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सरकार से बैर.. “ज़ी हिंदुस्तान” न्यूज चैनल हुआ बंद, 300 से ज्यादा लोग हुए बेरोजगार

कहने को भले मीडिया चौथा स्तंभ हो लेकिन सत्ता, सरकार से कोई नहीं जीत सकता है। एक वक्त ऐसा भी था जब ज़ी के सभी न्यूज़ चैनल सत्ता के आगे नतमस्तक थे लेकिन मालिक सुभाष चंद्रा की हार ने ज़ी को सत्ता से थोड़ा दूर कर दिया।

जिस मीडिया के आगे बड़ी से बड़ी सत्ता हिल जाती है आज वो मीडिया सत्ता के आगे नतमस्तक है। एक वक्त ऐसा भी रहा जब देश में आपातकाल लगा, तमाम पत्रकारों को बंदी बना लिया गया लेकिन फिर भी उन महान पत्रकारों की कलम सत्ता के आगे नतमस्तक नहीं हुई, झुकी नहीं। आपातकाल में भी मीडिया सत्ता के खिलाफ लिखती रही। दौर बदला और अखबार यानि प्रिंट मीडिया से दौर सीधा टीवी न्यूज की दुनिया का आ गया। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया चैनल्स की बाढ़ सी आ गई और मीडिया ने भी अपना रूप बदल लिया। जैसे-जैसे सत्ता परिवर्तित होती गई वैसे-वैसे मीडिया भी बदलता गया। 2014 आते-आते मीडिया गोदी मीडिया में तब्दील हो गया और इस तरह मीडिया की स्वतंत्रता भी पूरी तरह से खत्म हो गई।

कहते हैं जिस देश का मीडिया आजाद नहीं, लोगों की बात कहने के लिए स्वतंत्र नहीं, सत्ता से सवाल करने पर पाबंदी हो उस देश में कुछ सही नहीं हो सकता है। उस देश की सरकार अपनी मनमानी के अनुसार कार्य करती है। उस देश की संप्रभुता, लोकतंत्र खतरे में आ जाता है।

ज़ी न्यूज़ को वैसे तो गोदी मीडिया का एक स्वरूप कहा जाता है। ऐसा हम नहीं बल्कि लोग कहते हैं। क्योंकि ज़ी मीडिया लोगों की कम सत्ता की ज्यादा बात करता है। सत्ता के आगे नतमस्तक रहता है। लेकिन अब कुछ ऐसा हुआ है जिसने ज़ी मीडिया को सकते में ला दिया है।

“ज़ी न्यूज को देखकर नींद आती है, लेकिन ज़ी हिंदुस्तान देखने का मन करता है.” ज़ी के एक कर्मचारी के अनुसार यह बात ज़ी समूह के मालिक सुभाष चंद्रा ने कर्मचारियों से एक मीटिंग में कही थी। लेकिन अब उसी चैनल को बंद किया जा रहा है, जिसे देखने का कभी मन हुआ करता था।

इस महीने की शुरुआत से ही संकेत मिल रहे हैं कि ज़ी मीडिया समूह में सब ठीक नहीं है. पहले ‘क्लस्टर सिस्टम’ हो हटा कर तीन चीफ बिजनेस ऑफिसर नियुक्त किए गए, फिर खर्चा कम करने के नाम पर करीब 150 से अधिक लोगों को निकाल दिया गया. बाद में इस छंटनी लिस्ट में अतिरिक्त नाम भी जुड़ते गए।

ज़ी हिंदुस्तान के एक कर्मचारी ने बताया, “गुरुवार को मीटिंग हुई थी. जिसके बाद रात में करीब 10 बजे के बाद कर्मचारियों को बताया गया कि चैनल बंद हो रहा है।”

चैनल के बंद होने की बात तो कर्मचारियों को बता दी गई लेकिन अभी तक इसको लेकर कोई आधिकारिक मेल नहीं भेजा गया है.

कर्मचारी बताते हैं, “चैनल के बंद होने की बात तो बहुत दिन पहले की जा रही थी, लेकिन आखिरकार बंद अब हो रहा है.”

कुछ लोग इसकी वजह टीआरपी नहीं आने को मानते हैं, तो वहीं कुछ के मुताबिक एक ही ग्रुप के दो राष्ट्रीय चैनल होने से दर्शक बंट जा रहे हैं, जिससे दोनों ही चैनलों को टीआरपी नहीं मिल पा रही है.

ज़ी हिंदुस्तान की शुरुआत 2017 में तत्कालीन सीईओ जगदीश चंद्रा ने की थी. शुरुआत में चैनल एंकर रहित रहने वाला था, यानी अन्य चैनलों की तरह यहां एंकर खबर पढ़ते नहीं दिखाई देते बल्कि पत्रकार ही खबरें देते.

चैनल ने लॉन्च होने के 100 दिनों के भीतर ही रेटिंग में लंबी छलांग लगाई और वह हिंदी समाचार चैनलों में टीआरपी के पायदान पर 8वें नंबर पर पहुंच गया. हालांकि एक साल बाद जगदीश ने कंपनी छोड़ दिया.

2020 में समूह ने एक बार फिर से चैनल को लॉन्च किया. इस बार चैनल के मैनेजिंग एडिटर शमशेर सिंह थे जो इससे पहले रिपब्लिक भारत में काम करते थे.

गुरुवार को आखिरी फैसला और शुक्रवार से बंद

जैसा कि रिपोर्ट में उल्लेख हुआ, चैनल को बंद करने की बात तो बहुत दिनों से चल रही थी लेकिन अंततः बंद करने का फैसला गुरुवार को लिया गया. 24 नवंबर की देर रात, कर्मचारियों को बता दिया गया कि चैनल बंद हो रहा है.

शुक्रवार को सभी कर्मचारियों से कहा गया कि वे इस्तीफा दे दें. इसके बाद, शुक्रवार दोपहर 12 बजे से चैनल बंद हो गया. हिंदुस्तान में काम करने वाले एक कर्मचारी बताते हैं, “शुक्रवार सभी को बुलाया गया और उनसे इस्तीफा मांगा गया. कंपनी द्वारा आधिकारिक तौर पर इस्तीफा देने को लेकर कोई मेल नहीं भेजी गई.”

चैनल के एक वरिष्ठ संपादक कहते हैं, “12 बजे के बाद सभी रिकार्डेड कार्यक्रम ही दिखाए जा रहे हैं. कामकाज बंद हो गया है. सभी को दो महीने की सैलरी देने को कहा गया है.”

हालांकि चैनल की वेबसाइट बंद नहीं हुई है. चैनल बंद होने के कारण करीब 300 कर्मचारियों को निकाला गया. ज़ी मीडिया ने अपने आधिकारिक बयान में कहा कि ज़ी हिंदुस्तान को ‘रिस्ट्रक्चर’ किया जा रहा है. आधिकारिक बयान में चैनल बंद होने की बात नहीं कही गयी, लेकिन कॉर्पोरेट भाषा में ‘रिस्ट्रक्चर’ का अर्थ अमूमन यही होता है.

मनीष कुमार अंकुर

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