धर्म धृ धातु से बना हुआ है जिसका अर्थ होता है – धारण करना.
अतः जो आप हो, ऐसे अपने चतुर्मुखी सनातन धर्म का प्रतिपादन करने वाले शाश्वत चैतन्य स्वरुप आत्मदेव को जानना, मानना और धारण करना ही सनातन धर्म कहलाता है.
मेरे द्वारा पहले बताये तीनो धर्म जैसे कि मातृत्व धर्म, राष्ट्र धर्म तथा विश्व धर्म तो हमारे इस जन्म के सच्चे धर्म होते हैं.
अब हम हमारा कभी भी साथ न छोड़ने वाले शाश्वत, सनातन, अजर, अमर, सनातन धर्म के चौथे अंग, प्रबल चैतन्यमयी शक्ति से भरपूर आत्म धर्म पर चर्चा करते हैं.
हमारा आत्म धर्म ही वास्तव में हमारा सच्चा शाश्वत, सनातन, अजर, अमर, सुखदायक धर्म है.
इस आत्म धर्म की चैतन्य शक्ति ही हमे समय के अनंत प्रवाह या काल-चक्र में कभी भी मरने नहीं देती है.
हमारी इस चैतन्य शक्ति से हमारे अनंत जन्म लेने पर भी हमारे चैतन्य गुणों में से कोई भी गुण हमारा कभी भी साथ नहीं छोड़ता है.
चौरासी लाख योनियों के हर भ्रमण में, हर जन्म में हमारे चैतन्यदेव के कारण ही हम अजर-अमर रहते हैं और आगे भी अजर-अमर ही रहेंगे.
यही हमारा चतुर्मुखी सनातन धर्म कहलाता है.
सनातन धर्म का अर्थ ही यह होता है कि वह किसी भी काल, परिस्थिति, योनी या जन्म में हमारा साथ न छोड़े. आगे आने वाले अनंत युगों तक भी हमारा साथ न छोड़े.
अतः यह चैतन्य-स्वभाव ही प्रत्येक प्राणी का नैसर्गिक गुण होता है, अनुपम शक्ति है, निर्मल स्वभाव है, अक्षय अनंत सुख सरोवर है. इसलिए हम इसे ही सनातन धर्म कहते हैं.
यह सनातन धर्म ही विज्ञान की हर कसौटी पर खरा उतरता है.
हर युग, हर काल में यह सनातन धर्म अक्षुण्य रहता है. कभी भी नष्ट नहीं होता है.
जैन धर्म में इस सनातन चैतन्यमयी आत्म धर्म को –
1. चैतन्य प्रभो बताया है,
2. कारण परमात्मा बताया है,
3. परम पारिणामिक प्रभो बताया है,
4. आत्म स्वभाव बताया है,
5. सहजानंदी बताया है,
6. शुद्ध स्वरूपी बताया है,
7. अविनाशी बताया है,
8. अजर-अमर बताया है.
9. ईश्वर बताया है,
10. जगदीश्वर बताया है.
11. त्रिलोकीनाथ बताया है,
12. सर्वज्ञ बताया है.
इस आत्म धर्म को अष्टावक्र गीता में भी जगह-जगह पर चैतन्य सम्राट बताया गया है. अष्टावक्र गीता के प्रकरण 6, सूत्र 1,2 भावार्थ में भी समझाया गया है कि –
1. आपका निज चैतन्यदेव तो आकाश के समान असीम है,
2. विशाल है,
3. सीमा रहित है,
4. लेकिन यह संसार तुच्छ घड़े की भांति प्रकृतिजन्य है, सूक्ष्म है, असार है.
5. यह आत्मा समुद्र के समान विशाल है
6. लेकिन यह संसार तरंगों के समान विनाशीक है.
7. सिर्फ मेरा आत्मदेव ही एक है,
8. यही एकमात्र सत्य है;
9. जो दर्शाता है कि जहाँ न कुछ पाने को है;
10. न छोड़ने को है;
11. न राग है,
12. न विराग है;
13. न आसक्ति है,
14. न विरक्ति है;
15. न संसार है,
16. न मुक्ति है;
17. ऐसा मैं हूँ.
18. अब मुझ स्थितप्रज्ञ (ज्ञाता-द्रष्टा) ज्ञानी को इस संसार में किसका त्याग है,
19. किसका गृहण है,
20. किसका लय है,
21. किसका विलय है?
22. मैं आकाश के समान असीम,
23. समुद्र के समान विशाल हूँ;
24. लेकिन यह संसार तरंगों के समान तुच्छ है.
25. अतः अब आप भी साक्षी या वीतराग भाव से इस संसार को तुच्छ मानकर खुद के आत्मदेव को अपना चैतन्य-सम्राट मान लें.
