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दलित vs दलित !! राष्ट्रपति पद के लिए सत्ता और विपक्ष की लड़ाई के बीच भाजपा के कोविंद ने दाखिल किया नामांकन

 

 

 

 

राष्ट्रपति पद के लिए दलित vs दलित की लड़ाई अब और तेज़ हो गयी है। एक तरफ विपक्ष से मीरा कुमार तो दूसरी और सत्ता पक्ष से रामनाथ कोविंद। और इन सबमें सबसे खास बात कि आज राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए की ओर से चुने गए उम्मीदवार रामनाथ कोविंद ने आज अपना नामांकन पत्र दाखिल कर भी दिया । नामंकन दाखिल करते वक़्त पीएम मोदी, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी भी संसद भवन में मौजूद रहे।
इससे पहले आडवाणी का नाम प्रधानमंत्री पद के बाद राष्ट्रपति के लिए उन्हीं को पार्टी में बार-बार सबके सामने आता रहा है। लेकिन इसके बाद भी उनका नाम राष्ट्रपति पद के लिए भी कोर कमेटी में सामने नही आया या सामने नही आने दिया गया?

भाजपा में कई बड़े पदों पर रहे रामनाथ कोविंद की गिनती लो प्रोफाइल चेहरों के रूप में होती रही है जो चुपचाप पर्दे के पीछे रहकर अपने काम को आज़म देते रहते हैं। कोविंद आरएसएस के सबसे नजदीक मकाने जाते हैं।
लेकिन एकाएक राष्ट्रपति पद के लिए उनका नाम सामने आने से अब उनको लेकर तमाम सवाल और जिज्ञासाएं खड़ी हो गई हैं। इससे पहले आडवाणी का नाम सामने आता रहा है। आपको बता दें कि आडवाणी भाजपा के ऐसे वरिष्ठ नेता हैं जिन्होंने पार्टी को बहुत कुछ दिया है लाठी डंडे तक खाये हैं और उनकी रथ यात्रा तो अब तक कि सबसे गेम चेंजर साबित हुई है। जिसके बाद भाजपा सत्ता में आयी और उस वक़्त आडवाणी भारत के उपप्रधानमंत्री बनें। आखिरकार जब नाम सामने आ ही गया है तो आडवाणी जी ने भी इसको भरे गले से स्वीकार कर लिया।

राष्ट्रपति चुनाव में जदयू के झटके के बाद कांग्रेस की अगुवाई में विपक्ष ने राजग उम्मीदवार रामनाथ कोविंद के खिलाफ पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार को उतारने की घोषणा की है। इतिहास में पहली बार राष्ट्रपति पद के लिए दलित बनाम दलित में मुकाबला होगा।

वहीं विपक्ष ने मीरा कुमार के जरिए पाला बदल कर राजग उम्मीदवार के पक्ष में आने वाले जदयू के लिए असहज स्थिति पैदा कर दी है, वहीं दलित उम्मीदवार की शर्त रखने वाली बसपा प्रमुख मायावती की इच्छा भी पूरी कर दी।

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की अगुवाई में कल 17 दलों की बैठक के दौरान तीन नामों पर चर्चा हुई। एनसीपी नेता शरद पवार ने मीरा कुमार के अलावा पूर्व गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे और राज्यसभा सांसद बालचंद्र मंगेकर के नाम का प्रस्ताव रखा, जिसमें मीरा कुमार पर आमराय बन गई।

आइए आपको बताते हैं कि मौजूदा चुनाव का गणित क्या कहता है? और राष्ट्रपति बनने के लिए कितने वोट चाहिए होते हैं। ऐसे समझिए पूरा गणित..

