Covid19 ने देश को इतना बर्बाद कर दिया लेकिन फिर भी ये नौकरशाह हैं कि मानते नहीं। ये नहीं चाहते कि किसी का घर आराम से चले।
जी हां आज हम एक ऐसी दर्दनाक और दिल दहला देने वाली खबर पर चर्चा करने जा रहे हैं जिसने covid19 के बाद के काले सच को उजागर करके रख दिया है। भारत के काफी लोग किस दर्द से गुजर रहे हैं हम आज इस कहानी के जरिए उसका पर्दाफाश करने वाले हैं।
यह कहानी है राकेश वर्मा की, राकेश दिल्ली की एक कंपनी में काम करता था उसे हर महीने 45000 रुपए से ज्यादा सैलेरी मिलती थी। सब कुछ ठीक चल रहा था लेकिन 2020 में आए तूफान ने राकेश का सब कुछ बदल दिया। राकेश की नौकरी चली गई। वो लगभग 1 साल अपने घर पर ही रहा। जब उसकी माली हालत खराब होने लगी तो उसने नौकरी की तलाश शुरू कर दी… लेकिन काफी तलाश करने के बाद भी उसे कुछ हाथ न लगा।
वो काफी निराश रहने लगा। राकेश का दुःख उसके माता-पिता से देखा न गया। राकेश के पिता ने एक दिन उससे कहा कि बेटा नौकरी नहीं मिल रही तो कोई बात नहीं कम से कम तुम सकुशल हमारे पास तो हो, हमें यही संतुष्टि है। एक काम करो ये कुछ पैसे रखो और घर में ही दुकान खोल लो, कम से कम तुम्हारे पास कुछ काम होगा करने के लिए और जब सब कुछ सामान्य हो जाए फिर वापस नौकरी की तलाश शुरू कर देना।
राकेश ने पिता की बात मानी और उनके चरण छूकर आशीर्वाद लेकर एक किराना की दुकान खोल ली।
ईश्वर की कृपा से दुकान भी ठीक-ठाक चल निकली। 4-5 महीनों में राकेश ने दुकान में काफी सारा सामान जमा कर लिया। अब आस पड़ोस के लोग भी राकेश से सामान लेने लगे। राकेश के मां बाप पत्नी और बच्चे भी थोड़े खुश थे उन्हें सब्र था कि भले पहले जैसा सब कुछ न हो लेकिन राकेश तो घर पर उनके बीच रहकर काम कर रहा है।
फिर एक दिन अचानक नगरपालिका से एक आदमी आया और बोला कि तुमने दुकान खोल ली, इसकी किसी से परमिशन भी ली है या यूं ही अपनी मर्जी से धंधा करने बैठ गए। चूंकि राकेश को कुछ भी मालूम नहीं था तो वो सकपका गया और बोला जनाब आप कहां से हैं और किस डिपार्टमेंट से हैं और मुझे क्या करना है आप कृपा करके बता दीजिए। नगरपालिका वाले ने बोला कि तुम दुकान चला रहे हो इसका नाम, पता सब नगरपालिका में देना होगा। राकेश ने कहा सर मुझे वहां जाना होगा या आप बता देंगे। उसने राकेश को अगले दिन नगरपालिका के दफ्तर में बुलवाया। राकेश गया जहां उससे इन सबके 2000 रुपए बतौर रिश्वत मांगे गए न देने पर दुकान सील करने का हवाला दिया गया। “न करता तो मरता” वाली कहानी राकेश के सामने थी। उसने दुकान के समान के लिए जमा रुपयों में से 2000 रुपए लिए और उस कर्मचारी को दे दिए। बदले में उसे एक कागज का टुकड़ा मिला, राकेश से बोला गया कि इसे दुकान में कहीं चिपका लेना जिससे हमारे यहां से कोई भी आए तो दिख जाए। राकेश ने वैसा ही किया।
इसके कुछ दिन बाद एक व्यक्ति आया और बोला FSSAI का सर्टिफिकेट दिखाओ। राकेश ने पूछा सर आप किस डिपार्टमेंट से हैं। उसने बताया FSSAI से। राकेश ने कहा कि सर सर्टिफिकेट तो नहीं है। इस पर व्यक्ति गुस्से से बोला साहब बाहर खड़े हैं चलो तुम्हें बुला रहे हैं। राकेश बड़े ही अदब के साथ साहब के सामने पेश हुआ। साहब ने कहा कि तुम्हारा FSSAI सर्टिफिकेट नहीं है तुम्हारा चालान होगा 6000 रुपए भरने पड़ सकते हैं। कल ऑफिस आकर सर्टिफिकेट बनवा लेना।
