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समस्त योग सिद्धि को सिद्धासन कैसे करें, ऐसा पहले कहीं भी नहीं पढ़ा देखा होगा… बता रहे हैं महायोगी स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी

जैसे कि नाम से ही पता चलता है कि – “सिद्धासन” यानी समस्त सिद्धियों को साधने व देने वाला आसन जो सिद्धासन कहलाता है। अभीतक इसकी टक्कर का कोई भी 84 आसनों में आसन नहीं है।

अब सिद्धासन कैसे करें:-

तो सबसे पहले सीधे बैठ जाये और फिर अपने दोनों पैर अपने सामने की ओर फैला ले, अब सीधा पैर को समेट कर अपनी जनेन्द्रिय के पास लाये ओर अब उल्टा पैर समेटे ओर उसके पंजे को सीधे पैर के ऊपर रखें,ऐसा करने पर,दोनों पैर के टखने एक दूसरे पर होने चाहिए, अब सीधे पर के अंगूठे व पहली उंगली को उल्टे पैर की पिंडली के बीच मे हाथ देकर पकड़ कर,फिर उल्टे पैर की पिंडली के नीच ही उसमें व वहीं रहने दे यानी वही पिंडली में दबा दें,अब ठीक ऐसे ही उल्टे पैर के अंगूठे व पहली उंगली को पकड़कर सीधे पैर की पिंडली के नीचे से हाथ देकर खींचकर फिर उल्टे पैर की पिंडली के अंदर दबा दे,तब ध्यान रहे ऐसा होने पर भी दोनों पैरों के टखने एक दूसरे पर अवश्य ही चढ़े रहे,यदि इन टखनों की हड्डियों में परस्पर रखने से दर्द हो तो,इनके बीच मे एक पतला कपड़े की दो तह बनाकर रख लें,आगे अभ्यास बढ़ने पर कपड़े की गद्दी की आवश्यकता नही होगी।

अब निचले सीधे पैर की एड़ी जो कि,लिंग गुदा के बीच की प्रमेह नाड़ी या सीवन नाड़ी को जरा सी छू रही थी,तब अपने दोनों हाथों से कुछ हल्का सा ऊपर को उठते यानी खिसकते हुए अपने हिप्स या नितंब से बहुत जरा सा आगे को बढ़कर सीधे पैर की एड़ी पर जरा सा बैठ सा जाये, ऐसा करते ही आपकी कमर बिलकुल सीधी हो जाएगी।ध्यान रहे कि,सीधे पैर की एड़ी पर ज्यादा चढ़ सा नही जाएं, बस मात्र यदि आपकी सीवन या प्रमेह नाड़ी को कुछ टच करती रहे,इसी एड़ी ओर प्रमेह नाड़ी के सम्पर्क से प्रमेह नाड़ी गर्म होने लगेगी और वहां से जरा सा ऊपर की ओर रीढ़ के मूल में स्थित कुंडलिनी तंत्र चक्र में प्राणों की गर्मी बढ़ने लगेगी और इसमे किये समसूत्र प्राणायाम करने व बार बार मूलबंध लगाने छोड़ने की अश्व मुद्रा के उपयोग से वहां हो रहे प्राणों के आघात की बमबारी से ढाई तत्व-धन+ऋण+अर्द्ध बीज=यानी अपान वायु ऊपर गर्म होकर उठती हुई,नाभि चक्र में ऊपर से आती ढाई तत्व-ऋण+धन+अर्ध बीज=यानी प्राण ऊर्जा के साथ मिलकर रेहि चक्र यानी रेहि क्रियायोग करती यानी मन्थति चलती है,जिससे पंचतत्वों में निरंतर मंथन ओर मन्थित होने से एक समल्लित ऊर्जा बनती हुई,जिसे कुंडलिनी कहते है,ये पँचत्तवी ऊर्जा कुंडलिनी बनकर जाग्रत होकर उठती है।तब अंत एक एक करके चक्र शोधित होकर खुलते यानी जाग्रत होते है।यही सिद्धासन के द्धारा रेहि योग का कण्डलिनी जाग्रति है।

पद्धमासन से ऐसा योग सिद्धि नहीं मिलती है,उसमें पैरों के कोई भी शक्ति बिंदु नही दबते है,पैर के तलवों में जो भी शक्ति बिंदु यानी प्रेशर पोइन्ट है,वो खुले ही रहते है,उनमे कोई ऊर्जा का स्फुरण नहीं होता है।सिद्धासन में शरीर मे जो 16 शक्ति पॉइंट है,उनमे से लगभग 9 शक्ति पॉइंट पैरों में है,वे 9 पॉइंट में से पैर के तलुवे में तीन ओर टखने में एक व पिंडली के दो और जांघ व सीवन नाड़ी के पास के तीन बिंदु,इन सब शक्ति बिंदुओं पर दबाब से शक्ति जाग्रत होकर शारारिक से लेकर सूक्ष्म तक सबकी जाग्रति व स्वास्थ्य लाभ व आध्यात्मिक लाभ की प्राप्ति होती है। तभी अनगिनत लाभों की सिद्धि मिलने से इसका नाम सिद्धासन है।करो और लाभ पाओ,,

*-सिद्धासन में अपने दोनों हाथों को अपने घुटनों पर रखें या अपनी गोद मे भी सहजता से रख कर बैठे।
*-सिद्धासन से अनावश्यक काम भाव की समाप्ति होकर जनेन्द्रिय के समस्त रोग व कमजोरी उत्थान या नीरसता आदि की समाप्त होती है।
*-घुटनो की सूजन व मांसपेशियों का दर्द खत्म होता है।
*-साइटिका का रोग खत्म होता है।
*-मूलाधार चक्र से नितंब व पैरों के अंत तक भाग पर केतु ग्रह का अधिकार होता है,यो सिद्धासन के निरंतर अभ्यास से केतु ग्रह की शुद्धि होकर पैरों में स्थित 9 शक्ति पॉइंट की ऊर्जा का बंधन खुलकर शुद्ध प्रवाह ऊपर की ओर होने लगता है,नतीजा शक्ति मूलाधार चक्र में पहुँचकर मूलाधार चक्र को खोल देती है,ओर वहां से स्त्री का रज व पुरुष का वीर्य को तप्त करके शुद्ध करके ओज व तेज में परिवर्तित करती हुई कुंडलिनी शक्ति व उसकी जाग्रति की प्राप्ति होती है।
*-अत्याधिक देर तक एक ही स्थिति में बैठने की शक्ति प्राप्त होती है,यानी आसन सिद्धि की प्राप्ति होती है।
*-इच्छा शक्ति की निरंतर व्रद्धि होती है।

*-विशेष अभ्यास के समय किस पैर से प्रारम्भ करके लगाए सिद्धासन:-

जब आप रेहि क्रियायोग का अभ्यास करें तो,अपनी नाक पर सीधे हाथ को थोड़ी दूर पर रखते हुए,थोड़ी जोर से बाहर को सांस फेंके,तो आपकी सीधी या उल्टी नांक में से जिसमे भी साफ सांस आ रही हो,ठीक उसी साइड का पैर अपने सामने को फैलाये ओर दूसरे पैर को सिकोड़ना कर उसके ऊपर रखना है,बाकी जैसा ऊपर बताया है,वैसा ही करें।बस चलती सांस की साइड वाला पैर इस आसन में ऊपर रहेगा और कम चलती सांस वाला पैर नीचे रहेगा।


ऐसा प्रतिदिन सांस को जांच कर करना है,चाहे कुछ दिन वही स्वर चले,तो वही पैर ऊपर रहेगा।

जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
www.satyasmeemission.org


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