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देश के लिए बड़ा सर दर्द बन चुका बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा, ले चुका है राजनीतिक रंग, अवैध बांग्लादेशी रहेंगे या जाएंगे, ख़बर 24 एक्सप्रेस की खास रिपोर्ट

 

 

 

 

मनीष कुमार :

अवैध रूप से भारत मे आकर बसने वाले बांग्लादेशी घुसपैठियों का मामला अब तूल पकड़ता जा रहा है। भारत में लगभग 3 करोड़ बांग्लादेशी असम, बंगाल, त्रिपुरा, दिल्ली इत्यादि इलाकों में बड़ी तादाद में अवैध रूप से रह रहे ये घुसपैठिये सरकार व लोगों के लिए बड़ा सर दर्द बन चुके हैं। कहा ये भी जाता है कि इनमें से बहुत सारे लोग गलत वारदात करके बांग्लादेश भाग जाते हैं और फिर कुछ दिन बाद वापस आकर वैसी ही हरकते शुरू कर देते हैं। इतना ही नहीं भारत में अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशी गुट बनाकर रहते हैं और दंगे-फसाद, लूट-पाट, चोरी-चकारी, मार-धाड़ इत्यादि करना इनकी आदत में शुमार हो चुका है।
बंगाल, असम और त्रिपुरा इससे अछूता नहीं रहा है। असम में 2008-14 के बीच जबर्दस्त दंगे हुए जिनमें हज़ारों लोगों की जानें गयीं इन दंगों में हर बार अवैध रूप से भारत मे रह रहे बांग्लादेशियों का नाम सामने आया।
बताया ये भी जाता है कि भारत में जैसे ही ये घुसपैठिये सेंधमारी करते हैं उससे पहले इनके राशन कार्ड और पहचान पत्र बन जाते हैं।

40 सालों से ज्यादा समय से बड़ा सर दर्द बन चुके इन घुसपैठियों को राजनीतिक सरंक्षण मिलता रहा है जिसकी वजह से ये समय के साथ और ज्यादा फलते फूलते रहे हैं। अब ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने पहल करते हुए इन्हें बाहर का रास्ता दिखाने का काम किया है लेकिन सुप्रीमकोर्ट के इस फैसले की राह में बड़े राजनीतिक रोड़े हैं।
बता दें कि भाजपा भी बांग्लादेशी घुसपैठियों के कारण ही असम और त्रिपुरा में सत्ता में आई। भाजपा ने चुनावों से पहले प्रदेशों की जनता से वादा किया था कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आती है तो बांग्लादेशी घुसपैठियों को बाहर का रास्ता दिखा देगी, यानि अपने प्रदेशों से उन्हें खदेड़ देंगे।

लेकिन सत्ता में आने के बाद वादे, वादे ही रह गए।

बता दें कि बांग्लादेश घुसपैठ के लिए चार दशक से सुर्खियों में रहने वाले असम में इस मुद्दे पर फिर सियासत तेज़ हो रही है, गर्मा रही है। और यह इसलिए भी क्योंकि इस बार एनआरसी के अंतिम मसौदे में 40 लाख से ज्यादा लोगों का नाम शामिल नहीं होना वजह बनेगा। इनमें ज्यादातर अल्पसंख्यक ही हैं। कांग्रेस ने इसे भाजपा का सियासी कदम करार दिया है तो अल्पसंख्यक संगठनों ने इसे मुस्लिमों के खिलाफ साजिश करार दिया है।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी एनआरसी को अपडेट करने की कवायद को राज्य से बांग्लाभाषियों को खदेड़ने की साजिश करार दे चुकी हैं। असम प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रिपन बोरा ने कहा कि मसौदे में 40 लाख से ज्यादा लोगों के नाम नहीं होना आश्चर्यजनक है। इसमें काफी अनियमितताएं हैं। पार्टी यह मुद्दा सरकार और संसद के समक्ष उठाएगी।

एक अल्पसंख्यक संगठन के नेता शेख अब्दुल कहते हैं कि इतने लंबे समय से असम में रहने वाले 40 लाख से ज्यादा लोगों को सरकार ने एनआरसी के नाम पर अवैध अप्रवासी करार दे दिया। इससे उनका भविष्य खतरे में पड़ गया है। यह साजिश नहीं तो क्या है? राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि असम में एक बार फिर इस मुद्दे पर सियासी घमासान तेज होने का अंदेशा है। इससे निपटना सोनोवाल सरकार के लिए आसान नहीं होगा।

 

असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल ने सर्वदलीय बैठक में एनआरसी मसौदा जारी होने के बाद राज्य में उपजी राजनीतिक परिस्थिति की समीक्षा की। इसके बाद उन्होंने कहा कि एनआरसी असमिया समाज की पहचान बनाने का सबसे बड़ा हथियार है। किसी भी व्यक्ति को बेवजह परेशान नहीं किया जाएगा।

लोग अगले महीने से अपनी आपत्तियां और दावे जमा कर सकते हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि असम समझौते के प्रावधानों को लागू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर एनआरसी की कवायद चलाई गई है। इससे आतंकित होने की जरूरत नहीं है। उन्होंने लोगों से शांति और सद्भाव बनाए रखने की अपील की है। सरकार इस मुद्दे पर सोशल मीडिया के जरिये अफवाह फैलाने वालों और कुप्रचार करने वालों से सख्ती से निपटेगी।

 

 

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मनीष कुमार

(Fearless Journalism)

न्यूज़ डेस्क : ख़बर 24 एक्सप्रेस

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