काम चाहे कोई करो
चाहे दूजे या निज काम।
धीरज समझ परख बिन
निपटाओ न जल्द काम।।
संतुष्टि संग रख एकाग्रता
बिन बिताये समय व्यर्थ।
जब स्वयं को वो उत्तम लगे
तभी लौटना उस मालिक अर्थ।।
तब मिले देख संतुष्टि सब
ओर गलती निकले कम।
सब मिले खुशी पुरुषकार संग
किया कर्म मिले बढ़ हम।।
यो जल्दी किया काम कभी
उत्तम फल नहीं देता।
लोट कमी के साथ मिले
शुभ फल भी अधूरा रहता।।
भावार्थ- हे शिष्य तुम अपनी इस आदत में सुधार कर,की काम चाहे जल्दी पूरा करो या देर से,पर पहले जांच लो और फिर उसे पेश करो,काम करके दिखाने के चक्कर मे अच्छा किया गया काम,जब बार बार गलती निकल लौट कर आता है,ओर उसे फिर सही करते है तो,अपने प्रति निराशा आती है ओर उसका जो अच्छा प्रभाव आता ओर आनन्द फल मिलता,वो कोई खास नही रहता है,परिणाम स्वरूप अपने ही किये काम के बाद चाहे कितना बढ़िया करके दिखाएं,वो बढ़िया परिणाम का आनन्द नही दे पाता है और आपको निराशा का फल मिलता है कि,मैं तो कितना ही अच्छा कर लूं,पर मुझे कोई पुरुषकार नहीं मिलता है।यो जो भी काम मर्जी से करें या दिए से करें,तब तक उसे दूसरे के सामने नहीं लाये।जबतक की वो आपको ही संतुष्टि नहीं दे,जब आपको अपने हर कोण से बहतरीन लगे। तब उसे सबके सामने लाये।तब आप पाएंगे कि उसकी सब ओर प्रशंसा होगी।चाहे उसमें देखने वालों ने ओर अच्छा होने के या करने के भाव से सुधार के बिंदु बताये हो।यो दिए काम को अपने परीक्षण के साथ सही समय पर पूरा कर देना चाहिए तो स्वयं ओर दूजे प्रसन्नता मिलकर मनचाहा फल के साथ प्राप्त होता है।
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी
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