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मैं काफी वक्त से चुनाव कवर करता आ रहा हूँ, 2014 के लोकसभा चुनाव भी कवर किये थे, इसके बाद महाराष्ट्र, बिहार, यूपी, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, एमपी, राजस्थान, छत्तीसगढ़ इत्यादि, और थोड़ा बहुत साउथ इंडिया भी कवर किया है। मतलब काफी बार लोकसभा, विधानसभा चुनाव कवर किये हैं। 2014 में पहली बार देखा कि शायद ही ऐसा कोई हो जो मोदी-मोदी के नाम की जयघोष न कर रहा हो… और जो परिणाम निकल कर आया वो चौंकाने वाला था, यानि लोग जितना मोदी-मोदी कर रहे थे उससे कहीं अच्छे वोट मोदी यानी बीजेपी/ एनडीए को मिले।
यही आलम मैंने दिल्ली के विधानसभा चुनावों में भी देखा। दिल्ली के विधानसभा चुनाव ठीक लोकसभा इलेक्शन के बाद आये। दिल्ली में भी लोग मोदी-मोदी करते नज़र आ रहे थे, कुछ ही लोगों के मुंह से आम आदमी पार्टी, केजरीवाल या कांग्रेस का नाम सुनने को मिल रहा था। 10 लोगों में से 7 लोग मोदी, 2 लोग केजरीवाल और 1 शीला दीक्षित कर रहे थे।
लेकिन जब परिणाम आमने आया तो विश्वास ही नहीं हुआ… AAP ने विधानसभा की 70 सीटों में से 67 सीटों पर कब्जा जमा लिया। बीजेपी महज 3 सीटों पर ही विजय पताका फहराने में कामयाब हो सकी। सबसे बुरी गत कांग्रेस की हुई, जो अपना खाता तक नहीं खोल पाई।
अब बारी बिहार की थी, बिहार में जब लोगों से मैंने पूंछा कि यहां तो चुनाव बिहार का हो रहा है यहां मोदी थोड़े न मुख्यमंत्री बनने आएंगे, कई लोग तो मेरे इस सवाल से भड़क गए थे… लगा कि जैसे यहां से जेडीयू, आरजेडी, कांग्रेस नहीं बल्कि अकेले मोदी मैदान में हैं और मोदी मोर्चा मारकर ले जाएंगे… जब परिणाम सामने आया तो रिजल्ट इस प्रकार था.. भाजपा-53, लोजपा-2, रालोसपा-2, हम (सेक्यूलर)-1 यानि एनडीए में चार दलों की कुल मिलाकर 58 सीटें आईं।
अब बात बाकी दलों की तो जदयू-71, आरजेडी–80, कांग्रेस-27 यानि यहां तीन पार्टियां महागठबंधन का हिस्सा थीं…।
इन चुनावों में एक खास बात और थी कि आरजेडी ने जेडीयू को ज्यादा सीटें दी थीं और कांग्रेस ने जितनी सीटों की मांग की उसे 5 सीटें फालतू दी गईं, लालू ने कम सीटें रहते भी अच्छी बढ़त हासिल की। लेकिन मोदी का जादू यहां एक बार फिर फीका दिखा जबकि माहौल वही मोदीमय था।
महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में लोग एनसीपी, शिवसेना, मोदी, कांग्रेस कर रहे थे… महाराष्ट्र की खिचड़ी वैसे भी मुझे समझ नहीं आई…। वहां की राजनीति… वहां के लोग भी नहीं समझ पाते हैं…. वहां कट्टर राजनीति होती है… एक दम साउथ इंडिया वाली, लोग एक दूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं…। यहां एनसीपी, शिवसेना, कांग्रेस, मनसे, बीजेपी इत्यादि का जबरदस्त दबदबा है… यहां ये दल क्षेत्रों में बटे हुए हैं। यहां बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी और शिवसेना का समर्थन रहा।
अब बात उत्तराखंड की.. तो 70 सीटों वाली उत्तराखंड में बीजेपी ने 57 सीटें जीतीं। जबकि कांग्रेस को सिर्फ 11 सीटें मिली। अन्य को 2 सीटें मिली… बीजेपी को प्रचंड बहुमत मिला… इससे पहले यहां पर कांग्रेस की सरकार थी.. लेकिन कांग्रेस को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा।
अब बात पंजाब की… यहां पर लोग अकालीदल से खफा थे और इसका फायदा केजरीवाल उठाने के मूढ़ में थे… सभी सर्वों के मुताबिक लगा भी कि यहां से केजरीवाल बाजी मार ले जाएंगे लेकिन कांग्रेस ने एकदम उलट पुलट कर दिया। पंजाब एक ऐसा अकेला राज्य मैंने देखा जहां मोदी मोदी नहीं बल्कि आप आप केजरीवाल केजरीवाल हो रहा था…।
लेकिन जब परिणाम सामने आए तो कैप्टन कूल परीक्षा में न केवल पास हुए बल्कि कांग्रेस को यह भी बता दिया कि कांग्रेस को बदलाव की जरूरत है यहां जादू राहुल का नहीं बल्कि कैप्टन का चलता है। और मोदी जादू यहाँ एक बार फिर फ्लॉप साबित हुआ।
अब बात हरियाणा की… तो हरियाणा में जब तत्काल सीएम के ऊपर हमला हुआ तो हम तभी समझ गए थे कि हरियाणा मोदी के अलावा किसी का नहीं… क्योंकि उस वक़्त थप्पड़ कांड चल रहा था… जो मोदी के खिलाफ खड़ा हो रहा था लोग जूट चप्पलों की बरसात कर रहे थे… शायद मेरी बात गलत लगी हो लेकिन इसकी जानकारी बाकी चैनल्स से ली जा सकती है।
