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किस उंगली पर करें मंत्र जप, क्या होता है इसका मतलब और लाभ? बता रहे हैं सद्गुरु स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज

अपने ईश्वर के निकटतम जाने के लिए, अपनी मनोकामनाओं की पूर्ती के लिए, आत्मसुद्धि, आत्मा की शांति, दुखों से मुक्ति, रोगों से मुक्ति, स्वस्थ जीवन इत्यादि के लिए हम अपने ईष्ट प्रभु के मंत्रों का जप करते हैं। कहते हैं मंत्र जपने से सभी संकट दूर हो जाते हैं।

सद्गुरु स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज आज मंत्र जपने के बारे में, उसके तरीके के बारे में बता रहे हैं। स्वामी जी बता रहे हैं कि कैसे और किस उंगली पर मंत्रों का जप करें?

सद्गुरु स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज के अनुसार मंत्र जप के भी कुछ नियम हैं। उनका पालन करने से शीघ्र और निश्चित फल मिलता है। स्वामी जी कहते हैं कि – कई बार लोगों की शिकायत रहती है कि उन्होंने काफी जप किया लेकिन अपेक्षित फल नहीं मिल सका। स्वामी जी बताते हैं कि उनके जप के तौर-तरीके का विश्लेषण कर मैंने पाया है कि उनमें से अधिकतर मंत्र जप के तरीके को ठीक से न जानने के कारण पर्याप्त संख्या में जप करके भी काफी हद तक खाली रह जाते हैं। हालांकि सिक्के का दूसरा पहलू यह भी है कि अधिकतर मंत्रों के जप पूरी तरह से निष्फल नहीं हो सकते हैं, उसका फायदा अवश्य मिलता है लेकिन अनियमित तरीके से या गले उंगली में मंत्र का जप करने से फल में विलंब या कमी अवश्य हो सकती है।

!!🌞सत्यास्मि वचन🌝!!

किस ऊँगली पर मंत्र जप करना चाहिए…

तर्जनी ऊँगली गुरु की
और गुरु त्रिदेव स्वरूप।
गुरु बिन ज्ञान न मोक्ष मिले
गुरु मंत्र परमात्म स्वरूप।।
गुरु त्यगे सब गया
ना मिले चारों कर्म।
अर्थ काम धर्म मोक्ष
गुरु ही दे सब धर्म।।
यो गुरु ऊँगली पर जप करो
पाओ पांचों वरदान।
शिक्षा विवाह संतान सफलता
अंत में पाओ मोक्ष महान।।

हे शिष्य-पहली यानि तर्जनी ऊँगली को गुरु की ऊँगली कहते है। और गुरु की ऊँगली पकड़कर जो भी शिष्य चलता है,वह अर्थ काम धर्म और मोक्ष को सहज रूप से ही पा जाता है।क्योकि गुरु ही दीक्षा देकर शिष्य को देवताओं का जन्म और देवताओं का शरीर देता है।और गुरु ही ब्रह्मा विष्णु शिव और सरस्वती लक्ष्मी दस विद्या श्रीशक्ति का साक्षात् स्वरूप है और गुरु ही मंत्र विद्या और ब्रह्म विद्या का दाता है।यो जो गुरु यानि तर्जनी ऊँगली से अपने गुरु का दिया मंत्र जप करता है,वो सभी भौतिक वरदान-शिक्षा-नोकरी-विवाह-संतान और अंत में मोक्ष की सहज प्राप्ति करता है।और अंगूठा आत्मा का स्वरूप है और अंगूठे के सबसे निकट गुरु यानि तर्जनी ऊँगली यो ही होती है की-ये ही आत्मा का सम्पूर्ण ज्ञान देती है।यो सभी मूर्खता त्याग कर अपनी जप माला को अंगूठे यानि आत्मा और तर्जनी यानि गुरु ऊँगली से पकड़ कर जप रूपी कर्म करो और सभी वरदान की प्राप्ति करो।

मंत्र जप करने के तरीके जिससे होगा फायदा :

