अनेक धार्मिक जिज्ञासु विद्धानों ने सत्यास्मि धर्म ग्रन्थ का अध्ययन कर ये प्रश्न किया की- इस ज्ञान का प्रमाण क्या है? की आपके प्रकाशित सत्यास्मि धर्म ग्रन्थ में दिए पुरुष युगों के उपरांत स्त्रियुगों और बीजयुगों की घोषणा है? जबकि सभी धर्म ग्रन्थ घोषणा कर रहे है की चार पुरुष युगों के महाप्रलय में सभी समाप्त हो जायेगा। उसके बाद कोई नवीन युग और सृष्टि का उल्लेख नही है। तब कैसे इसे प्रमाणित करते है?
तब इसका उत्तर सत्यास्मि में इस प्रकार से दिया है की- मूल ईश्वर के तीन गुण है जो- तम-रज और सत्, जो पुरुष स्त्री और बीज यानि इलेक्ट्रॉन न्यूट्रॉन प्रोटॉन नाम से विज्ञानवत कहे जाते है। तब स्वभाविक ही सिद्ध होता है की जब पुरुष तत्व का युग हुआ है, तो स्त्री का भी होगा, और बीज का भी होगा।दूसरी बात प्रलय का अर्थ समाप्त होना नही है।इसका सत्य अर्थ एक तत्व का दूसरे तत्व के रूप में रूपांतरित होना या सहयोग अर्थ है, जैसे-ऊर्जा नष्ट नही होती वो रूपांतरित होती है। यो ये जो तीन गुण है, उनमे किसी एक की अधिकता एक युग में अधिक होती है,दूसरे युग में किसी और तत्व की अधिकता होगी और पहले तत्व की कम होगी, जैसे-कभी तम् गुण की अधिकता दूसरे रज और सत् से अधिक रहती है। तब संसार भिन्न प्रकार का होता है। उस समय के जीव अन्य प्रकार के होते है। और जब तम् की अधिकता उसके उपयोग से घटती जाती है, तब रज गुण की व्रद्धि होती है। यो तम गुण का रज गुण में अधिकांश विलय के साथ ही आगामी सत् गुण की भी व्रद्धि व् विस्तार सन्तुलन को होता है। यही एक का दूसरे में समाहित होना ही, पर माने दूसरे में लय यानि प्रलय कहलाता है। महाप्रलय का अर्थ है-कि तीनों गुणों का परस्पर लय होना और मूल तत्व में स्थित होना है। जो बीजवस्था कहलाती है। जिससे यानि बीज से पुनः समयांतर में सृष्टि होती है। जिसका उल्लेख सभी धर्मग्रन्थों में यूँ किया है की प्रलय के उपरांत सभी मृत मनुष्य आत्मा ईश्वर के समक्ष अपने कर्मों के आगामी परिणामों के लिए खड़ी हो जाएँगी यानि पुनः जीवित होंगी। जबकि ये प्रलय कब होगी कोई ज्ञात नही है। कहा है ईश्वर ही इसे जानता है। अर्थात आत्माओं का सम्पूर्ण समाप्ति कहाँ सिद्ध हुयी? अर्थात फिर से नवीन सृष्टि होगी, ये सिद्ध होता है। यही सत्यास्मि में सच्चा अर्थ और ज्ञान है, की पुरुष युग में स्त्री ने पुरुषो के सम्पूर्णत्त्व को अपना सहयोग दिया। चूँकि कोई एक ही एक समय में सम्पूर्ण हो सकता है। जैसे एक गुण। यो पुरुष युगों के उपरांत स्त्री युग स्वयं आना सिद्ध होता है। जो की वर्तमान में चल रहा है। यहॉ पुरुष अब स्त्री के सर्वभौमिक विकास में अपना सम्पूर्ण सहयोग दे रहा है।
और पुराणों में भी अनेक मनुओं और आगामी युगों की भविष्यवाणी है। जो वहीं से ली गयी है जिसे आप यहा पढ़े—
स्वायंभुव मनु:-