जब हरियाणा के परिणाम सामने आए तो सभी दल मोदी के सामने धराशायी हो गए… और हर तरफ भगवा लहरा रहा था। इससे पहले यहां कांग्रेस की सत्ता थी।
अब बारी आती हौ यूपी की… चूंकि 2016 में नोटबन्दी हुई थी… नोटबन्दी से लोग इतने परेशान हुए थे कि पीएम मोदी के फैसले के खिलाफ लोग खुलकर गालियां दे रहे थे, तो कुछ लोग ऐसे भी थे जो मोदी का समर्थन कर रहे थे… उनका समर्थन देश के लिए था क्योंकि नोटबन्दी को देशहित में प्रचारित किया गया था… बताया गया था कि नोटबन्दी होने से नेता भूंखें हो जाएंगे… आतंकवादियों के साथ पाकिस्तान की कमर टूट जाएगी… नक्सलवादी आतंकियों का नामोनिशान मिट जाएगा…. यूपी में जब चुनाव हुए तो मायावती और अखिलेश के चहरे खिले हुए थे… मायावती चौथीबार यूपी की सत्ता पर काबिज होने का सपना देख चुकी थीं, लोग उनके पास विधानसभा का टिकट मांगने के लिए कतार लागकर खड़े थे, दिल्ली से सटे नोइडा में तो यह आलम था कि पूरा नोइडा मायावती के पोस्टर्स से पटा पड़ा था। मेरे एक बड़े अच्छे जानकार मायावती के करीबी थे उन्होंने तो वाकायदा मायावती के मुख्यमंत्री बनने की घोषणा कर डाली थी… जो लोग उनसे दूरियां बना रहे थे तो उन लोगों ने भी मायावती के जानकर के पास डेरा जमाना शुरू कर दिया था… मैंने उनसे कहा भी था कि देखिए कुछ भी हो सकता है… जरूरी नहीं कि पक्ष में ही मतदान हो, उन्हें मैंने चेताया भी कि हम लोगों से मालूम कर रहे हैं, लोग भले दर्द में हैं लेकिन उनका वोट देशहित में जा रहा है… और इसके बाद जब परिणाम आया तो… कुल 403 सीटों में से 324 पर बीजेपी गठबंधन, 54 पर एसपी-कांग्रेस गठबंधन, 19 पर बीएसपी और 6 सीटें अन्य के खाते में गई। यानि कि मायावती तो खत्म ही हो चुकी थी…. कांग्रेस के पास खोने के लिए पहले भी कुछ नहीं था लेकिन समाजवादी पार्टी ने जो खोया वो सपने में भी नहीं सोचा होगा। यूपी का मोदीमय माहौल अब योगिमय हो चुका था। मनोज सिन्हा के सपनों पर पानी फेर योगी मुख्यमंत्री की कुर्सी अपने साथ ले गए…।
बाकी कर्नाटक, गुजरात, एमपी, छत्तीसगढ़, राजस्थान के परिणाम तो आप सबके दिमाग में अभी होंगे। लेकिन एमपी और छत्तीसगढ़ के परिणाम चौंकाने वाले थे… यहां मैंने काफी कवरेज किया… मेरी टीम ने भी किया… माहौल सिर्फ मोदी के पक्ष में था। और छत्तीसगढ़ में रमन सिंह ने कार्य भी अच्छे किये थे… एमपी में मामा शिवराज भी अच्छे थे…लेकिन राजस्थान की महारानी की हालत खस्ता लग रही थी… लेकिन वहां भी वोट मोदी के नाम पे ही मांगे जा रहे थे… छत्तीसगढ़ में रमन सिंह बुरी तरह चित हुए इसकी उम्मीद बिल्कुल भी नहीं थी, राजस्थान में महारानी वसुंधरा हार कर भी जीत जाएंगी, वसुंधरा ने जिस तरह कांग्रेस को टक्कर दी उसकी उम्मीद बिल्कुल भी न थी… ।
कर्नाटक में मोदी का जादू कम और वहां स्थानीय नेताओं के नाम पर चुनाव ज्यादा लड़ा जा रहा था… लेकिन मोदी को कर्नाटक में नकारा नहीं जा सकता.. क्योंकि वहां कुछ लोगों को मैंने अपनी आँखों से मोदी-मोदी करते देखा… वहां कुछ लोग तो ऐसे थे जो उत्तरभारतीय थे… जिनमें से मेरे भी परिचित थे जो वर्षों से बैंगलोर जैसे बड़े महानगर में रह रहे हैं वो भी मोदी-मोदी करते दिखे।
खैर यह राजनीति है और राजनीति में लोगों की अपनी-अपनी समझ होती है… जो भी हो… मोदी का जादू जरूर रहा है… मैंने जितने भी राज्य कवर किये उनमें से भले कुछ में मोदी की हार हुई हो… हार के कारण जो भी रहे हों लेकिन मोदी के प्रति लोगों में दीवानगी ऐसी दिखी जैसे साउथ में एनटीआर, जयललिता, कंरुणानिधि जैसे सरीखे नेताओं के प्रसंशकों की देखने को मिलती रही है। या मिलती थी।
2019 के लोकसभा चुनावों के 4 चरण समाप्त हो चुके हैं… माहौल अब भी मोदीमय है। 23 मई को साफ हो जाएगा कि मोदी होंगे या कोई नया सामने आएगा…।
वैसे एक बात जो सोचने वाली है कि सोशल मीडिया का जादू इतना हो सकता है… और मोदी का सोशल मैनेजमेंट इतना शानदार हो सकता है ऐसा पहले कभी देखने सुनने को नहीं मिला…।
शायद उस वक़्त जियो नहीं था ना। 😊😊

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