Breaking News
BigRoz Big Roz
Home / Breaking News / वैदिक महानारी घोषा की रोगमुक्ति व पूर्णिमाँ पूराण से आत्मसाक्षात्कारी कथा बता रहे हैं महायोगी संत श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज

वैदिक महानारी घोषा की रोगमुक्ति व पूर्णिमाँ पूराण से आत्मसाक्षात्कारी कथा बता रहे हैं महायोगी संत श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज


वैदिक महानारी घोषा की रोगमुक्ति से आत्मसाक्षात्कारी कथा(पूर्णिमाँ पुराण से) को भक्तों को महायोगी स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी बता रहें है…


ऋग्वेद के अनुसार घोषा एक नारी ऋषि थीं। वहाँ दो मंत्रों में घोषा को अश्विनीकुमारों द्वारा संरक्षित कहा गया है। सायण के मतानुसार उसका पुत्र सुहस्त्य ऋग्वेद के एक अस्पष्ट मंत्र में उल्लेखित है।
घोषा कक्षीवान की पुत्री बताई गई है। वह समस्त आश्रमवासियों की लाडली थी, किंतु बाल्यावस्था में ही रोग से उसका शरीर विकृत हो गया था।
शरीर विकृति के कारण उससे किसी ने भी विवाह करना स्वीकार नहीं किया। वह अधेड़ आयु की वृद्धा हो गयी।
एक बार घोषा अपने आश्रम के वन में एक सरोवर के पास एकांत में बेठी थी। तभी उसे अचानक स्मरण आया कि उसके पिता कक्षीवान ने भी अश्विनीकुमारों की कृपा से आयु, शक्ति तथा स्वास्थ्य का लाभ प्राप्त किया था।परन्तु वो उपासना यज्ञादि विधि क्या थी? वो उसे ज्ञात नही थी? तब उसने इस विषय में ज्ञान लेने का निश्चय किया और इस खोज में वो ब्रह्मर्षि विश्वामित्र के आश्रम पहुँची और वहाँ उसने उन्हें नमन करने के उपरांत उनसे अपनी रोगमुक्ति के लिए अश्वनिकुमारों का अपने पिता को स्वस्थ देने वाले यज्ञानुष्ठान की लुप्त प्राय विधि के विषय में पूछा। तो विश्वामित्र बोले की पुत्री मैं तुम्हें वो दिव्य ज्ञान प्राप्त करता हूँ और उसकी साधना करने से तुम्हारा अवश्य कल्याण होगा। तब उन्होंने घोषा को शक्ति दीक्षा देकर उसे अश्वनिकुमारों का आवाहन का महामंत्र दिया। जिसे जानकर घोषा ने तपस्या प्रारम्भ की। साठ वर्षीय वह घोषा, इस तपस्या के फलस्वरुप अश्वनिकुमारों के अनेक दिव्य मन्त्रों की मन्त्रद्रष्टा हुई। जिससे उचित रूप से उच्चारित करते हुए अश्विनीकुमारों का स्वतन किया।
अश्विनीकुमारों ने घोषा पर प्रसन्न होकर दर्शन दिये और उसकी उत्कट आकांक्षा जानकर उसे नीरोग कर रूप-यौवन प्रदान किया। साथ ही उसे एक दिव्य वीणा भी दी की इस वीणा का नाम घोषा होगा। इस पर केवल देवताओं की आराधना हेतु दिव्य संगीत को उच्चस्तरीय वीणावादक विद्याधरों का वादन हुआ करेगा और तुम्हारे को प्राप्त इस घोषा वीणा को देवता ही विद्याधरों को वरदान स्वरूप स्वरसाधना हेतु प्रदान करेंगे।