विश्व युद्ध अनाथ दिवस World War Orphan Day हर वर्ष 6 जनवरी को मनाया जाता हैं।इसके मनाने का उद्देश्य विश्व युद्ध के दौरान अनाथ हुए अनगिनत बच्चों के उज्जवल भविष्य के प्रति अपना तन मन धन आदि सभी प्रकार से योगदान देना है।जिससे इनको आर्थिक ओर मानसिक पीड़ा सामाजिक उत्पीड़न आदि से बाहर लाना हैं।
विश्व युद्ध अनाथ दिवस का प्रारम्भ सबसे पहले फ्रांसीसी संगठन, एसओएस एनफैंट्स एन डिट्रेस द्वारा की गई थी।
यूनिसेफ के का मानना था की पूर्वोत्तर में लगभग 9,00,000 से अधिक बच्चे द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अनाथ हो गए थे और उनका भविष्य बुरी तरह से प्रभावित हुआ हैं।ओर आज भी चल रहे अनेक देशों में युद्धों में अनाथ हुए बच्चो के पास ना तो शिक्षा की व्यवस्था रही ना ही उनके लिए भोजन और ना ही घर हैं। यो ऐसे अनाथ बच्चो के लिए World War Orphan Day का प्रारम्भ किया है। ताकि इन बच्चो के भविष्य को सुरक्षित किया जा सके ओर उन्हें युद्ध और महामारी जैसे मानसिक-उत्पीड़न से बाहर लाया जा सके।
ऐसे अनेक कारणों को मध्यनजर रखते हुए युद्ध की विभीषिका से अनाथ हुए बच्चों बूढ़ों ओर विधवाओं आदि की क्या दशा होती है और कहीं वो भविष्य में फिर से नहीं घटे यो इसी चिंतन को अपनी ज्ञान कविता से स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी ने अपनी यो कहा है कि
विश्व युद्ध अनाथ दिवस ज्ञान कविता
युद्ध सदा बर्बादी देता
जीवन सुकून सब हर लेता।
बिछुड़ जाते जाने कितने संग
बाल भविष्य अंधकार भर देता।।
अनाथ बनाता जाने कितनों को
मात पिता मिटा सुख बंधु।
प्रेम छीन घृणा झोली भर
कालोस भर उजाला बुझा नेत्र बिंदु।।
मानसिक पीड़ा भर कर दिल में
पहना हाथों में दासत्त्व की बेड़ी।
क्या होगा सदा प्रश्न डर सपने दे
महनत अभाव की रोटी दे केड़ी।।
विधवाओं की दुनियां बढ़ जाती
तन बेक खुले जाते बाजार।
अपाहिज भींख सहारा ढूंढे
वयस्क बढ़ जाते अपराधों के गार।।
पिछड़ जाती दुनियां सबकी
लाशें भी बिन पाये जमीन।।
चहरों पर उम्मीद मिटी लकीरें
दे जाती बस निराशा ग़मगीन।।
मिट जाते रोज़गार अनेकों
ध्वंश हो जाते रास्ते मंजिल।
मंहगाई बढ़ आसमान को छूटी
बस रह जाती अपंगता भंगदिल।।
यही अंध अनाथ जीवन को
बनाया जाता विश्वयुद्ध अनाथ दिवस।
नहीं हो युद्ध और परिणाम विनाशक
दे पुनर्वास अनाथ न हो विवश।।
आओ इस सहयोग सभी दें
ओर करें चिंतन युद्ध विनाश ज्ञात।
कहीं फिर छिड़े युद्ध बसे हम जग में
ओर जाने कौन किस घर हो अनाथ।।
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी
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