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Kotputli Borewell Breaking : लापरवाही ने ले ली चेतना की जान, कोटपूतली की इस मासूम बिटिया को नहीं बचा सके

जब देश नए साल के जश्न में डूबा है तो वहीं कोटपुतली की मासूम बिटिया जिंदगी की जंग हार गई। 10 दिन से बोलवेल में फंसी इस मासूम को नए साल पर निकाल तो लिया लेकिन उसकी सांसे थम चुकी थी।
प्रशासन को या किसी को यह भी नहीं पता कि साढ़े तीन साल की मासूम कितने दिनों तक इस गड्ढे में तड़पी होगी। कब तक भुखी प्यासी एक हुक से लटकी रही होगी।
प्रशासन की लापरवाही से एक मासूम जिंदगी की जंग हार गई। वो नए साल का सवेरा नहीं देख पाई।

राजस्थान के कोतपूतली में बोरवेल में गिरी चेतना को 10वें दिन बाद बाहर निकाल लिया गया है। 700 फीट गहरे बोरवेल से बाहर आई तीन साल की चेतना की मौत हो गई है। वह करीब 10 दिन से बोरवेल में 120 फीट की गहराई में एक हुक से लटकी हुई थी। 23 दिसंबर को चेतना बोरवेल में गिरी थी और करीब 150 फीट की गहराई में फंस गई थी। देसी जुगाड़ के जरिए उसे करीब 15-20 फीट ऊपर खींच लिया गया था। चेतना को बचाने के लिए 10 दिन चले रेस्क्यू ऑपरेशन पर भी कई सवाल खड़े हो रहे हैं। चेतना के परिवार ने प्रशासन पर लापरवाही के आरोप भी लगाए।
तो आइए, जानते हैं चेतना को बोरवेल से बाहर निकालने में देरी क्यों हुई, क्या लापरवाही हुई, रेस्क्यू अभियान में क्या परेशानियां आईं?

कोटपूतली के किरतपुरा के बड़ियाली की ढाणी में 23 दिसंबर सोमवार की दोपहर चेतना 700 फीट गहरे बोरवेल में गिरी थी। इसी के साथ लापरवाही भी शुरू हो गई थी। जानकारी के अनुसार शुरुआत में चेतना महज 15 फीट की गहराई में थी, लेकिन परिवार के लोगों ने अपने स्तर पर रस्सी डालकर उसे बाहर निकालने की कोशिश की, जिससे वह 80 फीट की गहराई में चली गई।

23 दिसंबर को दोपहर करीब 1:50 बजे चेतना बोरवले में गिरी। लेकिन, एनडीआरएफ और एसडीआरएफ को बुलाने का फैसला लेने में समय गंवा दिया गया। इसका असर यह हुआ कि टीम को पहुंचने में देरी और तब तक चेतना 150 फीट की गहराई में पहुंच गई। अगर, समय पर टीम पहुंचती तो चेतना को 80 फीट की गहराई में ही रोका जा सकता था। ऐसा होता तो कई दिन पहले ही चेतना बाहर आ सकती थी।

चेतना के गिरने से पहले बोरवेल से पाइप निकाल लिए गए थे। बोरवेल के चारों ओर मिट्टी होने से यह संभवना बेहद कम थी कि देसी जुगाड़ से चेतना को ऊपर खींचा जा सकता है। इसके बाद भी अधिकारी इसमें समय खराब करते रहे, दूसरे प्लान पर काम नहीं किया गया।

चेतना को रेस्क्यू करने के अभियान की अगुवाई एसडीएम और एडीएम कर रहे थे। जिला कलेक्टर के छुट्टी पर होने की बात सामने आई। इस कारण वे दो दिन तक मौके पर नहीं पहुंची। इससे हायर लेवल पर कॉर्डिनेशन खराब रहा। पाइलिंग मशीन से खोदाई करने का फैसला लेने में दो दिन लगा दिए गए।

