मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 7 दिसंबर 2020 को महाकाल भैरव जयंती यानि जन्मोउत्सव मनाया जाएगा। इस दिन भगवान महाकाल भैरव का अवतार का प्राकट्य हुआ था।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि शिव के अवतार महाकाल भैरव का जन्म कैसे हुआ ?..
हमारी पुराणों में वर्णित कथाओं के अनुसार एक बार भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा के बीच विवाद छिड़ गया कि उनमें से सर्वश्रेष्ठ कौन है? यह विवाद इतना अधिक बढ़ गया कि सभी देवता घबरा गए। उन्हें डर था कि इन दोनों देवताओं के बीच युद्ध ना छिड़ जाए और प्रलय ना आ जाए।
सभी देवता घबराकर भगवन शिव के पास चले गए और उनसे समाधान ढूंढ़ने का निवेदन किया। जिसके बाद भगवान शंकर ने एक सभा का आयोजन किया जिसमें भगवान शिव ने सभी ज्ञानी, ऋषि-मुनि, सिद्ध संत आदि और साथ में विष्णु और ब्रह्मा जी को भी आमंत्रित किया।
इस सभा में अनेक चर्चाओं और प्रमाणों के साथ निर्णय लिया गया कि सभी देवताओं और त्रिदेवो में भगवान शिव ही सर्वश्रेष्ठ है। इस निर्णय को सभी देवताओं समेत भगवान विष्णु ने भी स्वीकार कर लिया। लेकिन ब्रह्मा ने इस फैसले को मानने से इंकार कर दिया। वे भरी सभा में भगवान शिव का अपमान करने लगे। भगवान शंकर इस तरह से अपना अपमान सह ना सके और उन्होंने रौद्र रूप धारण कर लिया।
भगवान शंकर प्रलय के रूप में नजर आने लगे और उनका रौद्र रूप देखकर तीनों लोक भयभीत हो गए। भगवान शिव के इसी रूद्र रूप से भगवान भैरव प्रकट हुए। वह श्वान (कुत्ते) पर सवार थे, उनके हाथ में एक दंड था और इसी कारण से भगवान शंकर को और उनके इस स्वरूप भैरव को ‘दंडाधिपति’ भी कहा गया है। पुराणों के अनुसार भैरव जी का रूप अत्यंत भयंकर था।इनका नाँद भी भयंकर गुंजयमान था।उससे ही भैरव नाँद की उत्पत्ति हुयी।और “भ्रं” बीज मंत्र और अष्टदल कमल की भी उत्पत्ति हुयी।
दिव्य शक्ति संपन्न भैरव ने अपने बाएं हाथ की सबसे छोटी अंगुली के नाखून से शिव के प्रति अपमानजनक शब्द कहने वाले पंचमुखी ब्रह्मा के पांचवे सिर को ही काट दिया।तब से ब्रह्मा चार मुखी हुए।
शिव के कहने पर भैरव ने काशी प्रस्थान किया। जहां उन्हें तपस्या करके ब्रह्म हत्या दोष से मुक्ति मिली।यो प्रसन्न होकर रूद्र ने उन्हें काशी का कोतवाल नियुक्त किया।
आज भी काशी के कोतवाल के रूप में पूजे जाते हैं। भैरव अवतार का वाहन काला कुत्ता है। उनके अवतार को महाकाल के नाम से भी जाना जाता है। भैरव जयंती को पाप का दंड मिलने वाला दिवस भी माना जाता है।यो अपने समस्त जाने अनजाने पापों की मुक्ति के लिए इस दिन भैरव की पूजा करनी चाहिये और दान पूण्य और भंडारा करना चाहिए।
अपने स्वरूप से उत्पन्न भैरव को भगवान शंकर ने आशीष दिया कि आज से तुम पृथ्वी पर रक्षक बनकर भक्तों की रक्षा सहित उनके कप तप आदि के भरण-पोषण की जिम्मेदारी निभाओगे। तुम्हारा हर रूप धरा पर पुजनीय होगा।
भैरव के आठ रूप:-
भैरव के ये अष्ट रूप ही अष्ट विकार है।
1-असितांग भैरव, काम की अतिरिक्त वृद्धि को नष्ट कर प्रेम देता है।
2-चंड भैरव, मद को नष्ट कर ये दया भाव देता है।
3-रूरू भैरव,लोभ को नष्ट कर ये दान करने की प्रवर्ति देता है।
4-क्रोध भैरव, क्रोध को नष्ट करके ये शांति का भाव देता है।
5-उन्मत्त भैरव, असत्य को नष्ट करके ये सत्य भाव को देता है।
6-कपाल भैरव, ईर्ष्या को नष्ट करके छमा भाव को देता है।
7-भीषण भैरव,अहंकार अभिमान के भाव को नष्ट करके करुणा कृपा सेवा के भाव को प्रदान करता है।
8-संहार भैरव।हिंसा के भाव को नष्ट करके अहिंसा के भाव को प्रदान करता है।
