इनमें शौचालय जाने पर अधिकतर में शुल्क लिया जाता है। पहले यह शुल्क शौच जाने के लिए 2 रुपये और पेशाब का एक रुपया या निशुल्क होता था। लेकिन समय के साथ इनका भी शुल्क बढ़ गया। अब सौच के लिए 5 रुपया और पेशाब के लिए 2 रुपये लिए जाते हैं।
लेकिन कई जगह पर देखेंगे कि इन शौचालय वालों ने धंधा बना लिया है, मजबूरी का धंधा। जी हां सही कहा “मजबूरी का धंधा।” मजबूरी में शौचालय के लिए 5 रुपये के 10 रुपये कहीं कहीं तो 20 रुपये तक शुल्क के रूप में वसूल कर लिया जाते हैं। जिसे ये लोग सुविधा शुल्क का नाम देते हैं।
और सुविधाओं के नाम पर घटिया और गंदे शौचालय।
जब इनसे कुछ कहा जाय तो कहते हैं “घर पर करके आया करो” और जब बहस बढ़ जाती है तो उस वक़्त ये अपना चांडाल रूप धारण कर लेते हैं। मतलब ये “शौचालय गैंग” डराने धमकाने लग जाते हैं। पूरा गुंडों का गैंग एकत्र हो जाता है और जबरन वसूली करने लग जाता है। कभी कभार तो बातचीत मारपीट का रूप धारण कर लेती है।
“लेकिन 2-5-10-20 रुपये में होता क्या है” हम उसे इग्नोर कर आगे बढ़ जाते हैं, हम विरोध करने से कतराते हैं। लेकिन आप जरा सोचिए। हम और आप सक्षम है 5-10-20-50-100 रुपये देने में। लेकिन जो सक्षम नहीं हैं वो क्या करेंगे?
वो ऐसे में बाहर शौच करने जायेगें यानि ज्यादा शुल्क होने की वजह से “खुले में शौच” करने जाएंगे। ऐसे में स्वच्छ भारत अभियान का मतलब ही नहीं रह जाता। क्योंकि बाहर सौच जाने वाले लोगों की संख्या कम नहीं बल्कि सक्षम लोगों से बहुत ज्यादा है। आप रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, या बहुत सी ऐसी सार्वजनिक जगह देख लीजिए जहां पेशाब से दीवारें लाल पीली नहीं हुई पड़ी होंगी। वहां से गुजरना और सांस लेना दुर्भर हो जाता है।
हमें और आपको ऐसे लोगों की शिकायत करनी होगी। इन्हें उजागर करना होगा। भारत को स्वच्छ बनाने में हम सबकी जिम्मेदारी है। सरकार सुविधा देती है और लोग सुविधा का भी धंधा बना लेते हैं।
इसी का एक वीडियो आपके सामने है आप देखकर खुद फैसला करें। नई दिल्ली रेलवे स्टेशन का यह वीडियो है इसमें आप देख सकते हैं कि कैसे शौचालय वाले सुविधाओं के नाम पर वसूली कर रहे हैं।