परमाणु आपूर्ति समूह यानी एनएसजी में सदस्यता को लेकर भारत ने कडा रुख अपना लिया है। भारत ने अपने करीबी दोस्त रूस को चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर भारत को एनएसजी की सदस्यता नहीं मिल पाती है तो वह परमाणु ऊर्जा विकास के अपने कार्यक्रम में विदेशी पार्टनर्स से सहयोग करना बंद कर देगा। दरअसल भारत को महसूस हो रहा है कि रूस भारत को एनएसजी में सदस्यता दिलवाने के लिए अपनी क्षमताओं का पूरा इस्तेमाल नहीं कर रहा है। ऐसे में भारत ने साफ कहा है कि रूस के साथ कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा परियोजना की 5वीं और 6वीं रिऐक्टर यूनिट्स को विकसित करने से जुडे एमओयू को ठंडे बस्ते में डाल सकता है। चीन के साथ पींगे बढा रहे रूस से भारत उम्मीद करता रहा है कि वह भारत की एनएसजी सदस्ता के लिए चीन पर दबाव डालेगा।
वहीं कुडनकुलम एमओयू साइन करने को लेकर रूस के उपप्रधानमंत्री दिमित्री रोगोजिन ने पिछले सप्ताह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात में यह मुद्दा उठाया था। ज्ञातव्य है कि यह मीटिंग अगले माह होने वाली रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुलाकात की तैयारियों के मद्देनजर की गई थी। वहीं रूस को अब यह चिंता सता रही है कि मोदी-पुतिन की मुलाकात में अगर एमओयू साइन नहीं हो पाता है तो इस वार्ता का कोई मतलब नहीं रह जाएगा।
वहीं भारत ने कडा रुख अपनाते हुए साफ कह दिया है कि अगर उसे अगले एक-दो सालों में एनएसजी सदस्यता नहीं मिलती है तो उसके पास स्वदेशी परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम चलाने के अलावा कोई विकल्प नहीं रह जाएगा। ज्ञातव्य है कि इस परमाणु ऊर्जा में फ्रांस और अमेरिका भी भारत का बडा सहयोगी है। भारत ने फ्रांस और अमेरिका को भी इस तरह की चेतावनी दी है। भारत रूस के एक ऐसी बडी शक्ति के तौर पर देख रहा है जो अपने प्रभाव से चीन को भारत की एनएसजी सदस्यता में रोडा न अटकाने के लिए राजी कर सकता है। हांलांकि रूस ने एनएसजी में भारत को सदस्यता दिलवाने के प्रयास किए हैं लेकिन भारत को लगता है कि रूस ने चीन को राजी करने के लिए पर्याप्त कोशिशें नहीं की हैं। ज्ञातव्य है कि बीते सालों में रूस का झुकाव चीन की ओर पहले के मुकाबले काफी बढा है।