माँ में तीन शब्द है प्रकट
म आ ओर अंग।
म मैं हूं सदा संग तेरे
आ आ लग कृपालु मुझ अंग।।
यहां मैं अहंकार रहित है
दाता बन जन अपना रूप।
आवाहन है सर्व जीव आत्मा।
अंग से उद्धभव ओंकार अनूप।।
किस मां को तुम सब जग ढूढों
जो तुम जननी है पूरक रूप।
उसे छोड़ प्रतिरूप पूजते
ओर मंगते बनते अज्ञात स्वरूप।।
जीवित ओर साक्षात मातृत्त्व छोड़कर
ढूंढे उस मृग की भांत।
जिसकी नाभि सुगंध कस्तूरी
घूमे दूर छोड़ निज नात।।
अबला भी संतान के कारण
संतान की विपदा सबल बने।
जनती म्रत्यु गोद छीनकर
लड़ती हर रक्षण घने।।
काल देख काली बनती
विपदा में बनती दुर्गा।
ज्ञान दायिनी बने सरस्वती
दाता बन लक्ष्मी अर्गा।।
स्त्री अर्थ माँ बन पूरक
माँ ही साक्षात है ईश्वर।
यो नमन करो अपनी जी माता
माँ ही अनहद तारक आत्म स्वर।।
योगी हो या हो भोगी
सबको जन्म माँ गर्भ मिले।
मां माँ पुकारो सर्व मंत्र से सिद्धि
केवल मां नाम सर्व काल खिले।।
जिस पर कोई मंत्र नहीं हो
न मिले सिद्ध गुरु दीक्षा।
केवल माँ माँ अखंड नाम जप
मनवांछित मिले वर विद्य शिक्षा।।
यो जब मन हो उदास तुम्हारा
नहीं मिले कोईं सहारा।
बस अपनी माता छू चरण जा
सब संकट मिटे कारज हो सारा।।
जय माँ जय माँ नाम पुकारो
जीवित माता सेवा करना।
जीते जी तर जाये जीवन
मां नाम जय जय आज ही करना।।
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी
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