अभी मौजूदा चुनाव में कुल 4120 विधायक और लोकसभा-राज्यसभा के 776 सांसद वोट डालेंगे।

फिलहाल केंद्र में सत्तारूढ़ एनडीए के सांसद और विधायकों के हिसाब से कुल 532019 वोट हैं।

जीत के लिए उसे कुल 549442 वोटों की जरूरत है यानि उसके पास 17423 वोट कम हैं।

हालांकि मोटा मोटी ये संख्या 20 से 25 हजार तक भी हो सकती है

एनडीए के इस आंकड़े में फिलहाल शिवसेना के सांसदों और विधायकों का वोट भी शामिल है

अगर शिवसेना भाजपा को समर्थन नहीं करती है तो उसके लिए मुश्किल खड़ी हो जाएगी, उस कड़ी में उसे 50 हजार तक वोटों का जुगाड़ करना होगा।

शिवसेना के 63 विधायक हैं और महाराष्ट्र विधानसभा में एक विधायक का मत है 175, यानि शिवसेना विधायकों के कुल मतों का जोड़ हुआ 11025 वोट।

संसद में शिवसेना के पास राज्यसभा और लोकसभा मिलाकर कुल 21 सांसद हैं, एक सांसद के वोट का मूल्य है 708, यानि कुल मतों का जोड़ हुआ 14868 वोट। कुल जमा शिवसेना के पास फिलहाल 25893 वोट सुरक्षित हैं। और भाजपा कभी नहीं चाहेगी कि ये वोट उसके पाले से छिटककर विपक्ष के खेमे में जाएं।

 

 

वहीं दूसरी ओर लालू ने यह कहकर सनसनी बढ़ दी है कि नीतीश कुमार का एनडीए उम्मीदवार को समर्थन उन्हें अजीब लगा। नीतीश कुमार से वो इस बारे में बात करेंगे, वो उन्हें समझाएंगे और ऐसा ना करने के लिए वो उनको मनाएंगे भी।

राष्ट्रपति चुनाव के लिए विपक्षी दलों की ओर से उम्मीदवार चुनने से पहले बिहार के सीएम और जेडीयू अध्यक्ष नीतीश कुमार ने भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद का समर्थन करने के ऐलान किया था, जिसको लेकर आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव असमंजस में चल रहे हैं। लालू नीतीश कुमार के एनडीए के पक्ष में समर्थन करने के निर्णय को पचा नहीं पा रहे हैं।
मामले में गुरुवार को लालू ने कहा कि पता नहीं नीतीश जी ने ऐसा निर्णय क्यों ले लिया, हम उनसे अपील करेंगे, उनको बताएंगे और समझाएंगे कि आपने गलत निर्णय ले लिया। उन्होंने आगे कहा कि मैं नीतीश जी से उनके निर्णय के बारे में फिर सोचने के लिए कहेंगे। उन्होंने कहा राष्ट्रपति चुनाव में मीरा कुमार जीतेंगी।
गौरतलब है कि इससे पहले विपक्षी दलों ने सयुक्त रूप से सोनिया गांधी की अध्यक्षा सोनिया गांधी के नेतृत्व में मीरा कुमार को मैदान में उतारा है। मीरा कुमार के आने के बाद कांग्रेस और लालू यादव बिहार की दलित बेटी और दलित राजनीति में अम्बेडकर के बाद आजाद भारत के सबसे बड़े नेता जगजीवन राम की वारिस के नाम पर नीतीश पर दबाव बनाएंगे।

एक अन्य जदयू नेता के मुताबिक नीतीश कुमार को फैसला लेने से पहले 22 जून की बैठक तक इंतजार करना चाहिए था। उन्हें विपक्षी दलों की बैठक में आकर अपनी बात रखनी चाहिए थी। बल्कि मीरा कुमार के नाम के ऐलान की उन्हें पहल करनी चाहिए थी। जदयू के एक पदाधिकारी के मुताबिक पता नहीं पार्टी ने कोविंद को समर्थन का फैसला किस दबाव में किया गया। इससे विपक्ष और गैर भाजपा राजनीति में नीतीश और जदयू की साख भी प्रभावित होगी।

सूत्रों के मुताबिक पार्टी के फैसले से वरिष्ठ नेता शरद यादव समेत कुछ अन्य नेता बेहद असहज हैं। क्योंकि विपक्ष के साझा उम्मीदवार उतारने की पहल खुद नीतीश कुमार ने ही कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलकर की थी। बाद में शरद यादव ने अन्य विपक्षी दलों से बात करके इसे आगे बढ़ाया था। अब उन्हें विपक्ष के नेताओं के सवालों का सामना करना पड़ रहा है। उधर लालू यादव ने नीतीश के निर्णय को ऐतिहासिक भूल बताकर जदयू की दुविधा और बढ़ा दी है।

 

 

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ख़बर 24 एक्सप्रेस

 


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