इस आशीर्वाद से घोषा की तपस्या पूर्ण हुयी। उसे मनचाहा वरदान व् स्वस्थ मिला। उसे दिव्य योवन की प्राप्ति हुयी। तब घोषा ने तपस्या से लोट कर ब्रह्मर्षि विश्वामित्र को ये सब दर्शन उपलब्धि बताई। उनसे आशीर्वाद पाया और आगामी ग्रहस्थ जीवन के विषय में ईश्वरीय वेदिक ज्ञान क्या है? इसका ज्ञानदान की इच्छा व्यक्त की, तब ब्रह्मर्षि बोले हे-घोषा पुत्री ये ज्ञान मैं तुम्हें प्रदान कर सकता हूँ, परंतु तुम इस विषय के गहन प्रयोगिक रहस्य को जानने के लिए महासती अनसूया के निकट जाओं। उनसे ये ग्रहस्थ में आत्मसाक्षात्कार की वैदिक विधि पूछो। तब घोषा वहाँ से महासती अनसूया के आश्रम पहुँची। उन्हें नमन कर अपनी सारी पूर्व से वर्तमान और ब्रह्मर्षि विश्वामित्र की आपके पास भेजने की कथा सुनाई। तब अनसूया ने उन्हें अपने निकट आश्रम में रखा और नियमित रूप से एक एक करके प्रयोगिक ग्रहस्थ में वेदिक रीति से भोग और योग के संतुलन के मध्य, कैसे अपनी ही आत्मशक्ति के दो अर्द्धभाग पति और पत्नी की ऊर्जाशक्ति को अपने में समल्लित करते हुए उसका दिव्यांतरण करते कुण्डलिनी जाग्रत करें, और स्वयं में ही कैसे आत्ममन्त्र चिंतन सहित आत्मध्यान करते हुए आत्मसाक्षात्कार पाये। यही महाज्ञान जो वेदों में संक्षिप्त रूप से है। उसे गुरु मुख से उनके समीप बैठ सुनना और समझना चाहिए। ये सब समझ घोषा ने उन्हें नमन करते हुए अपने आश्रम की और प्रस्थान किया। जहाँ उन्होंने अपनी स्वेच्छा से एक वेदिक ऋषि श्रीष्य् से विवाह किया और उनके साथ सती अनसूया से प्राप्त किया दिव्यज्ञान की आत्मसाधना की और अपने स्वयं में ही जीवन्त ईश्वर की पूर्णिमाँ यानि पूर्णत्त्व की प्राप्ति की। यो महानारी घोषा ने स्वयं के आत्मपरिश्रम के बल से श्री गुरु कृपा और अश्विनीकुमारों की कृपा से उसने पुत्र धन आदि भी प्राप्त किये और अनेक वीणावादकों पर समय समय पर ये दिव्य घोषा नामक वीणा से स्वर संगीत साधना में सफलता की प्राप्ति हुयी। हे-स्त्री इस घोषा की आत्मसंघर्ष से सम्पूर्ण सफलता पाने की दिव्य कथा से ये ज्ञान प्राप्त होता है, की अपने रोग कष्टों से मुक्ति पाने का मार्ग पथभृष्ट हो जाना या आत्महत्या करना या ईश्वर को दोषी ठहराना आदि नही है, बल्कि उसे स्वयं के आत्मबल का विकास करना और कठिन महनत करनी चाहिए। तब अवश्य घोषा की तरहां सम्पूर्ण मनोकामना की प्राप्ति व् आत्मसाक्षात्कार की प्राप्ति होती है।
यो सत्यास्मि दर्शन कहता है की-


भौतिक बल से बड़ा बल
आध्यामिक अति महान।
हे-नारी सीख घोषा गृहस्थी चरित्र
आत्मसाक्षात्कारी अहम् सत्यास्मि ज्ञान।।



श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येंद्र जी महाराज
जय वैदिक महानारी घोषा की जय
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
www.satyasmeemission.org

Follow us :

Check Also

कथित Dog Lovers ने जयेश देसाई को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी

आजकल एनिमल लवर्स का ऐसा ट्रेंड चल गया है कि जरा कुछ हो जाये लोग …

Leave a Reply

error

Enjoy khabar 24 Express? Please spread the word :)

RSS
Follow by Email
YouTube
YouTube
Pinterest
Pinterest
fb-share-icon
LinkedIn
LinkedIn
Share
Instagram
Telegram
WhatsApp