बता दें कि केंद्र सरकार ने इस कार्रवाई के लिए भारतीय सेवा आचरण नियमों के अनुसार कार्रवाई करने के लिए कहा है। अगर ऐसा हुआ तो जिन अधिकारियों के पास मैडल थे वे छीन लिए जाएंगे। इतना ही नहीं उन अधिकारियों के अधिकार, नौकरी आदि तक छीनी जा सकती है।
एमएचए सूत्रों के मुताबिक केंद्र सरकार उन अधिकारियों पर शिकंजा कसने जा रही है जो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री के साथ सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों में शामिल थे।
आपको बता दें कि केंद्र सरकार का यह एक बड़ा फैसला है जो ममता बनर्जी को कहीं न कहीं मात देने के लिए उठाया गया कदम है।
सीबीआई बनाम पुलिस की लड़ाई पहले ही मोदी सरकार बनाम पश्चिम बंगाल सरकार बन गयी थी।
4 फरवरी को कोलकाता में ममता बनर्जी के धरने में भाग लेने वाले अधिकारियों के खिलाफ इस कार्रवाई से ममता बनर्जी को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है क्योंकि ममता किसी भी मुद्दे पर झुकने के किये तैयार नहीं दिख रही हैं।
एमएचए की रिपोर्ट के मुताबिक केंद्र सरकार ने पश्चिम बंगाल सरकार को अखिल भारतीय सेवा आचरण नियमों के अनुसार कार्रवाई करने के लिए कहा गया है।
जानकारी के मुताबिक पश्चिम बंगाल में पांच आईपीएस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है। इनमें 1985 बैच के डीजीपी (पश्चिमी बंगाल) विरेंद्र, 1994 बैच के एडीजी विनीत कुमार, 1991 बैच के एडीजी कानून व्यवस्था अनुज शर्मा, 1993 बैच के विधाननगर कमिश्नरेट ज्ञानपंत सिंह और 1997 बैच के एडिशनल सीपी कोलकाता सुप्रतिम सरकार शामिल हैं।
इसके अलावा लापरवाही करने वाले अधिकारियों के खिलाफ भी केंद्र सरकार सख्त हो गई है। इन अधिकारियों से मेडल भी छीने जा सकते हैं। ऐसे अधिकारियों पर केंद्र सरकार सेवा देने से भी रोक लगा सकती है। इस मामलों में केंद्र सरकार राज्य सरकारों को एक नोटिस जारी करने पर विचार भी कर रही है।
खैर जो भी हो, इस लड़ाई में न तो केंद्र सरकार झुकने को तैयार है और ना पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री।
पश्चिम बंगाल के लिए यह “आन” तो “केंद्र सरकार” के लिए यह नाक की लड़ाई बन चुकी है। क्योंकि सुप्रीमकोर्ट के फैसले के भरोसे बैठी केंद्र सरकार को वहां से भी तगड़ा झटका लगा था। अब देखना यह दिलचस्प रहेगा कि ठीक इमरजेंसी के समय ऐसा होने वाला वाकया क्या दोबारा भो दोहराया जाएगा?
ममता बनर्जी पहले ही मोदी सरकार पर अघोषित इमरजेंसी के आरोप लगाती रही हैं। अगर पश्चिम बंगाल के IS अधिकारियों के खिलाफ केंद्र सरकार ने कड़ा रुख अपनाया तो ममता और विपक्ष इसे अघोषित इमरजेंसी कहँगे या फिर कुछ और…..?
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