किन्नरों के प्रथम पूज्यदेव है-पांडु पुत्र अर्जुन,जो उर्वशी के शाप से ब्रह्नल्ला यानि किन्नर बने,पर ये एक पुरुष का कुछ समय के लिए किन्नर बन जाना मात्र है,जबकि कोई सम्पूर्ण किन्नर उत्पन्न हुआ देव या देवी इनका इष्ट होना चाहिये था। जो की नहीं है।
वैसे महाभारत की अंबा ही आगामी जन्म में शिखंडी किन्नर बनकर पैदा हुयी थी,जिसे द्रोणाचार्य ने शिष्य बनाकर उसके स्त्री शरीर को पुरुष शरीर समान बलशाली बनाकर धनुर्विद्या सिखाई थी।वो भी इनमें कुछ अंश तक पूज्य हैं।
शिव और शक्ति का या ईश्वर और ईश्वरी का समल्लित रूप अर्द्धनारीश्वर या अर्द्धनारेश्वर रूप भी पूज्य है,जो वास्तव में पुरुष का ही प्राकृतिक रूप है,क्योकि पुरुष में ही ऋण और धन एक साथ होते है,और जब पुरुष के इस ऋण और धन रूप यानि अर्द्धनारीश्वर या अर्द्धनारेश्वर को जब आप केवल ऋण और धन के रूप में चित्रित करके देखेंगे,तब आपको लगेगा की-ये स्त्री और पुरुष का जुड़ा हुआ रूप है,जबकि वो केवल और केवल पुरुष का आंतरिक रूप ही है।यो ये अर्द्धनारीश्वर या अर्द्धनारेश्वर रूप भी पुरुष की उपासना है।
अतः ये किन्नर अखाडा भी पुरुषवादी अखाडा ही सिद्ध हुआ।
और इस अखाड़े में भी, जो पुरुष किन्नर है, यानि जो पुरुष पैदा हुए और जिनके शारारिक लिंग से स्त्री लिंग में परिवर्तन है,वे ही इसमें अपना पुरुषवादी वर्चस्व बनाये रखते है,क्योकि यहाँ जो मूल में स्त्री किन्नर पैदा हुयी है,और उनका शरीर का लिंग योनि की जगहां पुरुष लिंग में परिवर्तित हुआ है यानि अर्ध लिंग योनि का मिश्रित रूप,वे स्त्री किन्नर भी स्त्रियों के भांति ही इस किन्नर सम्प्रदाय में दूसरे नम्बर पर आती है।यो यहाँ मूल में भी पुरुषवाद ही है।
शास्त्र मान्यता:-
यो ये न पूर्ण स्त्री शरीर है और पूर्ण रूप से पुरुष शरीर हैं,ये केवल जीवित बीज शरीर है।यो ये मोक्ष के अधिकारी नहीं है,यानि इनका मोक्ष नहीं हो सकता है,इन्हें पहले किसी एक स्त्री या पुरुष शरीर में जन्म लेना पड़ेगा,तब इनका योग प्रारम्भ होगा और इन्हें मुक्ति का मार्ग मिलेगा।यो ये उपासना के अधिकारी है,पर मुक्ति के नहीं,मुक्ति यानि सर्वोच्च अवस्था के अधिकारी नहीं है।यो ये कुम्भ नहाये या नहीं नहाये,कोई विशेष अंतर नहीं पड़ता है।और नाही ये किसी पूर्ण पुरुष या स्त्री को योग दीक्षा दे सकते है,केवल अपने ही किन्नरों को किन्नर के सिद्धांत पर चलने का ज्ञान मार्ग बता सकते है और उस सम्बंधित किन्नरी दीक्षा दे सकते हैं।
किन्नरो के विषय में निम्न ऐतिहासिक कथाएँ:-
हिन्दू धर्म में ऐसे कई देवी-देवता है, जो अपनी विशेषताओं के लिए प्रसिद्ध है।जैसे भगवान शिव को दैत्य और देवता सभी के भगवान के रूप में जाना जाता है।वहीं श्रीकृष्ण को धर्म और प्रेम के देवता के रूप में माना जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि किन्नर किसे अपने देवता के रूप में पूजते हैं।वास्तव में अर्जुन और उलुपी के पुत्र ‘अरावन’ किन्नरों के देवता है। खास बात ये हैं कि किन्नर इस देवता को केवल पूजते ही नहीं बल्कि इनके साथ विवाह भी रचाते हैं।
