बता दें कि आजकल शादी ब्याह का सीजन है और इसी के चलते लोग तेज़ आवाज में गाना बजाना करते हैं इतना ही नही वे तेज़ आवाज के लिए डीजे इत्यदि का इस्तेमाल करते हैं जिससे आस-पास रहने वाले लोगों को काफी समस्या होती है।
सबसे ज्यादा समस्या उन लोगों को होती है जो बीपी एवं हर्ट से संबंधित बीमारियों से जूझ रहे होते हैं।
इनके अलावा आजकल धार्मिक अनुष्ठानों में भी तेज आवाज और फूहड़पन के गाने बजाए जाते हैं।
इन सबके खिलाफ स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज ने आवाज उठाई है। साथ ही बुद्धिजीवियों से आगे आने की अपील भी की है।
स्वामी जी के अनुसार तेज़ आवाज, यातायात, शोरगुल और भी कई कारणों से होने वाले ध्वनि प्रदूषण से नींद खराब होने के साथ-साथ साइकोलॉजीकल और कार्डियोवेस्कुलर बीमारियों का शिकार भी बना देता है। साथ ही इससे सामाजिक बर्ताव भी नकारात्मक हो जाता है।
स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज ने कहा कि पहले समय का गाना बजाना कानों चुभता नहीं था, संगीत में मधुरता थी, शास्त्रीय संगीत से वातावरण सुगंधित हो जाता था। धार्मिक अनुष्ठानों में भी इसी तरह का माहौल बनाया जाता था, तेज़ आवाज से परहेज़ किया जाता था। लेकिन आज सब कुछ बदल गया है। दौड़ती भागती जिंदगी ने सब कुछ बदलकर रख दिया है।
अब लोग अपने स्वास्थ्य से तो खिलवाड़ कड़ते ही हैं उन्हें दूसरों की भी चिंता नहीं होती है।
उन्होंने कहा कि तेज़ आवाज में गाना बजाना उन लोगों के लिए बड़ा खतरनाक होता है जो लंबें समय तक इसके संपर्क में रहते हैं, उन्हें शारीरिक और मानसिक परेशानियां हो सकती है। ध्वनि प्रदूषण का खतरा किसी और प्रदूषण के खतरे से कम नहीं है, यह मानव जीवन पर बुरा प्रभाव डालता है। इसके साथ ही यह कार्यक्षेत्र, ऑफिस, घर इत्यादि में प्रभाव डालता है और नकारात्मकता पैदा करता है। नींद और अन्य क्रिया-कलाप को भी भंग करता है।
स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज के अनुसार मनुष्य के कान 20 हर्ट्ज से लेकर 20000 हर्ट्ज वाली ध्वनि के प्रति संवेदनशील होते हैं। ध्वनि का मानक डेसीबल होता है सामान्यतः 85 डेसीबल से तेज ध्वनि को कार्य करने में बाध्यकारी माना जाता है जो कि ध्वनि प्रदूषण की श्रेणी में आता है। काफी समय तक तेज शोरगुल में रहना आपकी श्रवण शक्ति यानी सुनने की क्षमता को प्रभावित कर देता है और इससे धीरे-धीरे आपके सुनने की क्षमता कम होती जाती है। लाउड-स्पीकर, हेडफोन आदि के इस्तेमाल से भी ये परेशानी पैदा हो सकती है। 8 घंटे से अधिक 80 डेसीबल या इससे ज्यादा तीव्रता वाली ध्वनि के संपर्क में रहने आपके कान खराब हो सकते हैं।
स्वामी जी के अनुसार तीव्र ध्वनि प्रदूषण के साइकोलॉजीकल दुष्प्रभाव अधिक होते हैं इससे काम करने की क्षमता तो कम होती ही है, साथ ही लंबे समय तक तेज शोर के संपर्क में रहने से व्यक्ति तनावग्रस्त भी हो जाता है। इसलिए तेज शोरगुल वाले वाहनों, स्थानों से घर एवं शिक्षण संस्थानों को दूर रखना चाहिए।
85 डेसीबल से तेज ध्वनि दिल की धड़कनों, रक्त के प्रवाह को बढ़ा देता है। इससे ब्लड प्रेशर भी बढ़ जाता है यहीं कारण है तेज ध्वनि के संपर्क में लगातार रहने से हार्ट-अटैक का खतरा भी बढ़ जाता है।
स्वामी जी ने कहा कि अब तक न जाने कितने लोग इस ध्वनि प्रदूषण का शिकार हुए हैं। कई लोग तो अपनी जान तक गंवा चुके हैं। सभी को अपने आस-पास राह रहे लोगों की भी परवाह करनी चाहिए। बहुत सारे लोगों को इस तरह के ध्वनि प्रदूषण से बड़ा खतरा होता है। लोगों को अपनी खुशी में दूसरों की मौत नहीं देखनी चाहिए। अतः आप सब से अपील है कि आप जो भी कार्य करें उससे दूसरों को हानि न पहुंचे।
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स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज की
ख़बर 24 एक्सप्रेस से एक्सक्लूसिव बातचीत
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