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नेहरू परिवार के घर की पार्टी कांग्रेस …!वंशवादी पार्टी कांग्रेस …!परिवार के बाहर के लोग वंश के गुलाम!…नेहरू परिवार की बंधक कांग्रेस!’ आदि आदि।
कारण? साफ!
ये वे हैं ,जो कांग्रेस का अंतिम-संस्कार देखने को व्यग्र थे।ये क्रोधित कि विरोधियों के बुने जाल से कांग्रेस बच कैसे निकली?हाँ, ये एक “ट्रैप’ ही था।ये इस सचाई से अच्छी तरह वाकिफ थे कि ‘नेहरू-विहीन’ कांग्रेस के अस्तित्वहीन होने में विलंब नहीं होगा।जाल बुना गया।माहौल ऐसा बनाया गया कि ‘परिवार ‘ स्वयं को नेतृत्व की भूमिका से पृथक कर ले।लेकिन , ऐसा नहीं हो पाया ।राहुल गांधी के अडिग, बड़े ‘ना’ के बाद थोड़ी उथल-पुथल तो रही,अंततः दस्तक नेहरू के दरवाजे पर ही।तकनीकी रूप से अंतरिम, फिलहाल पुरी कमान सोनिया गांधी के हाथों में ।हाँ, कड़वा ही सही, सच है कि कांग्रेस का हर रास्ता ‘नेहरू-परिवार ‘ के दरवाजे तक जाता है ।कांग्रेसी रणनीतिकारों ने इस मोर्चे पर विरोधियों के मंसूबे पर पानी फेर दिया ।
फिलहाल अत्यंत ही मजबूत स्थिति में मौजूद भारतीय जनता पार्टी अगले 50 वर्षों तक सत्ता में बने रहने के मंसूबे की घोषणा कर चुकी है।इस इच्छा की पूर्ति तभी संभव है जब, एकमात्र राष्ट्रीय दल,भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस टूट-बिखर जाये।इसके लिए जरूरी कि कांग्रेस को नेहरू वंश-मुक्त किया जाए।क्योंकि, इसके बग़ैर मंसूबा-पूर्ति संभव नहीं ।
भाजपा नेतृत्व ये भूला नहीं है कि घोर विनाशकारी, आपातकाल की ‘पापिन’ इंदिरा गाँधी ने ,देश द्वारा ठुकरा दिये जाने के बावजूद , सत्ता में कैसे वापसी की थी!भाजपा ये भूली नहीं है कि 1991 में, राजीव गांधी की हत्या के बाद, जब सोनिया गांधी ने पार्टी और सरकार की कमान संभालने से इंकार कर दिया, नेतृत्व गैर -नेहरू हाथों में गया।अंजाम? कांग्रेस 8 वर्षों तक सत्ता से बाहर रही।इस बीच पार्टी अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुए।पार्टी के कद्दावर नेता, मराठा क्षत्रप शरद पवार को पराजित कर, बिहार के सीताराम केसरी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने।पार्टी रसातल में जाने लगी।अंततः चिरौरी कर,घोर अलोकतांत्रिक तरीके से ,केसरी को हटा सोनिया गांधी को अध्यक्ष बनाया गया।परिणाम? सोनिया के नेतृत्व में 2004 में कांग्रेस की वापसी हुई।तब लगातार 10 वर्षों तक कांग्रेस सत्ता में रही ।
इस इतिहास से परिचित भाजपा नहीं चाहती थी कि कांग्रेस की कमान नेहरू-परिवारके पास रहे!मित्र मीडिया की मदद से नेहरू विरोधी वातावरण बनाने की कोशिश की गई ।गैर-नेहरू कुछ नाम ऐसे उछाले गये जैसे उनकी ताजपोशी भर शेष है! लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।कांग्रेस अपने खिलाफ बुने जाल में नहीं फंसी।अंतरिम ही सही, सोनिया गांधी को अध्यक्ष की कुर्सी सौंप दी ।
और आगे?
पार्टी और देश की जरूरत को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस नेतृत्व,नेहरू परिवार की अपरिहार्यता को आगे भी नजरअंदाज नहीं कर पायेगा!
अगर कुछ तय है,तो यही!
कांग्रेस और नेहरू-परिवार विरोधियों का दर्द समझना कठिन नहीं!

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