पर्श का अहसास ऊपर को उठेगा या लगेगा,उसे ही अपनी रीढ़ की हड्डी में चढ़ाते हुए मन की आँखों से देखते और अनुभव करते हुए अपने आज्ञा चक्र से गुजारते हुए बाहर आकाश में फेंक दें,यहाँ मूलबंध ढीला नहीं पड़ना चाहिए और बार बार उसे कसते रहने के प्रयास के धक्के से ही मूलाधार से प्राणवायु रीढ़ की और अपनी तरंग फेंकेगी या ऊपर उठने का अहसास देगी
और अब ऐसा जबतक रुका जाये उस अवस्था में रुके और इसके बाद अब मूलबन्ध खोलते हुए पैर को हाथों से छोड़ते हुए सीधे बैठ जाये,अब इसी पैर की और से फिर से पहले जैसा ही 7 बार ये सारी क्रिया करें और अब क्रिया बदलकर, ठीक ऐसी ही क्रिया अपने दूसरे पैर उलटे पैर को अपने सामने फैला और हाथों से पकड़ कर गहरी साँस खींचकर ठीक वेसा ही मूलबन्ध लगाकर प्राणों की ऊर्जा को मूलाधार से बार बार मूलबन्ध को कसने के झटके देकर उठाते हुए, अपने आज्ञा चक्र से गुजारते हुए बाहर आकाश में फेंक दें।यहाँ अपने नेत्र अपने आज्ञा चक्र में एक ज्योतिर्मय बिंदु को स्मरण करते हुए देखना है,नेत्रों को ऐसे रखने की ये अवस्था “योनि मुद्रा” कहलाती है और अपने सामने पैर फेलाकर मूलबन्ध लगाने की मुद्रा को “महामुद्रा” कहते है और मूलाधार से जो प्राण शक्ति को मूलबन्ध लगाकर रीढ़ में व्याप्त चक्रों से गुजारने की मन ही मन कल्पना का चित्रण अभ्यास किया जाता है,उसे “मनोमय प्राणायाम” कहते है और जब अपने पेरो को सामने पकड़ते झुकते है तब अपनी जिव्हा जीभ को अपने मुख में ऊपर के जबड़े के बीच में एक गढ्ढा होता है उसमें लगाने के अभ्यास को “तालव्य योग” या “तालव्य मुद्रा” कहते है।यो ये पांच मुद्राए मिलकर ही क्रिया योग कहलाता है।और “पद्मासन” भी पांचवी मुद्रा कहलाता है।अब इसे पद्मासन में भी सीधे बैठकर किया जाता है,इस अवस्था में भी पहले की तरहां ही 7 बार साँस खींचे और सहजता से छोड़े और आठवी साँस गहरी लेकर और वहीं साँस को खींचकर रोककर अब अपने गुरु मंत्र का जप करते हुए या केवल ॐ का जप करते हुए और मूलबन्ध लगाकर उसके कसने के बार बार प्रयास से, मूलाधार चक्र से प्राण वायु को रीढ़ में मनोयोग से चढ़ाते हुए अपने आज्ञाचक्र से बहिर आकाश जिसे “चिद्धाकाश” कहते है वहाँ फेंका जाता है,इससे के निरन्तर अभ्यास से साधक का प्राण शरीर यानि सूक्ष्म शरीर आज्ञाचक्र से निकल कर अलग होना प्रारम्भ होता है और यही मुख्य योग है और इसके बाद तो सभी चमत्कार होने प्रारम्भ होते जाते है।करो और देखो।इस योग के लिए शक्तिपात अति आवशयक है।जो गुरु दीक्षा से मिलता है और यो गुरु परम्परा है। इसे प्रारम्भ में केवल 15 मिनट ही प्रातः और साय किया करें और जब 3 माह का समय करते करते हो जाये तब दोनों पैरों को छुते हुए एक एक क्रिया योग को, एक सप्ताह के हिसाब से बढ़ाये, अन्यथा जल्दबाजी के कारण साधक योग शक्ति को सम्भाल नहीं पाता है और शीघ्र कुण्डलिनी जागरण होने से विक्षिप्त होने की सम्भावनाएं हो जाती है।यो जल्दी नहीं करके धीरे धीरे आगे बढ़े और योगी बने।
