एक तेज-तर्रार युवा महिला पत्रकार की जिज्ञासा है कि, ‘ये कैसा लोकतंत्र है जो देश के टुकड़े का नारा लगाने वाले को नेता बना देता है?’
उत्तर सरल है-‘.. जबतक देश का प्रचार तंत्र, अर्थात, मीडिया सुविधानुसार पक्ष-विपक्ष के तलुए चाटता रहेगा, उनके जूठन का स्वाद लेता रहेगा, लोकतंत्र के आधार स्तंभ संवैधानिक संस्थाओं की जड़ें खोदने में फासिस्ट शक्तियों का साथ देता रहेगा, सत्ता के इशारे पर मूल वीडियो से छेड़छाड़ कर देश को गुमराह करता रहेगा,सचाई से इतर सत्तापक्ष का महिमामंडन करता रहेगा, अयोग्य, कुपात्र को ‘लोकप्रिय’बनाता रहेगा, योग्य, सुपात्र को काली चादरों से ढकता रहेगा , नैतिकता को गिरवी रख अनैतिक-पथ पर कदमताल करता रहेगा,’ऐसे ही नेता’ उदित होते रहेंगे!
यही सच है-कड़वा सच है।
उक्त महिला पत्रकार की जिज्ञासा प्रकट हुई है महाराष्ट्र में दलित समाज की एक विशाल उपस्थिति को गुजरात के युवा दलित नेता जिग्नेश औऱ जेएनयू-विवादित खालिद द्वारा संबोधन औऱ हिंसक घटनाओं के बाद। पेशवाओं पर महार(दलित) विजय का उत्सव पिछले 200वर्षों से “शौर्य दिवस” के रुप में मनाया जाता रहा है। कभी भी 20-25 हजार से अधिक की उपस्थिति नहीं हुई। इस बार, 200वीं बरसी पर तीन लाख से अधिक दलित कैसे एकत्रित हो गये? इसकी गहराई में जाने की जगह बेचैनी ये कि इतना बड़ा मंच इन दो युवाओं को कैसे मिल गया? महाराष्ट्र की जातीय राजनीति, विशेषकर दलित राजनीति के अध्येताओं के लिए ये शोध का विषय है। ध्यान रहे, जिग्नेश और खालिद दोनों महाराष्ट्र के लिए अजनबी हैं।इन्हें, खासकर जिग्नेश को सुनने के लिए इतनी विशाल उपस्थिति! न ही राज्य सरकार और न ही मीडिया को ऐसी कल्पना थी। सभी राजदल/राजनेता अचंभित! केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के इन शब्दों पर गौर करें,”..जब दलित युवा जागेगा तब ज्वालामुखी बन जायेगा।”राजदलों की चिंता अकारण नहीं है। डॉ भीमराव आंबेडकर के पौत्र प्रकाश आंबेडकर द्वारा महाराष्ट्र बंद का आह्वान भी अकारण नहीं था। पिछले दिनों के मराठा आंदोलन के बाद ये सबसे बड़ा “दलित आंदोलन”था। महाराष्ट्र जैसे प्रदेश में मुस्लिम-दलित अंगड़ाई के मायने समझने में किसी को कठिनाई नहीं होगी। मीडियाकर्मी भी इतने नासमझ नहीं हैं।
फिर, लोकतंत्र की दुहाई के साथ इनकी बेचैनी?
क्या खुलकर समझाना पड़ेगा?
मीडियाकर्मी अपने अंतः करण में झांकें! पेशे की पवित्रता के पार्श्व में सामाजिक अपेक्षा की चिंता करें! स्वार्थ-लोभ से इतर पत्रकारीय कर्तव्य का स्मरण करें। छोडिए राजनेताओं की राजनीति को। दूर रहें इनकी कुटिलता से।खुद तो पतित हैं ही, आपको भी पतित देखना चाहते हैं।अपनी ओर टकटकी लगाये उस नई पीढ़ी पर दृष्टिपात करें जो आपको पत्रकारिता का “आदर्श” मानता है।
भावावेश में उत्पन्न जिज्ञासा स्वतः समाप्त हो जाएगी।
ईश्वर ने आपको बुद्धि दी है-सदुपयोग करें!
धारदार कलम दी है-गिरवी न रखें-सरस्वती की जिह्वां को तो कतई नहीं!!
****
Senior Journalist Mr. SN Vinod