फिर से वही “न करता तो मरता” राकेश ऑफिस गया और सर्टिफिकेट बनवाने के लिए आवेदन दिया। उसे बताया गया कि उस फलां व्यक्ति के पास चले जाओ वो तुम्हें सब बता देगा। राकेश उस कथित फलां व्यक्ति के पास गया जहां उससे 4000 रुपए सर्टिफिकेट बनवाने के एवज में मांगे गए। वहां उसे बताया गया कि 2000 रुपए साहब को जायेंगे, 600-700 का सरकारी खर्च और बाकी 300 मेरी फीस। राकेश ने थोड़ा कम करवाने को बोला तो फलां व्यक्ति ने कहा कि कम किया जा सकता है लेकिन इससे दो बातें हो जाएंगी। तुम्हारा सर्टिफिकेट तो बन जायेगा लेकिन साहब बार-बार आकार तुम्हें परेशान करेंगे। राकेश समय लेकर अपने घर गया और सामान लाने के लिए जमा किए हुए पैसों में से 4000 रुपए लेकर फलां व्यक्ति को दे दिए।
राकेश के हाथ में FSSAI का सर्टिफिकेट आ गया। उससे बोला गया कि इसका लेमिनेशन करके दुकान में टांग देना कोई आएगा तो देखकर चला जायेगा। राकेश ने वैसा ही किया।
सब कुछ थोड़ा ठीक चलना शुरू ही हुआ था कि नगरपालिका से वही व्यक्ति आ गया। उसने राकेश का हालचाल लिया हाथ मिलाया और समान की लिस्ट थमा दी। बोला ये सामान पैक करके रख देना मैं अभी थोड़ी देर में आ रहा हूं। राकेश ने सामान पैक करके बिल भी बना दिया। कुछ देर बाद नगरपालिका वाले भाईसाहब अपनी फटफटिया पर आए और सड़क से ही बोले लाओ हमारा सामान पैक हो गया हो तो दे दो। राकेश ने कहा जनाब हो गया है लाता हूं। राकेश ने सामान का थैला लिया और साहेब के हाथों में पकड़ा दिया और कहा साहब ये आपका 2750/ रुपए का बिल डिस्काउंट काट के। साहेब भड़क गए बोले बिल किस बात का? राकेश ने कहा साहब सामान का। कर्मचारी बोला भाई दुकान चलानी है या बंद करवानी है। राकेश ने कहा साहब आप ऐसा क्यों बोल रहे हैं? कर्मचारी बोला ये झाड़ू, आटा, ये डब्बे तुमने सड़क पर रख रखे हैं, ये सड़क क्या तुम्हारे बाप की है? इस पर 5000 का चालान है। शुक्र मनाओ 2750/ रुपए में ही सब निपट रहा है। तुम्हें अब परेशानी नहीं होगी आराम से बाहर रखो। राकेश अंदर ही अंदर काफी रोया उसे गुस्सा भी बहुत आया। दुकान बंद करने का मन भी किया लेकिन फिर सोचा कि पिता जी क्या सोचेंगे?
राकेश मरे मन से फिर से अपने काम में लग गया। अब एक दिन FSSAI वाले साहब आ धमके। बोले दुकान का सामान चेक करना है कि तुमने किस तरह की क्वालिटी वाला सामान रखा है। कहीं एक्सपायरी समान तो नहीं बेच रहे हो?
राकेश ने कहा साहेब देख लीजिए। हम एक्सपायरी उठाकर एक जगह रख देते हैं ताकि सप्लायर आकर ले जाए। साहेब ने एक पैकेट उठाया और बोला ये सामान घटिया क्वालिटी का है, 6000 रुपए दे दो कुछ नहीं होगा। राकेश बोला साहेब ये तो कंपनी वाले दे जाते हैं। आपको मैं पता दिए देता हूं, मेरे शहर का ही सप्लायर है वहां जाकर उसको बोलिए कि घटिया सामान बेच रहा है। इस पर साहब भड़क गए और गुस्से से तमतमाते हुए बोले तुम हमें सिखाओगे? अबे सामान तुम बेच रहे हो, और मेरे सामने अभी तुम हो, मैं कंपनी को बाद में देखूंगा। चालान कर दिया तो तुम्हें 2-3 लाख का जुर्माना भुगतना होगा।
राकेश गिड़गिड़ाया और बोला साहेब मेरी दुकान देखकर आपको ऐसा लग रहा है क्या कि मेरी बचत 1000 रुपए की भी होती होगी? अधिकारी बोला मुझे नहीं पता तुम्हें पैसे तो देने ही होंगे।
राकेश बोला साहेब कल ही सामान आया है गल्ले में मात्र 670 रुपए पड़े हैं थोड़ी बिक्री भी हल्की हो गई है। कहां से लाऊं इतना सारा पैसा?
