तो क्या सच में मंत्र जप का एक दूसरे के कर्म काटने और शुभ फल प्राप्ति को लेकर कोई विशेष प्रभाव होता है?
स्वामी जी कुछ पूर्व और कुछ वर्तमान घटनाओं में योगिक सुतर्क ज्ञान को बता रहे हैं और इस विषय पर पहले अनेक प्रश्नात्मक चिंतन पर गुरुदेव स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी बता रहे है कि : –
[भाग-1]
प्रमाण:-अभी वर्तमान में ही कुछ अन्तराष्टिय स्तर के प्रसिद्ध सन्तों के अर्श से फर्श तक यानि उनके ईश्वर के मेल से क़ानूनी जेल तक की हुयी धटना के विषय में ही देखें की- यहाँ दो घटनाएं घटी है-
1-जिसके तीन पीढ़ियों के गुरु और शिष्य परम्परा हो और धीरे धीरे लाखों अनुयायियों से बढ़ते हुए करोड़ों अनुयायी होते गए हो तो वे कैसे और किस लाभ के चलते बढ़ रहे थे?
2-और इन सभी सन्तों का ध्यान करते हुए इनके करोड़ों शिष्य दिन में कम से कम दो समय-प्रातः और सायं तो अवश्य ही गुरु प्रद्त मंत्र जप गुरु का ध्यान करते ही थे और अब भी करते है।जबकि सभी शिष्यों को इन गुरुओं द्धारा कम से कम प्रातः और साय गुरु का दिया गुरु मन्त्र जप करने का कम से कम डेढ़ से तीन घण्टे तक करने का निर्देश तो दिया ही गया है। और वैसे भी सही से मंत्र जप और ध्यान आदि विषय में इतना समय तो लगता ही है। और बहुत से इसी पंथ में उच्चतर स्तर के साधक तो इससे भी अधिक समय जप ध्यान साधना को अवश्य ही निकालते और जप ध्यान करते ही है।जो की सभी पंथों में निकालते ही है। वे भी कम से कम इनके यहाँ हजारों तो होंगे ही, और वे सब चाहे आज्ञाचक्र पर ज्योति को स्मरण करते हुए ध्यान करें या कुछ भी विधि से करें,पर करते में अवश्य ही अपने गुरु को प्रेम और श्रद्धाभाव से स्मरण करके ही करते है। और दुःख में तो करते हैं ही,तब विचारणीय बात ये है की- क्या इतने करोड़ लोगो के प्रेम और श्रद्धाभाव से किये गुरु मंत्र जो की सभी का एक सा ही प्रेम श्रद्धा भरा अर्थ रखता है। उसका प्रभाव उनके इन गुरुओं पर शुभ रूप में क्यों नही पड़ा?
3-और यदि पड़ा तो इन आत्मसाक्षात्कारी व् ईश्वरकृपा प्राप्त गुरुओं की बुद्धि यदि कुलषित और दूषित और भ्रष्टाचार की और हो भी रही थी। तो उसमें कोई शुभ प्रभाव क्यों नही पड़ा?
-यहां कुछ रुक कर साधनगत विचार से सोचना,ना की आवेश से उत्तर देने लगना।
4-अब आगे के चिंतन पर आते है-यदि मानो गुरु जो अपनी आत्मसाक्षात्कार प्राप्ति के सम्पूर्णता की घोषणा कर रहा है। तब यदि वो उतना नही भी है,तब उसमें भक्तो के भक्ति पूर्ण जप ध्यान से निम्नता आनी चाहिए या उच्चता?इसका उत्तर क्या है?
