लेकिन भारतीय मीडिया डरपोक और बिकाऊ हो गया है। यहां पर सिर्फ सत्तापक्ष को दिखाना चलन हो गया है। हमारा मीडिया दूसरे पक्ष को विलेन बना देता है।
लेकिन बाबजूद इसके भारतीय गोदीमीडिया को न जाने क्या-क्या सुनना पड़ता है। भारतीय मीडिया गुलामी की सरकारी जंजीरों में जकड़ा हुआ नज़र आता है।
बैंक डकैतों का मामला, राफेल, टेलीकॉम, कृषि घोटाला, नोटबंदी या फिर सरकार की नाकाम योजनाएं हों, हमारे मीडिया ने कभी हिम्मत दिखाकर सरकार को कटघरे में खड़ा नहीं किया। आंखों में आँखें डालकर सवाल पूंछने की हिम्मत नहीं दिखाई। 2014 के बाद जिस तरह मीडिया की स्वतंत्रता समाप्त की गई है वह वाकई खतरनाक है। मीडिया की स्वतंत्रता के मामले में भारत बहुत पीछे है, पीछे ही नहीं हम पाकिस्तान से भी पीछे हैं। यहां पर जैसे ही सरकारी तंत्र की आलोचना होती है उसके फौरन बाद उस मीडिया हाउस को न जाने क्या-क्या झेलना पड़ता है। अमेरिका में भी वैसा ही है लेकिन वहां के मीडिया में अपना खुद का बाहुबल है, वहां के लोगों का साथ है जो वहां के मीडियाकर्मियों की असल हिम्मत भी है।
अमेरिकी और भारतीय मीडिया में अंतर साफ है। कारण है कि वहां के लोगों पढ़े लिखे हैं, उच्च शिक्षित हैं।
हमारे देश में सत्ता पक्ष अपने ऊपर आरोपों को धार्मिकता और देश प्रेम से जोड़ देता है लेकिन अमेरिकी सिर्फ देश प्रेम देखते हैं, देश का हित देखते हैं। तभी तो वहां के लोगों ने भी ट्रम्प का जीना मुहाल किया हुआ है और यही कारण है कि ट्रम्प चाहकर भी अमेरिका की अर्थव्यवस्था को खराब नहीं कर पा रहे हैं। वहां के वासिंदे पढ़े लिखे हैं, सवाल करना जानते हैं, अपना अच्छा बुरा जानते हैं। ट्रम्प चुनावों में घालमेल करके जैसे-तैसे राष्ट्रपति तो बन गए लेकिन वो वही काम कर रहे हैं जो वहां के लोग चाहते हैं तभी तो वहां एक के बाद एक फैसले वहां के लोगों के मुताबिक बदले जाते हैं। जब भी ट्रम्प कुछ ऐसा कार्य करते हैं तो अमेरिकी मीडिया ट्रम्प के सामने दीवार बनकर मजबूती के साथ खड़ी हो जाती है। क्योंकि उसमें खड़े होने की हिम्मत है। वहां के लोग भी मीडिया का साथ देते हैं।
भारत के लोग और भारतीय मीडिया
भारत में मीडिया की स्वतंत्रता न के बराबर है। आरडब्ल्यूबी की साल 2012 की प्रेस फ्रीडम इंडेक्स (मीडिया स्वतंत्रता सूचकांक) के मुताबिक मीडिया की स्वतंत्रता के मसले पर भारत दुनिया भर में 131वें स्थान पर है। जी अब बढ़कर 145 वे स्थान पर हो गयी है। इस मामले में भारत पाकिस्तान से भी नीचे है और अफ़्रीकी देश बरूंडी से नीचे और अंगोला से ठीक उपर है। 2009 में इस सूचकांक में भारत 105 वें और 2010 में 122 वें स्थान पर मौजूद था।
वहीं इंटरनेटीय स्वतंत्रता के लिहाज से भी भारत की स्थिति कोई बेहतर नहीं है। भारत इस मसले पर अर्जेंटीना, दक्षिण अफ़्रीका और उक्रेन जैसे देशों से पीछे है।
हम अशिक्षित, गंवार, चोर-उच्चकों, हत्यारों, डाकुओं, बलात्कारियों को सांसद, विधायक बना देते हैं। हम अपना प्रतिनिधित्व करने के लिए ऐसे लोगों को सत्ता सौंप देते हैं। ऐसे में वो हमारा प्रतिनिधित्व करेगा या हम पर राज करेगा? संभव है वह अपनी बातों को हम पर थोपेगा।
साल 2014 के बाद जिस तरह के हाल हमारे देश मे मीडिया और अभिव्यक्ति की आज़ादी के हुए हैं वह आपातकाल से भी ज्यादा गंभीर हैं। सत्ता पक्ष अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला करने के लिए ट्रोल पैदा कर रहा है। ये वही ट्रोल हैं जो गंदगी की हर सीमा को लांघ जाता है, यहां तक सत्ता पक्ष के आलोचकों के बच्चों के साथ रेप की धमकी, जान से मारने की धमकी, अभद्र भाषा का इस्तेमाल, पीछा करके परेशान करने का काम इत्यादि जैसे घिनोने काम करता है।