अधिकारी गुस्से से तमतमाते हुए बोला कि मैं बार-बार चक्कर नहीं लगा सकता हूं। पैसे तो तुम्हें ही देने पड़ेंगे। आज नहीं तो कल।
राकेश बोला साहेब थोड़ा जमा होने दो, मैं लेकर आता हूं।
राकेश ने 4-5 दिन दुकान का कोई सामान नहीं खरीदा और बिके हुए सामान के 6000 रुपए जमा कर साहेब को बतौर रिश्वत दे दिए। लेकिन इस बीच राकेश ने भोलेपन से एक प्रश्न भी किया। बोला “साहेब क्या अब में एक्सपायरी सामान भी बेच सकता हूं।” साहब ने कहा “हां, लेकिन छिपाकर रखना, कहीं कोई शिकायत न कर दे”, राकेश बोला सर क्या अब मैं वो घटिया क्वालिटी का भी सामान रख सकता हूं, अधिकारी ने कहा कुछ भी बेचो, बस शिकायत न हो तुम्हारी। राकेश ने फिर जिज्ञासावश पूंछा “साहेब शिकायत किसके पास और कहां होती है।” साहेब राकेश के सवालों से तिलमिलाते हुए बोला यहीं शिकायत होगी और हम फिर आयेंगे और तुम बार-बार पैसा दोगे, हर बार दोगे। हर शिकायत पर दोगे। तुम्हें दुकान चलानी है तो ये सब करना पड़ेगा।”
राकेश ने साहब से माफी मांगी और घर गया अपनी पत्नी, और पिता को सब कुछ विस्तार से बताया। पिता जी की आंखों में आसूं थे बोले “बेटा हमारा सिस्टम बहुत भ्रष्ट हो गया है, सोचा था ईमानदारी से खायेंगे कमाएंगे, और तुम हमारे बीच रहोगे, हमने तो सोचा था ये काम ईमानदारी का है, कोई झंझट भी नहीं है, हमें क्या पता था कि तू इतनी परेशानी झेल रहा है। एक काम कर तू दुकान भी बंद कर दे। तू नौकरी की तलाश शुरू कर दे, तब तक मेरी पेंशन से घर चल जायेगा। राकेश बोला ठीक है पिता जी। राकेश ने नौकरी खोजनी शुरू कर दी। वो जहां जाता उसे पहले से आधी से भी कम तनख्वाह में नौकरी ऑफर होती और वो निराश होकर घर वापस आ जाता। चूंकि उसके दो बच्चे थे दोनों प्राइवेट स्कूल जाते थे। दोनों बच्चों का ही खर्चा 10000 रुपए महीने बैठता था। और उसे कहीं भी 20000 रुपए से ज्यादा सैलेरी की नौकरी नहीं मिल रही थी। इसमें 10000 तो बच्चों का ही चला जाता, बाकी राकेश के आने जाने में, बचना तो दूर उसे और रुपयों की जरूरत पड़ती। जबकि राकेश को covid से पहले 45000 रुपए से ज्यादा सैलरी मिलती थी। राकेश बेहद निराश हो गया और उसने वही किया जो नहीं करना चाहिए था।
राकेश ने मौत को गले लगा लिया और सुसाइड लेटर में वो सारी कहानी लिखी जो उसके साथ बीती। लेकिन वो सुसाइड लेटर महज कागज का एक टुकड़ा निकला। क्योंकि जो पुलिस वाले तहकीकात करने आये थे वो भी उससे पैसा खा चुके थे।
राकेश हारकर इस दुनिया से अलविदा कह चुका था। उसके बच्चे इस घटिया सिस्टम की भेंट चढ़ चुके थे। मां बाप जिंदा लाश की तरह अपने बेटे की आने की राह देख रहे थे। जो कभी वापस आने वाला नहीं था।
वहीं नगरपालिका का वो कर्मचारी, पुलिस वाले, FSSAI वाले साहब ऐसे ही मुर्गे की तलाश कर रहे थे। और ऐसे ही एक और राकेश अपने जीवन को खत्म कर रहा था। जो कोविड नहीं कर पाया वो हमारे भ्रष्ट सिस्टम ने कर दिखाया।
ये कहानी भले एक कहानी लग रही हो लेकिन यह कहानी सच्चाई से परे नहीं है।
आंकड़े बताते हैं कि covid 19 के बाद आत्महत्या करने वाले युवाओं की संख्या में 25 फीसदी का इजाफा हुआ है। कोई कर्ज से मरा तो कोई बेरोजगारी से तो कोई राकेश की तरह सिस्टम की भेंट चढ़ गया।
सरकार अपनी ईमानदारी के ढोल पीटती रही और यहां राकेश जैसे लोग अपनी जीवन लीला समाप्त करते रहे।