एक समय की बात है सत्यनारायण भगवान और सत्यई पूर्णिमाँ पृथ्वी पर विचरण करते हुए एक गांव से कुछ दूर निर्जन स्थान पर एक कुआ और व्रक्षों के पास एक शिला पर बैठ गए और संसार के कल्याण की वार्ता करने में इतने तल्लीन हो गए की उन्हें समय का विशेष भान ही नही रहा। तब एक उन्हें अपने पास किसी नारी का दुखित द्रवित स्वर सुनाई दिया की हे-ईश्वर हे ईश्वरी मेरी रक्षा करो मैं अति दुखों और विपदा की मारी हूँ। मैं इस स्थान पर किसी पवित्रता के होने से खिंचकर आई हूँ। अवश्य इस स्थान पर आज पूर्णिमा का पवित्र दिन है। यो हे देव हे देवी- मेरी साहयता करो। ये करुण पुकार सुन कर दोनों को संसार का भान हुआ और देखा की वो स्त्री वहीं प्रार्थना रत होकर अश्रु बहाती अपने ध्यान में मगन है। और पाया की उसे उनके दर्शन नही हुए है। परन्तु जिस शिला पर वे बैठे संसार के कल्याण की वार्ता कर रहे थे वो शिला तेजस्वी स्वरूप को प्राप्त हो गयी है। ये देख सत्य सत्यई ने परस्पर कहा की अब ये पत्थर की शिला इस पूर्णिमा के दिवस यानि वार के कारण जनकल्याण करने में समर्थ हो गयी है। ये मनोरथपूर्ण शिला अर्थात ये पत्थर आज के शुभ वार से जुड़ने के कारण पथवारी कहलायेगी। जो ईश्वर को अर्पित करते हुए ऐसी कोई पत्थर की निर्मित शिला बनाकर अपने गांव में रखेगा और उसकी पूजा अर्चना करेगा उसको मन में शुभ प्रेरणा का संदेश मिलेगा और शुभकर्म करने की शक्ति भक्ति भी मिलेगी। ये वचन कहकर तब भगवान सत्य ने उस नारी के सभी कर्मों और उससे मिलने वाले इस संकट रूपी कष्टों को जानकर कहा की हे-पूर्णिमा देवी इस नारी की विपदा का तुम्हारे पास उपाय क्या है? ये वचन सुनकर देवी बोली की मैं इसको देव वाणी में इसके अंतरमन में ज्ञान देती हूँ। और उन्होंने उस नारी के मन में प्रवेश करते इसे उसका कष्ट और उसका निराकरण बताया की- बेटी तुमने पूर्व जन्मों में जब भी कोई अपने यहां भगवान की कथा में बुलाने आता तो तुम उसे अपने घर के कामों में व्यस्त हूँ, कह कर की अभी थोड़ी देर में आती हूँ। परन्तु आती नही थी। और कोई भक्त तुम्हारे को प्रसाद दे जाता तो उसे भी तुम व्यर्थ का ढकोसला कह कर किसी कुत्ते को डाल देती थी और घर आये भिखारी को भी उसके कितना ही मांगने पर जबाब नही देते हुए उसके थक कर चले जाने तक अपने अन्य कामों में लगी रहकर उपेक्षा करती थी।तो यो तुमने कोई भी पूण्य काम नही किया है। ये सब इस जन्म में तुम्हे कष्ट मिल रहा है।तब उस स्त्री ने इस संकट से मुक्ति का उपाय पूछा तो माता चुप हो गयी बार बार प्रार्थना करने पर उन्होंने बताया की- तुम जिस स्थान इस पत्थर की शीला के समीप बेठी हो, नित्य इस स्थान पर ही आकर तुम से जो बने वहीं भोग चढ़ाना। और अपने बच्चों में प्रसाद रूप में बाटना तब तुम्हारे पूण्य बल बढ़ेंगे। तुम पर सभी प्रकार की कृपा होगी ये सुन उस स्त्री ने ऐसा ही किया। अपने घर आने वाले भिखारी जो बने अन्न दान करती और नित्य अपने घर से गुड़ तथा जल इस स्थान पर रखी शीला पर चढ़ती और बचे प्रसाद को घर में बच्चों पति व् सास सुसर को बाटती। यो कुछ समय में ही घर और खेती मे बहुत खुशहाली आती गयी। ये और पड़ोसियों की स्त्रियों ने उसे उस शीला पर जल गुड़ दीप जलते देख पूछा की ये कौन देव,देवी है? तब उसके मुख से देवी प्रेरणा से निकला पथवारी माता है। और ये सब जान अन्य स्त्रियों ने भी उसी पत्थर