होलोकास्ट के पीड़ितों की याद में अंतर्राष्ट्रीय दिवस 27 जनवरी को मनाया जाता है।इस दिन ऑशविट्ज़ की मुक्ति हुई,ये माना गया कि,ये नरसंहार ओर इससे मुक्ति होना द्वितीय विश्व युद्ध के अंत यानी प्रलय के अंत की निशानी है।
इस दिवस की थीम का विषय:-
इस दिवस पर हर वर्ष एक विषय चुनने का उद्देश्य हर जगह सभी लोगों की गरिमा और मानवाधिकारों के लिए सम्मान सुनिश्चित करना है।
इस दिवस मनाने का इतिहास:-
इस युद्ध में इन आंकड़ों के अनुसार, पोलैंड में 3 मिलियन यहूदियों, USSR में 1.2 मिलियन, बेलारूस में 800 हजार, लिथुआनिया और जर्मनी में 140 हजार, लातविया में 70 हजार, हंगरी में 560 हजार और रोमानिया में 280 हजार लोगों की मौत हुई।, हॉलैंड – 100 हजार, फ्रांस और चेक गणराज्य में -0 हजार, स्लोवाकिया, ग्रीस, यूगोस्लाविया में 60 से 0 हजार लोग मारे गए।इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि गणना कितनी मुश्किल हो सकती है, उन सभी के लिए जो अंतर्राष्ट्रीय प्रलय स्मरण दिवस का सम्मान करते हैं, नाजी अत्याचारों को संक्षेप में सुना गया था।जो मानवता के खिलाफ एक भीषण अपराध है।
1941 से 1945 तक, इसके क्षेत्र में 1.4 मिलियन लोग मारे गए थे, जिनमें से 1.1 मिलियन यहूदी थे। यह शिविर सबसे लंबे समय तक चला और इतिहास में प्रलय के प्रतीक के रूप में जाना गया। युद्ध की समाप्ति के दो साल बाद, यहां एक संग्रहालय का आयोजन किया गया जो यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल का हिस्सा बना।
चूँकि यह इस विश्व युद्ध का पहला ऐसा शिविर था जो फ़ासीवादी सैनिकों की हार के दौरान आज़ाद हुआ था, इसलिए यह पृथ्वी पर क्रूरता, अमानवीयता और सच्चा जीता जागता नरक बन गया था। संयुक्त राष्ट्र के फैसले के अनुसार, 27 जनवरी को, द्वितीय विश्व युद्ध के नरसंहार के पीड़ितों के लिए ये दिन इस सब घटना का स्मरण का दिन यानी स्मृति का अंतर्राष्ट्रीय दिवस बन गया।
नवंबर 2005 में, संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) ने आधिकारिक तौर पर 27 जनवरी को इस द्धितीय विश्व युद्ध प्रलय के पीड़ितों की याद में अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाया गया।
27 जनवरी 1945 को, सोवियत सैनिकों ने ऑशविट्ज़-बिरकेनाउ के नाजी एकाग्रता और निर्वासन शिविर की मुक्ति के 7,000 से अधिक शेष कैदियों को मुक्त कर दिया।
इस सम्बन्धित हर मनुष्य के मन मे जी,पहला सवाल जो होलोकॉस्ट का अध्ययन करते समय उठता है,की यहूदी लोगों ने इतनी नफरत क्यों पैदा की? मानवता को नष्ट करने के उस कार्यक्रम में यहूदी ही मुख्य लक्ष्य क्यों बने? आज तक अनेक शोधों में इन प्रश्नों के कोई निश्चित उत्तर नहीं हैं। इस सम्बन्धित सबसे सामान्य उत्तरों में से एक यह है कि उस समय यहूदी-विरोधी जर्मन जन चेतना की विशेषता थी, जिसे जर्मनी के लोगो मे एडोल्फ हिटलर अविश्वसनीय स्तर तक बढ़ाने में कामयाब रहा। इसीलिए, एक सामान्य हित के पीछे छिपते हुए, वह विनाश के लिए अपने लक्ष्यों को महसूस कराने में जर्मनी के लोगो मे बहुत कामयाब रहा।
