
विश्व कलाकार 25 अक्टूबर व कला दिवस 15 अप्रैल ओर विश्व रंगमंच 27 मार्च पर कविता
इस दिवस पर स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी अपनी ज्ञान कविता के माध्यम से जीवन एक रंगमंच है और उसपर हम सब एक कलाकार है,किंतने अच्छे से जीवन को नवरंगों से भरते हुए कलापूर्ण करके अपने संग सबको जोड़कर कैसे परिपूर्ण बनते जीते है ओर एक सम्बन्ध में एक व्यक्ति बचपन से युवा व विवाह फिर जीवन के अनगिनत पहलुओं को अपेक्षा उपेक्षा के पुरस्कार ओर पराजय के अनुभवों के साथ जीत कर जीता हुए क्या महसूस करता है,उस कलाकार के भावों को शब्दों में इस प्रकार से कहते है कि,,
कलाकार शब्द छः अभिव्यक्ति देता
कोन हूँ लालसा क्या अतिवाद कहां।
किसका आभाव जो आवाहन करूँ
रास्ता इस जहां तरुं किस पकड़ बहां।।
पैदा होते ही नजरें खुलते ही
पाता है खड़ा अपने को एक रंगमंच।
तरहां तरहां की पुचकार फटकार
समझ आती उनके चहरों की कंच।।
स्पर्श लाड़ के पीछे का भाव अभाव
ओर लोगों के बदलती आँखों की भाषा।
मुझे देते मेरा कोई नाम उपनाम
पुरस्कार की मुझसे बदले एक मुस्कराहट भरी अभिलाषा।।
यूँ ही इन्हें पहचानते बड़ा हुआ
तब ओर भी देखें जिंदगी के रंग।
लोगे के जीवन को बदलते सलूक
संग बदले की लेन देन के ढंग।।
प्यार दुलार तिस्कार आभार
ओर बैठ खाली जीवन निहार।
रून्दन क्रंदन आँशुओ का चंदन
सब कुछ खोने पाने को कर अन्तरनांद गुहार।।
जितना जानता गुनता गया
उतना निखरा मैं का स्वरूप।
अभिव्यक्ति बढ़कर बनी बंधन
ओर आगे समझा मुक्ति अरूप।।
एकल से दोवल बना
और चढ़ देखा प्रेम पहाड़।
फिर मिलकर प्रेम फल जने
यूँ गुने ग्रहस्थ के ताप प्रताप प्रगाढ़।।
ईश्वर है या नहीं इस किया तर्क
कभी मिला चैन बेचैन।
अनुभव हुए मीठे कटु
कभी बीती रीते रेन बेरेन।।
यही देखते गुनते घुनते
बीती जिंदगी सारी भारी।
कुछ बची फली फूली छुटी
तो कुछ उजड़ी क्यारी।।
जाते में लगा कि जो जीया
वही एक जिंदगी है।
वही कलाकारी है मझमें जीये कलाकार की
यही समझ बिताई मेरी बंदगी है।।
जिंदगी एक रंग मंच है
ओर उसे जीना एक कला।
उसमें भरने सप्त रंग रंगीन
यही सीख उतारना एक कला।।
यो ढूढों अपने लिए अहसास एक
जिसे उकेर उभार बना एक प्यार।
खुले उन्मुक्त आकाश दो उसे दो पंख
जियो उस अहसास हर सांस बन एक कलाकार।।
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी
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