इसलिए हम आपको भैरव पूजा विधि, हवन और भैरव साधना की विधि बताने जा रहे हैं। भैरव के भक्तों को रविवार, बुधवार साथ ही भैरव अष्टमी पर इन 8 नामों का ॐ लगाकर उच्चारण करना चाहिए। भैरव के नामों का उच्चारण करने से मनचाहा वरदान मिलता है। इसलिए हम अब आपको भैरव साधना बताएंगे:-
काल भैरव साधना विधि:-
1-काल भैरव भगवान शिव का अत्यन्त उग्र तथा तेजस्वी स्वरूप है।यो इनका ताबीज शुभ महूर्त में बनाकर गले में पहने,इससे इनकी शक्ति में से क्रोध और अहंकार का भाव साधक के शरीर में शांत रहता है।
2-सभी प्रकार के पूजन/हवन/प्रयोग में यज्ञ और मंत्र और उनके फल की रक्षार्थ इनका पुजन होता ही है।यो 8 जायफल यज्ञ के चारों कोनों पर रख कर बाद में उनकी यज्ञ में आहुति स्वरूप बलि चढ़ाई जाती है।
3-ब्रह्मा का पांचवां शीश खंडन भैरव ने ही किया था। इसलिए ज्ञान में आई बांधा या घर व्यापार आदि सभी जगहों पर आयी अनावश्यक कलहों की शांति के लिए भैरव को पूजना आवश्यक है।
4-इन्हें काशी का कोतवाल माना जाता है और सभी गांव या शहर के दोराहे-तिराहे-चोराहे सहित शहर में आने और जाने के सभी प्रमुख द्धारों का रखवाला और स्वामी माना जाता है, तो उन स्थानों पर तिल या सरसों के तेल का दीपक जककर विधिवत पूजन कर आप भैरव सहित अपने इष्ट और शिव को भी प्रसन्न कर सकते हैं।
5-काले रंग के वस्त्र धारण करें,सिर पर काला कपड़ा बांधे व् काले रंग का ही आसन लगाएं,और काली मनको की माला-रुद्राक्ष-गोमेद-काले अक़ीक़ से जप करें।काले तिल के तेल या सरसों के तेल से यज्ञ करें।और काला कपड़ा या काला स्वेटर या कम्बल व् काले कपड़े के जूते और काले रंग के रसगुल्ले आदि बाँटने चाहिए।
6-रात्रि के 11;30 से 12:30 के मध्य भैरव क्षण यानि समय में दिशा दक्षिण की ओर मुंह करके बैठें। दिन भी इसी समय जप करें।
7-भैरव साधना से भय का विनाश होता है।यो भैरव जी पर भी तेल सिंदूर से उनके मूर्ति पर चढ़ा कर उनकी शरीर की सेवा रविवार शनिवार बुधवार या अष्टमी को करी जाती है।
8-भैरव तंत्र बाधा, भूत बाधा तथा दुर्घटना से रक्षा प्रदायक है।यो भैरव यंत्र को पूजन कराकर या करके अपने घर की चोखट पर उलटी साइड को लगाना चाहिए।
अष्टमी तिथि प्रारंभ:-
शाम 6 बजकर 47 मिनट से 7 दिसंबर 2020 को है।
अष्टमी तिथि समाप्त – अगले दिन शाम 5 बजकर 17 मिनट तक 8 दिसंबर 2020 को है
भैरव सिद्धि शावर अनुभव सिद्ध मंत्र:-
ॐ नमो काला भैरो घूँघर वाला
हाथ खड्ग फूलों की माला
चौसठ योगनी संग चाला
देखो खोली नजर का ताला
राजा प्रजा ध्यावे तोहि
सबकी द्रष्टि बांध दे मोहि
मैं पुजू तुझको नित ध्याय
राजा प्रजा पांव लगा
भरी अथाही तुझको ध्याव
देखूँ भैरो तेरी शक्ति
शब्द साँचा पिंड कांचा
चले मंत्र गुरु का वांचा।।स्वाहा।।
इस सिद्ध शावर मंत्र को रात्रि में सरसों के तेल का दीपक पूजाघर में जलाकर अपने गुरु का नाम लेकर उन्हें नमन करके फिर 8 या 17 या 26 माला जप करने से सभी प्रकार के जादू टोने मुठ चोकी आदि कट कर, साधक में इस मंत्र में लिखे वचन सिद्ध हो जाते है।होली दीपावली ग्रहण और अष्टमी को अवश्य जप यज्ञ करें।और काले कुत्ते को श्रद्धा से भोजन खिलाये,तो मनचाहा कल्याण होगा।
वेसे तो गुरु मंत्र का जप करने वाले को सभी प्रकार के अष्ट विकार और उनसे उत्पन्न सभी प्रकार के भयों से मुक्ति स्वयं मिल जाती है और सर्व कल्याण होता है।ये विषय यहाँ केवल जो गुरु में श्रद्धा या गुरु मंत्र नहीं लेने में विश्वास करते है,उनके लिए और हिन्दू देवों की आराधना के इस विषय का साधनगत ज्ञान मेने दिया है।यो कहा है की-
गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु गुरु साक्षात् परब्रह्म।
गुरु ध्याये पाये सभी,गुरु में ध्यान मिटाये सभी भ्रम।।
तारक नाम सभी समय।
बोलो-सत्य ॐ सिद्धायै नमः।।
स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी
Www.satyasmeemission.org
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