इस दिवस की महिमा की अपनी कविता के माध्यम से कवित्त्व रूप में बता रहें है,स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी,,
आज पंचम गुप्त नवरात्रि
और पंचम तत्व आकाश।
यही प्रकति पँच रूप में
लेती पूर्ण अवकाश।।
यहाँ से आगे सप्तमी
जहाँ आज्ञाचक्र प्रारम्भ।
उससे अंतिम सहत्रार
जिसमें आत्मा बने परब्रह्म।।
यो जगत में भी सब देखते
झड़ जाते पत्ते फूल।
नवीन सृष्टि तब होती।
आज्ञा आत्मब्रह्म से पुनः अनुकूल।।
यही ब्रह्म से उत्पन्न अर्थ
ज्ञान है अंतिम अकाल।
यही उपासना ज्ञान अर्थ है
गुप्त नवरात्रि पंचम काल।।
ज्ञान सदा है शाश्वत
यही ज्ञान नाम है सरस्वती।
सरस्वती पंचम कला नाम
सोलहवी कला है पूर्णिमाँ भगवती।।
पूर्णता नाम ब्रह्म है
जिसे ईश्वर कहते बीज।
बीज में दो बसते है
नर नारी प्रेम कर रीझ।।
नर नाम नारायण सत्य है
और नारी पूर्णिमाँ नाम।
यही मिलन नवरात्रि अंत है
यही अंत बसंत जग धाम।।
दोनों के पुनः मिलन से
सृष्टि होती नव नव जीव।
बीज से अंकुरित सर्व जगत
यो प्रारम्भ प्रेम इस नीव।।
सहस्त्रार से आज्ञा चक्र हो
पुनः आता जीव जगत।
पंचम चक्र आकाश तत्व
यहाँ से प्रारम्भ चारों तत्।।
यो पुराना मिट नया बने
यो आज रखते होली नीव।।
प्रेम प्रारम्भ प्रेम शुभ अंत
पंचम ज्ञान बसंत प्रेम पीव।।
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी
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