इस विषय पर स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी अपनी ज्ञान कविता के माध्यम से इस प्रकार से कहते है कि,
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 20 दिसंबर 2013 को,अपने 68 वें सत्र में, 3 मार्च 1973 में हुए ‘जंगली जीव और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन’ यानी CITESको विश्व वन्यजीव दिवस अपनाने का दिन घोषित करने का निर्णय लिया जिसे थाईलैंड द्वारा दुनिया के जंगली जीवों और वनस्पतियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और मनाने के लिए प्रस्तावित किया गया था।
इस विषय पर स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी अपनी ज्ञान कविता के माध्यम से इस प्रकार से कहते है कि,
विश्व वन्य जीव दिवस पर ज्ञान कविता
मिटा दिए जीव सुंदर
शेर चीते भालू बंदर।
चहकती चिड़िया नहीं दिखती
शेष बचे है चिड़ियाघर अंदर।।
कोयल कूक नहीं गूंजती
न गिद्ध दिखते उड़ते आकाश।
ना बाज नजर गाढ़ विचरण करते
बिन गिरगिट पौधे हो रहे निराश।।
स्वर्ण आभा युक्त सर्प नहीं दिखते
ना दिखते भरते हिरन कुचाल।
ना बची गिलहरी टिक टिक करती
ना तोतों की गर्दन मटके सुचाल।।
भेड़िए लकड़बग्घे लुप्त हो गए
ना दूर गूंजती गीदड की हुक़्क़ी।
चिरोटी चिड़ियां घर नहीं आती
ना बनियों की चांय चांय बेतुक्की।।
ईख का कौवा जाने कहाँ है
कबूतर गुटरगूँ न बची जहां है।
खाली धरती अंबर सवाली
मेरे प्यारे पंछी मुझ रूठे कहां है।।
ढूंढ रहे बच्चे गूगल पर
कैसे पंछी ओर कैसे हैं जीव।
कौन बचे नहीं इस जग में
शेष संरक्षित वन्य कौन जीव।।
कैद नहीं करो जीवों को
उन्हें जीने दो खुले धरा गगन।
बंध्या बनाओ नहीं बंधन दें
इन्हें खेलने दो इनके मुक्त जीवन।।
आज दिवस प्रतिज्ञा करना
चलो बचाएं बचे वन्य जीव।
इन बिन हम भी रहें अकेले
बचाओ इन्हें लगा वृक्ष दें नींव।।
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी
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