5-अब ये प्रश्न उठता है और ये प्रश्न विचारणीय है? और इसपर भक्त तुरन्त कह सकते है की-जी अनुगत शिष्य तो स्वयं भूखे है, तो वे क्या किसी को भोजन देंगे?,तो यूँ यहां गुरु जी को केवल भक्तों के पाप कर्मों का ही पाप फल ही तो मिलेगा?,जैसे की कहा जाता है की- क्रिया का फल प्रतिक्रिया है-यानि की गुरु से शुद्ध शक्ति शिष्य में गयी-और वहां उन में जाकर सभी शिष्यों की अपनी अनंत संसारी और कामुकता भरी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करी और उस अपने सभी बुरे कर्मों को काटती हुयी शक्ति, जब वापस शिष्य के जप और ध्यान व् श्रद्धाबल से गुरु में पहुँची,तो सारे के सारे शिष्य के पाप के परिणामों को गुरु में उड़ेल दिया।ऐसे ही के चलते, यूँ एक समय ये आएगा ही,की गुरु जो शुद्ध था, जिन शुभकर्मों को करता हुआ शुद्ध हुआ था, वही अब अशुद्ध कर्मों की निरन्तर प्राप्ति करता हुआ,अंत में उन सभी बुरे कर्मों के फलों से पुनः अशुद्ध हो गया और ऊपर इन्हीं धार्मिक लोगों की भांति दण्डित हो कर जेल में या रोगी आदि होकर शेष जीवन काटता है।
क्या ये ही उदाहरण सच्चा अर्थ हुआ? इस बात का आप अवश्य चिंतन करें?
6-ऐसे ही अनेक गुरुओं के भी बीमार होने पर अंत में वे मृत्यु को प्राप्त हुए -जैसे सत्य साई आदि।वेसे जब सत्यसाईं बीमार हुए और अस्पताल में रोगी होकर पड़े थे, तब उनके करोड़ों भक्तों ने उस समय जो श्रद्धा और विश्वास और भक्ति भरे ह्रदय से रुंदन में गुरु प्रेम के भावावेश से की गयी सभी प्रार्थनाओं का प्रभाव कहाँ गया?
वे एक बार भी स्वस्थ नही हुए बल्कि स्वर्गवासी ही हो गए,तब क्या औचित्य है इन सब श्रद्धा विश्वास भरे कथित चमत्कारिक धर्म कथाओं का?
की जब भी भक्त ह्रदय में श्रद्धा से उन्हें एक बार भी स्मरण करता है। वे भगवान या गुरु नग्न पैर दौड़े चले आते है!! कहाँ दौड़े आये? या कोई देव या देवी आई?
7-ऐसे ही अभी कुछ समय पूर्व जब दिल्ली में प्रसिद्ध बलात्कार कांड हुआ? और तब से आज तक स्त्रियों के साथ ये बलात्कार और शोषण का अत्याचार निरन्तर घटने के स्थान पर, दिन रात बढ़ता ही जा रहा है?
क्या यहाँ ये तार्किक धर्म ज्ञान तो नही की- इन बलात्कारी पुरुष और बलात्कार पायी स्त्री के बीच अनेक जन्मों से एक दूसरे के प्रति प्रतिशोध का विकट भाव चला आ रहा है? यानि की एक दूसरे को लेकर, कभी स्त्री ने उस पुरुष का शोषण किया, तो कभी पुरुष ने शोषण किया और ये जन्मों जन्मों से जन्मों जन्मों तक ये परस्पर इन बलात्कारी या अन्य शोषित होने और शोषण करने की क्रिया और प्रतिक्रिया का अनंत जन्मों तक भयंकर प्रतिशोध चल रहा हो? जैसे की- सभी धर्म ग्रन्थ कहते है-की-जैसा करोगे,वेसा ही भरोगे।।जैसे महाभारत में भीष्म से अम्बा ने शिखंडी बन प्रतिशोध लिया,जैसी अनगिनत घटनाएं।
8-तब भी ये सब शुभ और अशुभ,दुआ और बददुआ और शुभ मन्त्र जप और नकारात्मक सकारात्मक विचार शक्तियों का ऊपर दिए गए तर्क के आधार पर आपके और सबके लिए क्या अर्थ हुआ,आप ये अवश्य चिंतन करें?