की शिला पर अपने अपने अनुसार प्रसाद बनाकर चढ़ाना प्रारम्भ किया। जिसके फलस्वरुप सभी पर देव देवी कृपा हुयी। यो धीरे धीरे उनकी सभी रिश्तेदारियों में ये पथवारी देवी की महिमा प्रचारित होकर पूजा होने लगी। सभी गांवों के लोगो ने अपने यहां से एक पत्थर की शिला ला कर उस उस स्थान से छुवा कर अपने अपने गाँवो के चौराहों पर स्थापित किया। ताकि गांव में आते जाते सदा देवी के दर्शन करते सब नमन करते जाये और यात्रा आदि शुभकार्य सफल हो। और ऐसा ही आज तक होता आया है।आगे समयानुसार भक्तों ने इन शिला को ही ऑंखें आदि लगाकर एक दैविक देव देवी रूप दिया।जो आज मूर्ति के रूप में विकसित होता गया परन्तु बहुत से भक्त आज भी अपने गांव शहरों के चौराहो या मन्दिरों में एक या ईश्वर पुरुष पिता और ईश्वरी माता के और एक अपने को उनके बच्चों के रूप में तीन शिला बनवाकर स्थापित करते पूजा करते है। यही स्थान स्थान पर त्रिदेवी या त्रिदेव के रूप में भी पूज्य हुए मुख्य ज्ञान ये है। कुछ भी मानो चाहे साकार या निराकार उसमें भक्ति भावना रखने से चित्त एकाग्र होता है। और भक्त के ह्रदय में अपने ध्यान से अपने अच्छे बुरे कर्मो का भान होता है। जिससे उसे अच्छे मार्ग या अच्छे पथ पर चलने की प्रेरणा मिलती है। यो वो प्रत्येक वार या दिन को ऐसा करता है। तो उसे शुभ पथ और शुभ वार के रूप में शुभ पथवार की शक्ति भक्ति ही पथवारी माता के रूप में कृपा प्राप्त होती है।यो भक्तों सदा किसी भी ईश्वर की कथा में बुलावा आये तो अवश्य जाओ। और अपने घर आये भिखारी की जो बने अन्न आटा रोटी आदि दान अवश्य दो और अपने अंतर्मन की स्थायी शीला पर बैठकर ध्यान लगाओ। वहीं प्रार्थना करो तो अवश्य आपको सद पथ पर चलने का आत्मउपदेश का मार्ग मिलेगा। उस पथ पर प्रत्येक वार यानि दिनों शुभकर्म करते चलने से अवश्य सभी मनवांछित मनोरथ सम्पूर्ण होते है। यही इस पथवारी देव देवी की कथा का सच्चा अर्थ है।
!!पथवारी माता की आरती!!
ॐ जय पथवारी माँ,माँ जय पथवारी माँ।
सरस्वती लक्ष्मी काली-2,तुम ही पूर्णिमा माँ।
ॐ जय पथवारी माँ।।
कोई जग का शुभ कारज हो,तुम्हीं से हो आरम्भ-2..तुम्हीं से..
जला दीप जल चढ़ा धाम तुझ-2,तुम मारो दैत्य निशुंभ।।ॐ जय पथवारी माँ।।
गांव शहर हो मानुष कोई,सब नगर तुम्हारा वास-2..तुम..
तुम्हीं त्रिकुटी रूप बसी हो-2,भक्त की बनकर आस।।ॐ जय पथवारी माँ।।
कण पत्थर में तुम्हीं विराजो,और ह्रदय जन जन घट-2..और ह्रदय.,
सभी जीव की रक्षक माता-2,बन ढाल सुखों की पट।।ॐ जय पथवारी माँ।।
सातो दिन की तुम हो देवी,और चारों पथ की देव-2..और चारों..
भुत प्रेत संकट मिट जाते-2,तुम सब सुख दाता देव।।
ॐ जय पथवारी माँ।।
चैत्र,क्वार,ज्येठ,माघ की,नवरात्रि करे जो भक्त-2..नवरात्रि..
दूध,दही,गुड़,चढ़ा दीप कर-2,मनवांछित वर दो भक्त।।
ॐ जय पथवारी माँ।।
चोथ,अष्टमी,एकादशी,अमावस,और पूर्णमासी दिन-2..और..
जो धुप दीप पथवारी करती-2,माँ कृपा करे अभिन्न।।ॐ जय पथवारी माँ।।
जो पथवारी करे आरती,पाये धन तन सुख-2..पाये..
पीढ़ी सात तर जाती है-2,और मिटे कर्ज सब दुःख।।ॐ जय पथवारी माँ।।
!!स्वामी सत्येंद्र सत्य साहिब जी रचित पथवारी माता आरती सम्पुर्ण!!
बोलो-पथवारी माँ की जय🙏
बोलो-जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः🙏
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Jay satya om siddhaye namah