सरकार अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए ट्रोल और गोदीमीडिया का इस्तेमाल करती है। ट्रोल्स की संख्या दिन पर दिन बढ़ती जा रही है।
सरकार अपनी नाकामियों को सफलता बना कर ट्रोल्स के जरिये परोस रही है। यानि सरकार मीडिया के साथ सोशल मीडिया को मैनेज कर रही है। संवैधानिक संस्थाओं का इस्तेमाल अपनी जीत के लिए कर रही है वहीं ईवीएम मशीन तक मैनेज हो रही हैं।
भारत में पत्रिकारिता का बुरा दौर
भारत में पत्रकारिता संकट के दौर से गुजर रही है। सच की आवाज को बुलंद करने वाले पत्रकारों पर दिन दहाड़े हमले, नेताओं के द्वारा मीडियाकर्मियों पर हमले, उनको जान से मारने की धमकी, परिवार के साथ बदसलूकी, जानलेवा हमले इत्यादि दिनों दिन बढ़ रहे हैं। जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर में ‘राइजिंग कश्मीर’ के संपादक व वरिष्ठ पत्रकार शुजात बुखारी की गोली मारकर अज्ञात हमलावरों ने हत्या कर दी। इससे पहले बेंगलुरु में कन्नड़ भाषा की साप्ताहिक संपादक व दक्षिणपंथी आलोचक गौरी लंकेश की गोली मारकर निर्मम हत्या करने का मामला सामने आया था। ठीक इससे पहले नरेंद्र दाभोलकर, डॉ. एम.एम. कलबुर्गी और डॉ. पंसारे की हत्या हुई थी। देश में लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के प्रति बढ़ती क्रूरता का अंदाजा तो इससे ही लगाया जा सकता है कि पिछले वर्ष में नौ बड़े पत्रकारों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। इसके अलावा छोटे शहरों में पत्रकारों की हालत तो और ज्यादा खराब है।
निःसंदेह, मीडिया सूचना, जागरूकता और खबरें पहुंचाने का काम करता है। सरकार के कार्यों को पब्लिक तक पहुंचाने का काम करता है तो आमजन की परेशानी को सरकार तक पहुंचाने का काम करता है। मीडिया एक माध्यम है सरकार और जनता के बीच की दूरियां मिटाने का। लेकिन भारत में मीडिया खुद अपने अस्तित्व को रो रहा है।
मीडिया भले एक संचार का साधन है, तो वहीं परिवर्तन का वाहक भी है। इसी वजह से एडविन वर्क द्वारा मीडिया को ‘लोकतंत्र का चौथा’ स्तंभ कहा गया था। भारत में मीडिया को संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (क) के वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जोड़कर देखा जाता है। यानि की प्रेस की आजादी मौलिक अधिकार के अंतर्गत आती है। लेकिन, वर्तमान परिप्रेक्ष्य में निरंतर हो रही पत्रकारों की हत्या, मीडिया चैनलों के प्रसारण पर लगायी जा रही बंदिशें व कलमकारों के मुंह पर आए दिन स्याही पोतने जैसी घटनाओं ने प्रेस की आजादी को संकट के घेरे में ला दिया है। आज ऐसा कोई सच्चा पत्रकार नहीं होगा, जिसे रोजाना जान से मारने व डराने की धमकी नहीं मिलती होगी। यहां तक कि मीडियाकर्मियों के बच्चों के साथ रेप की धमकी उनको मारने तक की धमकी दी जाती है और यह सब सत्ता पक्ष की तरफ से मैनेज होता है ट्रोल्स को यह सब घिनोनापंती करने के लिए पैसे दिए जाते हैं।
इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट यानी आई.एफ.जे. के सर्व के अनुसार, वर्ष 2016 में पूरी दुनिया में 122 पत्रकार और मीडियाकर्मी मारे गये। जिसमें भारत में भी छह पत्रकारों की हत्या हुई। वहीं पिछले एक दशक के अंतराल में 2017 को पत्रकारों की सुरक्षा के मामले में सबसे खराब माना गया है।
Manish Kumar
Editor-in-Chief, Khabar24 Express
Discover more from Khabar 24 Express Indias Leading News Network, Khabar 24 Express Live TV shows, Latest News, Breaking News in Hindi, Daily News, News Headlines
Subscribe to get the latest posts sent to your email.