इस वक़्त बिहार में बाढ़ से हालात खराब हैं लाखों लोग बेघर हो चुके हैं। सैकड़ों लोग इस बाढ़ की चपेट में आकर अपनी जान गवां बैठे हैं। बिहार में त्रासदी है लेकिन राजनेता राजनेता है.. उसे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई मरे या जिये.. बिहार में इस वक़्त राजनीति अपने चरम पर है ठीक वैसे ही जैसे बिहार में आई बाढ़।
नीतीश कुमार अपने को सुशासन बाबू कहलाना पसंद करते हैं लेकिन वो बिहार की जनता को भूल राजनीति कर रहे हैं एक दूसरे के ऊपर आरोप, प्रत्यारोप कर रहे हैं।
लालू यादव भी उन नेताओं में से ही एक हैं। सत्ता से बेदखली के बाद लालू की बौखलाहट देखी जा सकती है लेकिन इस बौखलाहट को वो वोट बैंक में तब्दील कर सकते थे। बिहार में बाढ़ पीड़ितों के बीच जाकर उनकी मदद कर सकते हैं बेघर हुए लोगों को विस्थापित करने का काम कर सकते हैं इससे लालू की वाही वाही ही होगी। लेकिन लालू ठहरे राजनेता.. उन्हें भी बिहार की जनता से कोई मतलब नहीं है।
वहीं दूसरी ओर 10 बाद सत्ता मे वापस आयी भाजपा दोनों हाथों लड्डू लेकर मस्त है.. सुशील मोदी बिहार के उपमुख्यमंत्री हैं लेकिन सत्ता में आते ही सुशील मोदी अपने में इतने व्यस्त हैं कि उन्हें ये तक नहीं मालूम कि बिहार किस कदर त्राहि त्राहि कर रहा है।
ये नेता हैं और बस नेता हैं, नेता जी की धोती खराब नहीं होनी चाहिए.। जब लोग अधिक संख्या में मरना शुरू होंगे तब नेता जी अपने अपने घरों से निकलना शुरू होंगे.. वैसे भी बिहार में बाढ़ आई हुई है नेता जी अपनी धोती संभालेंगे या बाढ़ पीड़ितों को देखेंगे.. और वैसे भी मरने वाले सभी गरीब तबके के हैं.. मरते हैं तो मरने दें.. लेकिन नेता जी सिर्फ राजनीति कर्रेंगे.. और ज्यादा से ज्यादा क्या होगा… नेता जी मरने वाले के गाँव मे रैली कर आएंगे और “दुई ठो आँसू” बहा देंगे.. वैसे भी नेता जी की आंख से निकला आँसू अमृत से कम नहीं होता जहां गिरेगा उस क्षेत्र का उद्धार हो जाएगा..।
मनीष कुमार