महाभारत की कथा के अनुसार एक बार अर्जुन को, द्रौपदी से शादी की एक शर्त के उल्लंघन के कारण इंद्रप्रस्थ से निष्कासित करके एक साल की तीर्थयात्रा पर भेजा जाता है। वहां से निकलने के बाद अर्जुन उत्तर पूर्व भारत में जाते है जहां उनकी भेंट एक विधवा नाग राजकुमारी उलूपी से होती है।दोनों एक-दूसरे से प्रेम करने लगते हैं। विवाह के कुछ समय पश्चात, उलूपी एक पुत्र को जन्म देती है जिसका नाम अरावन रखा जाता है। पुत्र जन्म के पश्चात अर्जुन उन दोनों को छोड़कर अपनी आगे की यात्रा पर निकल जाते हैं।
अरावन नागलोक में अपनी मां के साथ ही रहते हैं। युवा होने पर वो नागलोक छोड़कर अपने पिता के पास आ जाते हैं। कुरुक्षेत्र में महाभारत के युद्ध के दौरान अर्जुन उसे युद्ध करने के लिए रणभूमि में भेज देते हैं। युद्ध में एक समय ऐसा आता है। जब पांडवो को अपनी जीत के लिए मां काली के चरणों में नर बलि हेतु एक राजकुमार की जरुरत पड़ती है। जब कोई भी राजकुमार आगे नहीं आता है तो अरावन खुद को नर बलि हेतु प्रस्तुत करता है। लेकिन वो शर्त रखता है कि वो अविवाहित नहीं मरेगा।
अब इस शर्त के कारण बड़ा संकट उत्पन्न हो जाता है। क्योंकि कोई भी राजा, यह जानते हुए कि अगले दिन उसकी बेटी विधवा हो जायेगी, अरावन से अपनी बेटी की शादी के लिए तैयार नहीं होता।जब कोई मार्ग नहीं बचता है तो भगवान श्रीकृष्ण स्वंय को मोहिनी रूप में बदलकर अरावन से शादी करते है। अगले दिन अरावन स्वंय अपने हाथों से अपना शीश मां काली के चरणों में अर्पित करता है।यो यहां भी पुरुष का विवाह झूठ की स्त्री बने एक पुरुष से ही हुआ है।यो दोनों और पुरुष ही है।यो ये पुरुषवादी अखाडा ही है।
वर्तमान में हिजड़ों के लिए भी किन्नर शब्द का प्रयोग किया जाता है। मध्य प्रदेश के उच्च न्यायालय ने फ़ैसला सुनाया है कि हिजड़े पुरुष ही हैं और उन्हें महिला नहीं माना जा सकता। उच्च न्यायालय ने एक निचली अदालत के उस फ़ैसले को बरक़रार रखा है कि हिजड़े ‘तकनीकी ‘तौर पर पुरुष ही होते हैं।
किन्नर अखाड़ा साल 2016 में उज्जैन में हुए कुंभ के दौरान अस्तित्व में आया था और उसी दौरान इसकी स्थापना की गई थी।
जिस समय किन्नर अखाड़े की स्थापना हुई तब लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी को किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर के तौर पर नियुक्त किया गया था।इस अखाड़े को जूना गढ़ ने अपना समर्थन दिया था।
किन्नर अखाड़े में महामंडलेश्वर की संख्या 5 है और इस वर्ष 2019 में इस अखाड़े में लगभग 2500 की संख्या में साधु शामिल होने की उम्मीद है।
किन्नरों की विश्व भर में ये अपनी नई धार्मिक पहचान बनाने के उद्धेश्य से की गयी पहल का सत्यास्मि मिशन सह्रदय से स्वागत करता है।
सत्यसाहिब स्वामी सत्येंद्र जी महाराज
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
www.satyasmeemission.org