तीन साल की चेतना 160-170 फीट की गहराई में थी। यह गहराई इस रेस्क्यू अभियान में सबसे बड़ी चुनौती साबित हुई। अब तक इस तरह के जो भी ऑपरेशन हुए वे 40 से 100 फीट की गहराई तक ही सीमित रहे थे। लेकिन, यहां गहराई अधिक थी। आठ इंच चौड़े बिना पाइप के बोरवेल में देसी जुगाड़ काम नहीं आ सका। चेतना को रेस्क्यू करने के लिए जो इक्विपमेंट्स बोरवेल में डाले गए वे आपस में उलझ जाते थे। ऐसे में उन्हें बाहर निकालकर सुलझाना पड़ता था।

सर्दी की वजह से चेतना गर्म कपड़े पहने हुई थी। बोरवेल में गिरते ही उन पर गीली मिट्टी लग गई। इससे उसका वजन बढ़ गया। एक बार ऐसा भी हुआ कि चेतना को रेस्क्यू करने के लिए बोरवेल में अंदर भेजा गया, L शेप का रॉड.. प्रेशर से J शेप का हो गया। वहीं, मिट्टी के कारण रेस्क्यू टीम को चेतना को देखने में भी परेशानी हो रही थी।

देसी जुगाड़ फेल होने पर पाइलिंग मशीने से 170 फीट गहरा गड्डा खोदा जाना था। आमतौर पर पाइलिंग मशीन यह काम पांच-छह घंटे में आसानी से कर देती है। लेकिन, यहां हालात कुछ और थे। जमीन के अंदर पत्थर थे। 150 फीट तक की गहराई में मिले कच्चे पत्थर तो आसानी से कट गए, लेकिन इसके बाद मजबूत पत्थरों को काटने में समय लगता गया। इस दौरान दो पाइलिंग मशीन का इस्तेमाल किया गया एक 150 फीट कैपेसिटी और दूसरी 171 फीट कैपेसिटी वाली थी। इसके बाद भी 175 फीट गहरा गड्डा नहीं हो पाया।

तमाम परेशानियों के कारण रेस्क्यू अभियान में लगातार देरी हो रही थी। इसी बीच मौसम बदला और बारिश शुरू हो गई। डेढ़ दिन बारिश ने खराब किया, इससे गड्ढे में डाले जाने वाले पाइप की बेल्डिंग नहीं हो सकी। बारिश बंद होने के बाद काम पूरा किया जा सका, लेकिन पाइप नीचे तक फिट नहीं होने के कारण रेस्क्यू टीम को नीचे उतारने में समय लगा।

रेस्क्यू टीम ने गड्ढे में उतरकर सुरंग की खोदाई शुरू की। करीब आठ-दस फीट सुरंग खोदनी थी, लेकिन यह किसी चुनौती से कम नहीं था। एक तो बहुत अधिक गहराई में खोदाई की जानी थी, दूसरा नीचे मजबूत पत्थर थे। ऐसे में धीरे-धीरे ड्रिल करके पत्थरों को काटा गया। अगर, इसमें थोड़ी भी लापवाही होती तो मिट्टी भी धसक सकती थी।

बता दें कि एनडीआरएफ की टीम ने बोरवेल के समानांतर एक सुरंग खोदकर बच्ची को बाहर निकाला। एनडीआरएफ राजस्थान के चीफ योगेश मीणा ने कहा कि बच्ची को अचेत अवस्था में निकाला गया है, जब उसे निकाला गया तब शरीर में कोई मूवमेंट नहीं था।
1 जनवरी को बुधवार शाम 6 बजकर 25 मिनट पर तीन साल की चेतना को बोरवेल से बाहर निकाला गया। एनडीआरएफ के जवान महावीर जाट सफेद कपड़े में लपेटकर चेतना को बाहर लेकर आए। इसके तुरंत बाद चेतना को एंबुलेंस से कोटपूतली के बीडीएम अस्पताल ले जाया गया, जांच के बाद डॉक्टर्स की टीम ने बच्ची को मृत घोषित कर दिया। चेतना 23 दिसंबर को किरतपुरा के बड़ियाली की ढाणी में 700 फीट गहरे बोरवेल में गिरी थी।

ब्यूरो रिपोर्ट : जगदीश तेली (राजस्थान हेड)


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