14 मन्वन्तर के 14 मनु कहे गए हैं। अब तक 7 मनु हुए हैं और 7 होना बाकी है। प्रथम स्वायम्भुव मनु, दूसरे स्वरोचिष, तीसरे उत्तम, चौथे तामस, पांचवें रैवत, छठे चाक्षुष तथा सातवें वैवस्वत मनु कहलाते हैं। वैवस्वत मनु ही वर्तमान कल्प के मनु है। इसके बाद सावर्णि, दक्ष सावर्णि, ब्रह्म सावर्णि, धर्म सावर्णि, रुद्र सावर्णि, .रौच्य या देव सावर्णि और भौत या इन्द्र सावर्णि नाम से मनु होंगे। प्रथम मन्वन्तर के मनु स्वायंभुव मनु को प्रथम मानव कहा गया है।शास्त्र कहते हैं की- सप्तचरुतीर्थ के पास वितस्ता नदी की शाखा देविका नदी के तट पर मनुष्य जाति की उत्पत्ति हुई है। इनकी पत्नीं का नाम शतरूपा था। स्वायंभुव मनु एवं शतरूपा के कुल पांच सन्तानें थीं। जिनमें से दो पुत्र प्रियव्रत एवं उत्तानपाद तथा तीन कन्याएं आकूति, देवहूति और प्रसूति थे। मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलह, कर्तु, पुलस्त्य तथा वशिष्ठ।-ये सात ब्रह्माजी के पुत्र उत्तर दिशा में स्थित है, जो स्वायम्भुव मन्वन्तर के सप्तर्षि हैं। आकूति का विवाह रुचि प्रजापति के साथ और प्रसूति का विवाह दक्ष प्रजापति के साथ हुआ। देवहूति का विवाह प्रजापति कर्दम के साथ हुआ। रुचि के आकूति से एक पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसका नाम यज्ञ रखा गया। इनकी पत्नी का नाम दक्षिणा था। कपिल ऋषि देवहूति की संतान थे। हिंदू पुराणों अनुसार इन्हीं तीन कन्याओं से संसार के मानवों में वृद्धि हुई। प्रियव्रत और उत्तानपाद। उत्तानपाद की सुनीति और सुरुचि नामक दो पत्नी थीं। राजा उत्तानपाद के सुनीति से ध्रुव तथा सुरुचि से उत्तम नामक पुत्र उत्पन्न हुए। ध्रुव ने बहुत प्रसिद्धि हासिल की थी। स्वायंभुव मनु के दूसरे पुत्र प्रियव्रत ने विश्वकर्मा की पुत्री बहिर्ष्मती से विवाह किया था। जिनसे आग्नीध्र, यज्ञबाहु, मेधातिथि, वसु, ज्योतिष्मान, द्युतिमान, हव्य, सबल और पुत्र आदि दस पुत्र उत्पन्न हुए। प्रियव्रत की दूसरी पत्नी से उत्तम तामस और रैवत- ये तीन पुत्र उत्पन्न हुए जो अपने नामवाले मनवंतरों के अधिपति हुए। महाराज प्रियव्रत के दस पुत्रों मे से कवि, महावीर तथा सवन ये तीन नैष्ठिक ब्रह्मचारी थे। और उन्होंने संन्यास धर्म ग्रहण किया था। स्वारोचिष मनु : द्वितिय स्वारोचिष मन्वन्तर में प्राण, बृहस्पति, दत्तात्रेय, अत्रि, च्यवन, वायुप्रोक्त तथा महाव्रत ये सात सप्तर्षि थे।
संत सूरदास ने इस सम्बंध में भविष्यवाणी करते हुए कहा है की-
अरे मन! धीरज कहे न धरे । संवत् दो सहत्र सो ऊपर ऐसो योग परे । सहत्र वर्ष लगि सतयुग बीते धर्म की बेल बढ़ै।अरे मन ! धीरज काहे न धरे।
और महर्षि अरविन्द ने भविष्यवाणी की थी की-भारतवर्ष में एक दिव्य अभियान का प्रारम्भ होगा। जो यहाँ की असुरता को नष्ट करके फिर से सबको एक नई दिशा देगा और इस देश की प्रतिष्ठा को,वहाँ के गौरव को बढ़ाएगा।यह आंदोलन संसार में फिर से सतयुग जैसा सुख सौम्यता लायेगा।ऐसी कई दिव्यता की भविष्यवाणियां अपनी ध्यान दर्शनों में कही है।