इस तरह से आपके खुद के चैतन्यमयी आत्मदेव की महिमा अद्भुत है, अपार है, अकल्पनीय है, बेजोड़ है और इस चैतन्यदेव के आत्म धर्म की चर्चा ही सर्वोत्कृष्ट श्रेणी की चर्चा है.
अतः सभी प्राणियों को उनकी भूंख-प्यास, बेबसी, लाचारी, परेशानी को दूर कर उनकी सेवा करना,
उनको पामर से परमात्मा बनाना ही सच्चा सनातन आत्म धर्म कहलाता है.
दीन-दुखी, लाचार, बीमार, परेशान लोगो की मदद कर उनमे आशा का संचार करना ही सच्चा सनातन आत्म धर्म कहलाता है.
किसी भी मनुष्य के अच्छे-बुरे कर्मों को देखे बिना ही सिर्फ निस्वार्थ भाव से, साक्षी भाव से, वीतरागी भाव से अपना तन-मन-धन लगाकर सभी प्राणियों को भक्त से भगवान बनने का मार्ग बताना ही सच्चा सनातन आत्म धर्म कहलाता है
अपने पराये का भेद मिटाकर सभी लोगो की मदद करना, उन पर हमेशा करुणा करना,
उनकी सेवा करना ही सच्चा सनातन आत्म धर्म कहलाता है
अगर आप भी सच्चे सनातन आत्म धर्मात्मा कहलाना चाहते हैं, तो आप सभी प्राणियों को परमात्मा माने,
फिर आप भी स्वतः ही परमात्मा बन जायेंगे.
फिर आप भी स्वतः ही आज तक हुई सभी सिद्ध भगवंतों के समतुल्य होकर अधम से ईश्वर बन सकेंगे.
अतः आप सभी को अब साक्षी भाव से, वीतरागी भाव से इस सनातन आत्म धर्म को जानकर अब हमेशा इसका पालन करना चाहिये
तभी आप सभी धर्मों, सम्प्रदाय तथा जाति के विरोधाभास को दूर कर सनातन आत्म धर्म के अनुयायी बन सकते हैं.
अगर आप भी इस सनातन आत्म धर्म के अनुयायी बन बेबस, बीमार, कमजोर, लाचार और दुखी लोगो को माँ वसुंधरा की संतान मानकर उनकी मदद करते हैं, तो आप भी इस सनातन विश्व धर्म का पालन करते है.
फिर आप भी सनातन विश्व धर्मी कहला सकते हैं.
आप जानते ही हैं कि जाति, सम्प्रदाय या आस्था कहलाने वाले आपके वर्तमान के धर्म तो इस जन्म के साथ ही ख़त्म हो जाते हैं.
अतः आप अपने आस्था के धर्म का पालन तो करें ही, साथ ही मातृत्व धर्म, राष्ट्र धर्म, विश्व धर्म तथा हर जन्म में आपके साथ रहने वाले चैतन्यमयी आत्म धर्म के समान शाश्वत, सनातन, अजर, अमर, सुखदायक चतुर्मुखी सनातन धर्म का भी पालन करें.
ताकि आप भी शाश्वत, सनातन, अजर, अमर होकर अक्षय अनंत सुख को पा सकें,
भक्त से भगवान बन सकें.
आशा है अब आप भी अपने इस सनातन धर्म को पहचान कर उसका पालन करेंगे.
सनातन धर्म अपनाने से आतंकवाद पर भी अंकुश लग सकता है.
इस संसार के समस्त प्राणियों को कलियुग या पंचम काल के अंत तक स्वयं के शुद्ध आत्म-तत्व या चैतन्यदेव या चैतन्य सम्राट को प्रतिपादित करने वाले चतुर्मुखी सनातन धर्म का ज्ञान मिलता रहे,
चतुर्मुखी सनातन धर्म का पालन करने की प्रेरणा मिलती रहे,
इसके लिए सम्पूर्ण विश्व के हर कोने में समवशरण सेवा मंदिर बनाने की हमारी योजना है.
हमारे प्रस्तावित एक हजार आठ समवशरण सेवा मंदिरों में आपको इस चतुर्मुखी सनातन आत्म धर्म का इस युग के अंत तक सतत लाभ मिलता रहेगा.
अतः अब आप भी खुद को चतुर्मुखी सनातन धर्मी माने तथा इसके चारों अंग जैसे कि मातृत्व धारण, राष्ट्र धर्म, विश्व धर्म तथा आत्म धर्म का स्वरुप जानकार इस चतुर्मुखी सनातन धर्म का पालन करें.
फिर निश्चित ही आप अक्षय अनंत सुख की प्राप्ति कर मोक्ष महल में सदा निवास करेंगे।
जीवन मन्त्र: डॉ0 स्वतंत्र जैन
चतुर्मुखी सनातन धर्म, चौथा अंग, आत्म धर्म – डॉ0 स्वतंत्र जैन
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