Breaking News
BigRoz Big Roz
Home / Breaking News / पौष पूर्णिमा ओर उसका महत्त्व शाकुम्भरी देवी जयंती उत्सव (27 जनवरी से 28जनवरी तक)

पौष पूर्णिमा ओर उसका महत्त्व शाकुम्भरी देवी जयंती उत्सव (27 जनवरी से 28जनवरी तक)

इस दिवस कि महिमा बता रहें है स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी

पौष पूर्णिमा का दिवस हिंदू पंचांग के अनुसार विक्रम संवत के दसवें मास पौष के शुक्ल पक्ष की 15 वीं तिथि है। इस दिन को देवी शाकम्भरी देवी के स्मरण दिवस के रूप मे मनाया जाता है क्योंकि इसी दिन देवों की करूण पुकार को सुन आदिशक्ति जगदम्बा शाकुम्भरी के रूप मे शिवालिक हिमालय मे प्रकट हुई थी।

इस दिन देवी शाकम्भरी का अवतरण हुआ था।ये सहारनपुर की शिवालिक पर्वत श्रृंखला मे माँ का अवतरण स्थल स्थित है। इस पावन शक्तिपीठ मे भीमा, भ्रामरी ,शताक्षी और गणेश जी भी अपने दिव्य रूप में विराजमान है।

शाकंभरी जयन्ती:-

जैन ओर हिंदुओं धर्मावलंवियों द्वारा इस दिन को शाकंभरी जयंती के रूप में मनाया जाता है। माता शाकंभरी देवी जनकल्याण के लिए पृथ्वी पर आई थी। यह मां प्रकृति स्वरूपा है हिमालय की शिवालिक पर्वत श्रेणियों की तलहटी में घने जंगलों के बीच मां शाकंभरी का अवतरण हुआ था। एक समय भयंकर अकाल पड़ने पर सम्पूर्ण मनुष्य जाति और जीव परमाँ शाकंभरी की कृपा से इस सूखी हुई धरती को पुनः नवजीवन मिला। माता के देश भर में अनेक मंदिर हैं पर सहारनपुर शक्तिपीठ की महिमा सबसे निराली है क्योंकि माता का सर्वाधिक प्राचीन शक्तिपीठ यही है।यह प्राचीन विश्वविख्यात शक्तिपीठ सिद्धपीठ शाकम्भरी देवी के नाम से विख्यात है।जो उत्तर प्रदेश के जिला सहारनपुर में पड़ता है। इसके अलावा माता का एक प्रधान मंदिर राजस्थान के सीकर जिले की अरावली की पहाड़ियों में एक सुंदर घाटी में विराजमान हैं।जो सकराय माता के नाम से विख्यात हैं। माता का एक अन्य मंदिर चौहानों की कुलदेवी के रूप में माता शाकंभरी देवी सांभर में नमक की झील के अंदर विराजमान हैं। राजस्थान के नाडोल में मां शाकंभरी आशापुरा देवी के नाम से जन जन में पूजी जाती हैं । यही मां दक्षिण भारत में बनशंकरी के नाम से पूजी जाती हैं। कनकदुर्गा इनका ही एक देव्य रूप है। इन सभी जगहों पर शाकंभरी नवरात्रि और पौष पूर्णिमा का उत्सव मनाया जाता है। मंदिरों में दीप आरती शंख घड़ियाल ध्वनि होती है और गर्भगृह को शाक सब्जियों और फलों से सजाया जाता है ओर भक्तो में प्रसाद रूप में बांटा जाता है।
इस प्रकार से छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचलों में रहने वाली जनजातियाँ पौष माह के पूर्णिमा के दिन छेरता पर्व बडे़ धूमधाम से मनाती हैं। सभी के घरों में नये चावल का चिवड़ा गुड़ तथा तिली के व्‍यंजन बनाकर खाया जाता है। गांव के बच्‍चों की टोलियाँ घर-घर जाकर परम्‍परानुसार प्रचलित बोल “छेर छेरता काठी के धान हेर लरिका” बोलते हैं और मुट्ठी भर अनाज मांगते हैं। रात्रि में ग्रामीण बालाएं टोली बनाकर घर में जाकर लोकड़ी नामक गीत गाती हैं।
पूर्णिमा तिथि की शुरुआत: – 28 जनवरी, गुरुवार को 01 बजकर 18 मिनट से प्रारम्भ होकर
पूर्णिमा तिथि समाप्त:- 29 जनवरी, शुक्रवार की रात 12 बजकर 47 मिनट तक होगी।
यो इस समय अखण्ड ज्योत जलाकर खीर का भोग लगाकर व्रत प्रारम्भ ओर अंत मे समापन करें ओर मंदिरों में बांटे।ओर अधिक से अधिक गुरु मन्त्र व इष्टमंत्र का जप ओर रेहीक्रियायोग विधि से मूलाधारचक्र व स्वाधिष्ठान चक्र का ध्यान करें।

जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिबजी
Www.satyasmeemission.org

Follow us :

Check Also

कथित Dog Lovers ने जयेश देसाई को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी

आजकल एनिमल लवर्स का ऐसा ट्रेंड चल गया है कि जरा कुछ हो जाये लोग …

Leave a Reply

error

Enjoy khabar 24 Express? Please spread the word :)

RSS
Follow by Email
YouTube
YouTube
Set Youtube Channel ID
Pinterest
Pinterest
fb-share-icon
LinkedIn
LinkedIn
Share
Instagram
Telegram
WhatsApp