एक कर्मठ,अनुभवी सामाजिक/राजनीतिक कार्यकर्ता की छवि के धारक राजनाथ जी कुशल प्रशासक माने जाते हैं।
ऐसे विरल व्यक्तित्व के स्वामी जब संसद में उपहास के पात्र बनते दिखें, तब पीड़ा स्वाभाविक है । विगत कल,सोमवार को लोकसभा में कर्नाटक में जारी ‘आया राम, गया राम ‘ का मुद्दा उठा।स्वाभाविक रूप में विपक्ष ने ‘खेल ‘ के लिए केंद्र और भाजपा को जिम्मेदार ठहराया ।सरकार की ओर से जवाब देते हुए राजनाथ जी ने आरोपों को गलत तो बताया, लेकिन विधायकों के इस्तीफों पर व्यंग्यात्मक लहजे में बोल बैठे कि,”इस्तीफ़ा की शुरुआत तो राहुल गांधी ने की।”
इसी बिंदु पर राजनाथ के प्रशंसक निराश हो उठे।किसी राजनीतिक दल के सांगठनिक पद से इस्तीफा और विधायक के पद से इस्तीफा में फर्क को राजनाथ सिंह कैसे नहीं समझ पाये?राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा और कुछ विधायकों के विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफ़ा को एक ही तराजू पर कैसे तौल गये देश के रक्षा मंत्री? जबकि, दोनों मामले अलग-अलग प्रकृति के हैं ।
क्या बुद्धिमान राजनाथ सिंह ने सिर्फ शीर्ष नेतृत्व को खुश करने के लिए अपने को ‘मूर्ख ‘ की भूमिका में उतार दिया?…..वह भी एक ‘विदूषक ‘ के हाव-भाव के साथ!
वरिष्ठ पत्रकार श्री एस एन विनोद जी के फेसबुक वॉल से