1-यदि किसी मकसद/लक्ष्य के लिए जप कर रहे हों तो पहले उसके लिए कामना के साथ मंत्र जप का संकल्प लें। उस समय जप संख्या, हवन, तर्पण (यदि करना हो) आदि निश्चित कर लें। फिर तदनुसार ही जप करें।
2-जप करने से पूर्व स्नानादि कर साफ-सुथरा होकर साफ स्थान-देवालय, सूना घर, पूजा स्थान आदि (जो भी निर्धारित हो) में साफ आसन (आवश्यकतानुसार-कुश, कंबल, मृग छाला आदि) पर बैठककर जप करें।
3-मंत्र जप का समय, स्थान और संख्या को जप शुरू करने से पहले ही निश्चित कर लें और उसी समय, स्थान और संख्या का नियत तरीके से जप करें। इसमें कोई परिवर्तन नहीं होना चाहिए। यदि बीच में कोई बाधा आती है तो फिर से संकल्प लेकर जप शुरू करना श्रेयस्कर होता है।
4-माला पर जप करना सबसे अच्छा होता है। माला किस तरह का हो, वह मंत्र पर निर्भर करता है। जैसे-शिव के मंत्र के लिए रूद्राक्ष सबसे अच्छा है तो बगलामुखी के लिए हल्दी की माला पर जप सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। माला को साफ और बिना टूट-फूट व दाग के कपड़े में लपेट कर रखें। कपड़े को इस तरह से सिलाकर तैयार करें कि (गोमुखी बनाएं) जिससे जप के दौरान भी माला पूरी तरह से ढका रहे। गोमुखी में से तर्जनी उंगली बाहर रहनी चाहिए। माला से जप करते समय उसके पोर का उल्लंघन नहीं होना चाहिए। उंगलियों पर भी मंत्र जप किया जा सकता है लेकिन ज्यादा संख्या में उंगली पर जप करना कठिन होता है। बदलते जमाने के साथ-साथ कुछ लोगों ने काउंटर (गिनती गिनने के लिए) शुरू किया है। मेरा अनुभव है कि इस पर भी फल मिलता है।
5-मंत्र जप के दौरान उसका उच्चारण सिर्फ इतना हो कि होंठ हिले लेकिन उसकी आवाज सुनकर पास बैठा आदमी भी उसे समझ न सके। कुछ लोग मानसिक जप भी कर लेते हैं लेकिन सामान्य उपासक के लिए सिर्फ होंठ हिलाते हुए लगभग अपने तक ही सिमटी आवाज में मंत्र जप करना चाहिए।
6-मंत्रों के जप का सर्वश्रेष्ठ तरीका यह है कि मंत्रों का तालमेल उपासक के सांस से हो। अर्थात यदि मंत्र के जप के दौरान उसके कोई हिस्से को सांस छोड़ते हुए कर रहे हों तो हर बार उस हिस्से को सांस छोड़ते हुए ही करें।
7-जप के दौरान मंत्र के देवी या देवता का लगातार ध्यान करते रहें। इसी कारण मंत्र जप से पहले ध्यान का विधान है ताकि साधक के मन में मंत्र के देवता का चित्र खिंच जाए और वह स्थिर रहे। जप के दौरान हड़बड़ी न करें। अर्थात तेजी से मंत्र जप करना अच्छा नहीं होता है। जितना समय हो उतना ही जप करें और शांतचित्त से स्थिर होकर करें।
8-जप के समय बैठने के तरीके में बार-बार बदलाव न करें। जप के दौरान खुजली, पसीना पोंछना, शरीर के खास हिस्से में दर्द आदि पर से ध्यान हटाकर स्थिर चित्त से जप पर ही ध्यान केंद्रीत रखें।
9-साधना काल में जिस देवी-देवता के मंत्र का जप कर रहे हों, उसी अनुरूप भोजन, वस्त्र, आसान आदि का चुनाव करें। जैसे-बगलामुखी की साधना के दौरान पीत वस्त्र, पीला भोजन आदि ज्यादा उपयुक्त होता है।
10-विद्वानों का मानना है कि सामान्य रूप में किसी भी वैदिक एवं तांत्रिक मंत्र (कुछ को छोड़कर) को तब तक पूर्ण नहीं माना जाता है, जब तक हवन न हो। उनका मानना है कि मंत्र यदि शरीर है तो हवन उसकी आत्मा। जिस तरह आत्मा के बिना शरीर निष्प्रभावी है, उसी तरह हवन के बिना मंत्र की स्थिति होती है। यह काफी हद तक सही भी है।

11-बावजूद इसके यदि उपरोक्त कोई बात करना संभव न हो तो भी चिंता की बात नहीं। मैंने अनुभव किया है कि तंत्र क्षेत्र के अधिकतर मंत्र बिना नियम, ध्यान एवं हवन के भी फल देते हैं। कुछ मंत्रों में तो बकायदा उल्लेख है कि उपरोक्त कोई शर्त उसके पुरश्चरण के लिए जरूरी नहीं है। आप बिस्तर पर बैठकर या टहलते हुए बी मंत्र का जप कर सकते हैं। ऐसे साधकों को यह जरूर चाहिए कि वह अपनी रूचि, क्षमता और जरूरत के हिसाब से मंत्रों का चयन करे ताकि उसे अधिकाधिक लाभ मिल सके।

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स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
www.satyasmeemission.org

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