पुरुष को इस योग में अपने कुंडलिनी के 5 बीज मंत्रों को इस प्रकार सम्पूर्ण मंत्र के साथ जपने चाहिए–“”ॐ ळं वं रं यं हं ईं फट् स्वाहा”” का जप एक एक बीज मंत्र की मूलाधार-स्वाधिष्ठान-नाभि-ह्रदय-कंठ-आज्ञा में ईं और वहां स्थित ज्योति बिंदु से फट् कहते आकाश में स्वाहा कहते प्राण ऊर्जा को फेंकते जप करना चाहिए।और थोड़ी देर आकाश में ही ऊर्जा के विशाल अनन्त होकर फैलने का ध्यान करना चाहिए।
विशेष सफलता के लिए क्या मंत्र और कैसे जप करें:-
ऊपर दी गयी इस योग विधि में ॐ के स्थान पर- स्त्री को अपनी कुंडलिनी जागरण के 5 बीज मंत्र इस प्रकार सम्पूर्ण मंत्र के साथ जपने चाहिए—ॐ भं गं सं चं मं ईं फट् स्वाहा।का जप एक एक बीज मंत्र की मूलाधार में भं-स्वाधिष्ठान में गं-नाभि में सं-ह्रदय में चं-कंठ में मं-आज्ञा में ईं और वहां स्थित ज्योति बिंदु से फट् कहते आकाश में स्वाहा कहते प्राण ऊर्जा को फेंकते जप करना चाहिए।और थोड़ी देर आकाश में ही ऊर्जा के विशाल अनन्त होकर फैलने का ध्यान करना चाहिए।
विशेष:-जिन भक्तों को गुरु से सच्ची गुरु दीक्षा और मंत्र मिला है,उन्हें उसी का इसी प्रकार जप करना चाहिए- यानि -सत्य ॐ सिद्धायै नमः ईं फट् स्वाहा।
इस योग में अनेक ध्वनियां यानि झुन झुन सी या बासुरी सी,धड़ाम की आवाज या किसी ने तुम्हारा नाम पुकारा या ॐ की बड़ी सुरीली आवाज या मस्तक में सुन्नी या कुछ विचार नहीं आना आदि सुनाई या अवस्था बनती या आएगी,ये मन के स्तर है और कभी कभी ऐसी साधना और बन्ध लगाने से आपको थोड़े दस्त हो सकते है,चिंता नहीं करें।सब अपने आप ठीक हो जाते है।इन्हें योग व्याधि बोलते है,जो योग क्रिया से उत्पन्न होकर उसी क्रिया के सही सही करने से स्वयं ठीक हो जाती है।
इस लेख को बार बार ठीक से पढ़ें,इसमें कुछ भी साधकों से छिपाया गया नहीं है।और इससे अतिरिक्त कोई और इसमें योग मुद्रा या स्टेप यानि स्तर नहीं है।यो साधना करनी बाकि है।
कुछ विषय को मैने दिए गए चित्रों के माध्यम से समझाने का प्रयास किया है।
“इस लेख को अधिक से अधिक अपने मित्रों, रिश्तेदारों और शुभचिंतकों को भेजें, पूण्य के भागीदार बनें।”
अगर आप अपने जीवन में कोई कमी महसूस कर रहे हैं? घर में सुख-शांति नहीं मिल रही है? वैवाहिक जीवन में उथल-पुथल मची हुई है? पढ़ाई में ध्यान नहीं लग रहा है? कोई आपके ऊपर तंत्र मंत्र कर रहा है? आपका परिवार खुश नहीं है? धन व्यर्थ के कार्यों में खर्च हो रहा है? घर में बीमारी का वास हो रहा है? पूजा पाठ में मन नहीं लग रहा है?
अगर आप इस तरह की कोई भी समस्या अपने जीवन में महसूस कर रहे हैं तो एक बार श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज के पास जाएं और आपकी समस्या क्षण भर में खत्म हो जाएगी।
माता पूर्णिमाँ देवी की चमत्कारी प्रतिमा या बीज मंत्र मंगाने के लिए, श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज से जुड़ने के लिए या किसी प्रकार की सलाह के लिए संपर्क करें +918923316611
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श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येंद्र जी महाराज
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः