बता दें कि कृषि कानूनों को लेकर अबतक 65 से ज्यादा किसानों की मौतें हो चुकी हैं। लेकिन केंद्र सरकार के कान पर जूं नहीं रेंग रही है। किसान अपनी मांगों को लेकर कड़कड़ाती ठंड में दिल्ली में बैठे हैं। लेकिन सरकार किसानों की मांगों की सिरे से खारिज कर रही है।
सरकार व बीजेपी आईटी सेल ने किसान आंदोलन को कांग्रेसी, पाकिस्तानी, खालिस्तानी समर्थित आंदोलन बताकर प्रचार करना शरू कर दिया है जिस वजह से इस आंदोलन को आम जनता से बहुत ज्यादा समर्थन नहीं मिल रहा है।
वहीं दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट की तरफ से बनाई समिति के एक सदस्य के नाम वापस ले लिया है। इसके बाद बातचीत को लेकर असमंजस की स्थिति थी, मगर केंद्रीय कृषिमंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने यह साफ करते हुए कहा, दोनों पक्षों के बीच वार्ता 15 जनवरी को दोपहर 12 बजे होगी। तोमर ने कहा, सरकार किसान नेताओं के साथ खुले मन से बातचीत के लिए तैयार है। वहीं, किसान संगठनों ने भी कहा, हम भी तय कार्यक्रम के मुताबिक ही बातचीत को तैयार हैं। हालांकि, हम सुप्रीम कोर्ट की समिति के समक्ष पेश नहीं होना चाहते हैं।
नए कृषि कानून पर करीब डेढ़ महीने से सरकार और किसान संगठनों के बीच जारी गतिरोध कम होने का नाम नहीं ले रहा। किसान अब भी कानून रद्द कराने की अपनी मांग पर डटे हुए हैं। उन्होंने समस्या के हल के लिए सुप्रीम कोर्ट की तरफ से बनाई चार सदस्यीय कमिटी को भी खारिज करते हुए इससे किसी तरह की बातचीत से इनकार कर दिया है। इस बीच, आज एक बार फिर से किसान और केंद्र सरकार आमने-सामने होंगे।
किसानों और सरकार के बीच यह नौवें दौर की बातचीत होगी जिसमें सरकार को उम्मीद है कि शायद इस बैठक के बाद कुछ हल निकल सकेगा, लेकिन किसान नेताओं का रुख बेहद साफ है। बैठक से पहले उन्होंने अपनी रणनीति तैयार की हुई है। किसान संगठनों के नेताओं का कहना है कि यह बैठक सिर्फ खानापूर्ति भर है। आठवें दौर की बातचीत के बाद ही किसानों ने अगली बैठक को एक औपचारिक बैठक बताया था।
पंजाब के अध्यक्ष सुरजीत सिंह फूल ने कहा कि शुक्रवार की बैठक एक औपचारिकता भर ही है, क्योंकि इस बैठक में कोई एजेंडा नहीं है। जब कोई बैठक बिना एजेंडे की होती है, तो उससे ज्यादा कुछ उम्मीद लगाना ठीक नहीं होता है। हमें लगता है कि पिछली बैठकों की ही तरह इस बैठक का भी कोई नतीजा नहीं निकलेगा। सुप्रीम कोर्ट की तरफ से बनाई गई कमिटी और उसमें मौजूद सदस्यों पर उठे सवालों के बाद हमें यह कमिटी मंजूर नहीं है। इस बीच बैठक में भाग नहीं लेने से एक गलत संदेश जा सकता था, लिहाजा हम इस बैठक का बहिष्कार तो नहीं कर रहे हैं, लेकिन हमें ज्यादा उम्मीद नहीं है।
वहीं किसान नेता बलवीर सिंह राजेवाल ने भी गणतंत्र दिवस पर इंडिया गेट व लाल किले के आसपास किसान परेड निकालने की बात को सिरे से खारिज किया है। उन्होंने एक प्रेस रिलीज जारी कर किसानों को खुला पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने बताया कि वह इस आंदोलन को अभी तक शांतिपूर्ण तरीके से करते आ रहे हैं, जिस पर देश-दुनिया की नजरें हैं। इस आंदोलन में किसी भी तरह के उग्र प्रदर्शन को शामिल नहीं किया जाएगा।
साथ ही, उन्होंने किसानों से अपील की कि वह संयम बनाए रखें, हमें गणतंत्र दिवस के परेड में किसी भी प्रकार का झंडा लाल किले पर नहीं फहराना है। कुछ लोगों द्वारा ऐसा प्रचार किया जा रहा है कि यह किसानों द्वारा विद्रोह कार्यक्रम है और यह आंदोलन का अंतिम चरण है जिसमें वे लाल किले पर झंडा फहराने वाले हैं, संसद पर कब्जा किया जाएगा… ऐसे निराधार और भड़काऊ प्रचार किए जा रहे हैं। ये सभी बातें गलत हैं। हमारा प्रदर्शन तय कार्यक्रम के अनुसार शांतिपूर्ण तरीके से चलता रहेगा, इस तरह की भड़काऊ बयानबाजी करने वालों को हमारे वॉलंटियर्स पकड़कर जांच-पड़ताल कर रहे हैं और उन्हें पुलिस को सौंपते हैं।