कोन पालता इस धरा ओर जीव
कोन सींचता स्वयं जल बिन पीव।
कोन जागता रात को बना भौर
कोन सोता सुला भूखे दे कौर नींव।।
बिन पूछे तुमसे जात पात
दे खाने को रोटी और भात।
फिर दे कर जल प्यास मिटा विकल
तब पूछे कोन हो तुम करें बात।।
इसी सहयोग नाम किसान है
बिन बोले तोले देता बन दाता।
पैदा करता झेल भूख प्यास खुद
दे कर जीवन खुद मृत्यु पाता।।
कृषक चार अक्षर बना
किसान नाम मे पांच।
अर्थ काम धर्म मोक्ष संग
किसान पंचदेव स्वयं धर्म सांच।।
यही किसान आज मिट रहा
अपने किये उत्पादन।
उसका मूल्य मोल दूजे करे
कृषक बना कठपुतली उनका साधन।।
फिर दोहर रहा सो साल बाद वही
हो रहे किसान अत्याचार पर असहयोग तोलन।
पर वापस लेना पड़ा हिंसा बन वो
कहीं यही हाल न हो इस किसान आंदोलन।।
जय जवान जय किसान
केवल बना नारा महान।
कोई विशेष काम न हुआ आजतक
बस मृत्यु झेल बना किसान भगवान।।
दो काम हुए अबतक बस अच्छे
कम दाम पर बीज हुए उपलब्ध।
हरित क्रांति नाम सहयोग हुकूमत
खादय सुरक्षा बिल अन्न सस्ता उपलब्ध।।
खूब बांटा अन्न कम दाम पर
दे श्रेय ले होड़ है हर सरकार।
कोन ने पैदा किया अन्न ये
उसी किसान को करें इस नियम बेकार।।
इसी सभी समस्या निदान को
देता अपना मत का दान।
बनाकर राजा करे दुख सुख साझा
फिर भी मिले नहीं उसे हित समाधान।।
वोट मांगने नमन करें सब
छोटा बन कर नेता बड़ा।
वही किसान से आज बात करने को
बड़ा नेता बना आज चिकना घड़ा।।
हठधर्मिता चली नहीं आजतक
विश्व के किसी भी देश सरकार।
चाहे काम कितना किया अच्छा
मिट गई तुरंत किसान प्रहार।।
सिंधु से लेकर हिन्दू तक
सभी समय दबाया किसान।
अशिक्षा अधिक रही है कारण
इस कारण किसान मिटा सम्मान।।
कपास किसान आत्महत्या करता
जिस कपास से कपड़े बनते।
सर्दी गर्मी मिटती इन्हें पहन जग
वही किसान है कपड़े बिन मंगते।।
मजबूर करो मजदूर एक हो
गिरा दो उनकी ऊंची दीवार।
जिनके पीछे नहीं पहुँच चींख है
पीड़ित पीड़ा नहीं वहां स्नेही सार।।
अबकी बार बोओ अन्न उतना
जितना खाने को हो पर्याप्त।
बाकी रख लो भंडार स्वयं को
बेचो मनचाहे दाम कर नाप्त।।
असहयोग आंदोलन खेत में कर दो
बिन करे उत्पादन एक वर्ष अन्न।
बढ़गी मंहगाई झुके जग सारा
तभी तुम् भगवान करें नमन हर जन।।
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
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