जर्मन लोगों के इस तरह के संबंध का एक और कारण यह तथ्य है कि नवंबर 1938 में क्रिस्टल नाइट के बाद यहूदियों से ली गई संपत्ति को आम जर्मनों को हस्तांतरित कर दिया गया था। अन्य कारणों में, उनकी संपत्ति के लिए संघर्ष और उन प्रमुख पदों के लिए जिन्हें समाज में यहूदियों ने कब्जा किया है, सबसे अधिक संभावना के रूप में कहा जाता है। हालाँकि, इसके अलावा, नस्लीय श्रेष्ठता का प्रश्न हिटलर की बयानबाजी का प्रमुख के स्वरूप था।यही जातीय क्षेत्रीय प्रांतीय राष्टीय भेदभाव को बढ़ाते विघटन करते हुए आज भी नेतागण अपने भाषणों के द्धारा जन समाज मे बंटवारे को बढ़ाकर अपनी वोट बैंक बनाकर अपनी पार्टी को विजय दिलाते है और सत्ता हासिल करते है। यो इस सब मानवीय समाजशास्त्र का अध्ययन हमें आज के इस 27 जनवरी, प्रलय स्मरण दिवस पर करना चाहिये।की कैसे इससे रूढ़िवादी घृणा का महाभाव को ज्ञानयोग के ध्यानयोग के द्धारा जन साधारण लोगो के सामने प्रस्तुत किया जा सकता है।
इस सम्बन्धित हर मनुष्य मन मे
यो इस दिवस की विभिषिता को स्मरण करते करते हुए अपनी ज्ञानयोग कविता के द्धारा इस नरसंहार भाव का उदय ओर शोधन मनुष्य के किस चक्र में होता है,और क्या निराकरण उपाय है,ये बताता कहते है कि,
27 जनवरी – प्रलय स्मरण दिवस पर ज्ञानयोग कविता
योग में यम एक स्तर
जिसमें पांच नियम है।
ब्रह्मचर्य अस्तेय अपरिग्रह अहिंसा
सत्य अंतिम संयम है।
इन्हीं पांच नियम ज्ञान को
जो करता है धारण।
वही योगी बन जीवन जीता
बिन इनके म्रत्यु वारण।।
इनमें अस्तेय ओर अहिंसा
दो नियम करुणा के दाता।
इन्हें साधकर दयावान है बनता
विश्व बन्धुत्त्व महाभाव है आता।।
जातिवाद क्षेत्रवादी घृणा
ऊंच नीच का विभत्सवी भेद।
मनुष्य मनुष्य में दूरी जग धूरी
मिटाना इन्हीं दो नियम से अभेद।।
इन दोषों का स्थान शरीर में
स्वाधिष्ठान चक्र से विस्तारित है।
मैं ही सर्वोच्च ओर सम्पूर्ण हूँ
यही गुण इस चक्र उभारित है।।
कच्चा अहं इस चक्र में बसता
ओर देता अनुभव भेद सभी।
नर नारी ओर जीव लिंग में
कौन नीच उच्च सुख सत्ता पाये अभी।।
क्यों दूँ अपनी वस्तु इसको
क्यों करूँ इसकी मैं सँगत।
क्यों झुकूं क्यों दबू दबाउं
क्यों बैठूं इन ऊंच नीच की पंगत।।
मैं ही सत्ता करूँ सभी पर
पूरा जीतू ये विश्व पटल।
दो दिख रहा उस विजय करूँ मैं
झोंक सभी को अपने अहं तल।।
इसी भाव के चलते होते
जाति क्षेत्र देश विश्व युद्ध।
मरते मारते अनगिनत योद्धा
जन नरसंहार बढ़ इन भाव क्रुद्ध।।
इसी भाव के चलते आज भी
बढ़ता जा रहा सैन्य बल।
अनगिनत तन मन धन खर्च हो रहा
बढ़ रहा विजय का हर्षित छल।।
मरते मारते दुःख सुख मानते
ओर बढ़ाते मन हिंसा खा मांस।
भूख बढ़ती अंनत हिंसा सत्ता की
जीता मरता पुनः जन्म ले हर सांस।।
तभी अनेक युद्ध जीत योद्धा
भरे इसी हिंसा के विरुद्ध।
ओर त्याग राज्य वैभव सुख
पकड़ एकांत पाया ‘जिन’ बुद्ध।।
यो इसी चक्र का शोधन करना
इन दो नियमरूढ़ होकर।
इन्हें समझना झांक अंतरमन
ज्ञान साधना जप तप से घोकर।।
जयों जयों रेहीक्रियायोग करोगे
त्यों त्यों मथित होते ये दोष।
ओर उदय होता प्रभात प्रज्ञा का
दया करुणा शांत अन्तरनांद घोष।।
यो मनाओ आज कर रेहीक्रिया
ओर फैलाओ शांति संदेश।
बढ़ो बढाओ इसी योग पथ
जय मानवता गूंजें हर देश।।
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी
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