मैंने कल वादा किया था हरिवंश के ‘प्रभात खबर ‘ में संपादक पद पर पहुंचने के संबंध में जानकरी देने की। तो लीजिए प्रस्तुत है! हालांकि, कल रांची से कुछ पत्रकार मित्रों ने फोन कर जानकारी दी कि ‘प्रभात खबर ‘ ने छापा है कि ज्ञान रंजन ने ‘प्रभात खबर ‘ का प्रकाशन शुरु किया था, इस पर मैं टिप्पणी करुं। चाहता तो नहीं था,लेकिन आगे पूरी जानकारी दे दूंगा।वैसे, ‘प्रभात खबर ‘ में ही कुछ वर्ष पूर्व प्रकाशित एक विशेषांक में उन्होंने लिखा था कि अखबार का प्रकाशन शिवेश्वर नारायण ,अर्थात विनोद जी ने शुरु किया था।खबर की snap shot इस आलेख के साथ प्रकाशित है।ज्ञान रंजन को बाद में मैंने पार्टनर बनाया था।आगे विस्तृत विवरण दूंगा। खैर!
‘प्रभात खबर ‘ में नियुक्ति नहीं मिलने के कुछ समय बाद हरिवंश कलकत्ता ‘रविवार ‘ में एक संपादकीय सहयोगी के रुप में चले गए थे।
इस बीच दो घटनाएं घटीं ।
ज्ञान रंजन पॉलिटिशियन थे।उनकी अपनी चौकड़ी थी।उन लोगों ने एक साजिश रची। विस्तृत विवरण कभी बाद में। फिलहाल यह कि साजिश के परिणाम स्वरुप स्वयं मुझे ही ‘प्रभात खबर ‘ से पृथक होना पड़ा।तब ज्ञान रंजन मालिक बने।
फिलहाल चर्चा हरिवंश की!
हरिवंश ‘रविवार’ में चले गए थे।तब उदयन शर्मा संपादक थे।
इस बीच एक दिन, जमशेदपुर (टाटानगर) में झारखंड मुक्ति मोर्चा के तत्कालीन अध्यक्ष निर्मल महतो की गोली मारकर हत्या कर दी गई। तब शिबू सोरेन झामुमो के महामंत्री थे। हत्या टाटा समूह के चमड़िया गेस्ट हाउस के बरामदे पर हुई थी।ज्ञान रंजन भी उस समय मौके पर मौजूद थे।तब वे शिबू सोरेन के काफी निकट थे। खबर सनसनीखेज और काफी झकझोर देने वाली थी।’प्रभात खबर ‘ में भी प्रथम पृष्ठ पर प्रमुखता से हत्या की खबर छपी। प्रभात खबर में छपी खबर में बताया गया था कि ज्ञान रंजन बाल-बाल बचे।एक गोली उन्हें छुती हुई निकल गई। ध्यान रहे,तब ज्ञान रंजन ‘प्रभात खबर ‘ के मालिक बन चुके थे।प्रिंट लाइन में अपना नाम वे ‘प्रोपराइटर ‘ के रुप में छपवाते थे।जाहिर है,बाल-बाल बचने संबंधी खबर उन्होंने ही छपवाई होगी।वारदात पर एफआईआर, पटना से एक बड़े पुलिस अधिकारी के जमशेदपुर पहुंचने पर दर्ज हुआ। एफआईआर में बताया गया कि जब हत्या हुई, ज्ञान रंजन अंदर गेस्ट हाउस के कमरे में थे।दिलचस्प! प्रभात खबर ने छापा कि ज्ञान रंजन बाल-बाल बचे। जबकि, एफआईआर के अनुसार वे अंदर कमरे में थे।
वरिष्ठ पत्रकार जय शंकर गुप्त उन दिनों ‘रविवार ‘ के बिहार ब्यूरो प्रमुख थे।निर्मल महतो की हत्या को लेकर उनकी विस्तृत रिपोर्ट ‘रविवार ‘ में छपी। रिपोर्ट में हत्या को लेकर शक की सूई,अन्य लोगों के अलावा ज्ञान रंजन की तरफ भी इंगित की गई थी।नव भारत टाइम्स के पटना संस्करण में भी लगभग इसी आशय की खबर छपी। ज्ञान रंजन विचलित हो उठे।उन्होंने ‘रविवार ‘ के संपादक उदयन शर्मा से बात की। यहां बता देना समीचीन होगा कि उदयन ने जब चुनाव लड़ा था,ज्ञान रंजन ने उनकी आर्थिक सहायता की थी। तब उदयन ने कलकत्ता से हरिवंश को जमशेदपुर रिपोर्टिंग के लिए भेजा।हरिवंश की रिपोर्ट छपी।’रविवार ‘ में, हत्या को लेकर पूर्व प्रकाशित,जय शंकर गुप्त की रिपोर्ट के विपरीत हरिवंश की रिपोर्ट प्रकाशित हुई। बता दूं कि तब विरोध स्वरूप जय शंकर गुप्त ने ‘रविवार ‘ से इस्तीफा दे दिया था।जय शंकर के उक्त कदम की तब पत्रकारीय जगत में भूरी-भूरी प्रशंसा हुई थी। और,हरिवंश की भूमिका की भर्त्सना!
निर्मल महतो हत्याकांड की सीबीआई जांच हुई। सीबीआई की टीम ने ज्ञान रंजन को लेकर रांची में तब मुझसे भी पूछताछ की थी। पूछताछ के दौरान एक सीबीआई अधिकारी ने सीधा सवाल किया था -“…..क्या आपको लगता है कि हत्या ज्ञान रंजन ने करवाई?”
इस सवाल पर मैं थोड़ा हंस पड़ा था।जवाब दिया- ” वे एक पाॅवर ब्रोकर हो सकते हैं,….किंतु हत्या?…वे एक मक्खी भी नहीं मार सकते,….किसी की हत्या क्या कराएंगे!”
मेरे इस जवाब पर सीबीआई अधिकारी तनाव-मुक्त नजर आए।
दूसरे दिन सुबह, पटना से तत्कालीन डीआईजी पुलिस, डी एन सहाय का फोन आया-“….तुमने ठीक जवाब दिया।…ज्ञान जी को राहत मिल गई!”
बता दूं,डी एन सहाय के काफी निकट थे ज्ञान रंजन!पटना में उनके निवास पर ही ठहरा करते थे।
खैर!
ज्ञान रंजन को ‘रविवार’ के माध्यम से उपकृत करने का पुरस्कार हरिवंश को मिला। ज्ञान रंजन ने ‘प्रभात खबर ‘बेचने के पूर्व हरिवंश को संपादक की कुर्सी पर बैठा दिया।
इस प्रकार हरिवंश उस ‘प्रभात खबर ‘ के संपादक बने, जहां पहले , साक्षात्कार में वे एक कनिष्ठ संपादकीय पद के अयोग्य करार दिए गए थे!
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वरिष्ठ संपादक श्री एसएन विनोद की कलम से