और भी भविष्यवाणियों में भी ये उल्लेख है- नेस्त्रेदम्स ने कहा है की-
सूरज पर भूकंप से विकिरण के तीव्र तूफान उठेंगे, जो धरती को इस कदर गरमा देंगे कि ध्रुवों पर जमी बर्फ पिघलने लगेगी। जब ऐसा होगा तब धरती के ध्रुव भी बदल जाएंगे। कुंभ राशि के युग की शुरुआत में आसमान से एक बड़ी आफत धरती पर आ टूटेगी। धरती का ज्यादातर हिस्सा प्रलयकारी बाढ़ की चपेट में आ जाएगा और तब जान और माल की भारी क्षति होगी।
हैरानी की बात ये है कि नास्त्रेदमस ने कुंभ राशि के जिस युग की शुरुआत की बात की है- वो वक्त है 21 दिसंबर 2012 के बाद का ही है। जो 2012 से 2018 तक में नही घटी है तथा ये भविष्यवाणी अनेक बार गलत भी गयी है। साथ ही इनकी भविष्यवाणियों को सभी नेता,धार्मिक संगठनों ने अपने अपने मतों के लिए तोड़ मरोड़कर प्रस्तुत किया है। जो की यहां हमारा उद्धेश्य नही है। फिर भी जिज्ञासुओं के लिए एक सत्य भविष्य एक नई दिशा की और प्रमाणिकता के साथ संकेत दे रहे है।बाकि पाठकों का अपना मत क्या है? ये उनका व्यक्तिगत चिंतन उनके साथ है–ठीक 2012 यही से सत्यास्मि मिशन का मुख्य सामाजिक योजनाओं के कार्यान्वित का प्रारम्भ है।
जैसे-नस्त्रेदमस ने देखा की प्रलय आएगी। तब कुम्भ राशि से युगप्रवर्तक पुरुष और उसका मनुष्य उद्धारक दर्शन और युग प्रारम्भ होगा।
तब आप देखें की- कुम्भ राशि–सत्यास्मि धर्मग्रन्थ,स्त्री शक्ति की महावतार सत्यई पूर्णिमा देवी,सत्य ॐ सिद्धायै नमः ईं फट् स्वाहा महामंत्र, स्त्री शक्तिरूपा ई E एनर्जी का प्रतिनिधि अक्षर जो कुण्डलिनी का ॐ से भी परिपूर्ण अर्थ प्रत्यक्ष में प्रकट करता है,विश्व धर्म के इतिहास में पहली बार सत्यास्मि मिशन ने स्त्री की स्वतंत्र कुंडलिनी की भिन्नता और उसके 5 बीजमंत्र और इस सबके चित्र आदि विषय,जो आजतक किसी धर्म ग्रन्थ में वर्णित नहीं है और न हीं किसी अवतार या योगी ने इस विषय में कोई खोज की है,उसे खोज के साथ समाज के सामने रखा है।
स्वतंत्र स्त्री शक्ति गंगा स्नान आंदोलन और स्त्री युग का प्रथम युग “सिद्ध युग” और इस ग्रन्थ के स्त्रिशक्ति के साथ सहयोगी पुरुष स्वामी सत्येंद्र”सत्य साहिब”जी और सत्यास्मि मिशन तथा स्त्री शक्ति के सर्वभौमिक उन्नति के लिए समस्त देश और विदेशों में “श्री भग पीठों” की स्थापना, जिसके माध्यम से चतुर्थ नवरात्रियों की पूजा उपासना जिसका प्रारम्भ हो चूका है। और यहाँ सत्यास्मि में सनातन धर्म का वेदों से भी परे का सृष्टि दर्शन है।तब क्या और प्रमाण शेष है, जो यहाँ प्रकट नही है।अर्थात सभी पूर्वत भविष्यवाणी यहाँ सम्पूर्ण है।समझदार को ये स्त्री युग का प्रमाण बहुत है।और चल रहा स्त्री विकास का समय, अभी इसे सिद्ध करेगा।
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श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येंद्र जी महाराज
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
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