9-ऐसे ही एक और उद्धाहरण संसारी विषय से जुड़ा जाने और विचार करें -जैसे-अनेकों अभिनेत्रियों के प्रति अनगिनत करोड़ों उनके प्रसंसक भी उनके प्रति कामुकता के भावों को लेकर उन अभिनेत्रियों से जुड़कर कामुक सपने दिन और रात देखते है, तब क्या उनकी इस अपनी कामुकता भरी विचार शक्ति का प्रभाव उस एक अभिनेत्री या अभिनेता पर पड़ता है?
10-और क्या वो अभिनेता या अभिनेत्री भी जब-जब भी वे वेसा ही कामुकता से भरा फिल्मांकन द्रश्य कर रहे होते या होंगे?ठीक तब तो अवश्य ही इतने करोड़ों कामुकता और कथित प्रेम से भरे विचारों का एक होकर यानि इकट्ठा होकर, उस समय जब अभिनेत्री या अभिनेता ठीक उसी कामुक या कथित प्रेम के भाव को अपने अंदर से अनुभूत और अनुभव करता हुआ, उस चरित्र में जीवंत करता है,तब तो करोड़ों कामुकता और कथित प्रेम की विचार तरंग शक्ति का प्रवाह उन्हें उसी भाव से अनियंत्रित करके परस्पर पागल कर देना चाहिए?जबकि ऐसा नहीं होता है।वे सहज ही कुछ प्रयास को करते हुए वो दर्शय को पूरा कर लेते है।
11-सूत्र तो यही बताता है की- क्रिया की प्रतिक्रिया अवश्य होती है।अब चलो मान लें की- अच्छी की इतनी शक्ति भले ही ना हो, पर बुरे की तो अवश्य ही प्रभाव होती है।यो तब इस सबका आप क्या अर्थ मानें?
की कव्वे की कांव कांव से कोई भेस नही मरती? या सच में बददुआ असर करती है या नही?
12-तब यदि व्यक्ति का अपना ही किया व्यक्तिगत कर्म ही उसे अच्छा या बुरा फल देता है? तब ये सब धर्म का कथित ज्ञान की-इतने लाख या करोड़ फ़ला फ़ला या भिन्न भिन्न सिद्ध मन्त्र जप करने और किसी पण्डा, पंडित से पूजापाठ कराने से आपको या आपके पितरों को उनके पृथ्वी पर किये पापों से मुक्ति मिलकर स्वर्ग में अनेको एश्वर्य और शुभ फलों की प्राप्ति होगी?आपको ये बात सत्य लगती है या झूठ?
उपरोक्त सभी गणितीय योग से तो नही लगता है।की-ये बात सत्य है या होगी।
13-तब क्या सत्य है? आखिर इन करोड़ो भक्तों के गुरु में या गुरु के करोड़ों शिष्यों में जप ध्यान से परस्पर एक दूसरे के कर्मों को काटने का क्या लाभ या हानि हुयी? जो ये सब परिणाम पूर्व से वर्तमान तक दिखाई दे रहा है,इसका यथार्थ उत्तर क्या है?अभी और सभी अवश्य सोचे???
इसका उत्तर प्रसंग अगले लेख में भाग-2 में कहूँगा।यदि धर्म मार्ग में बढ़ना है तोइतने इन प्रश्नों का चिंतन करो।
इस लेख को अधिक से अधिक अपने मित्रों, रिश्तेदारों और शुभचिंतकों को भेजें, पूण्य के भागीदार बनें।”
अगर आप अपने जीवन में कोई कमी महसूस कर रहे हैं घर में सुख-शांति नहीं मिल रही है? वैवाहिक जीवन में उथल-पुथल मची हुई है? पढ़ाई में ध्यान नहीं लग रहा है? कोई आपके ऊपर तंत्र मंत्र कर रहा है? आपका परिवार खुश नहीं है? धन व्यर्थ के कार्यों में खर्च हो रहा है? घर में बीमारी का वास हो रहा है? पूजा पाठ में मन नहीं लग रहा है?
अगर आप इस तरह की कोई भी समस्या अपने जीवन में महसूस कर रहे हैं तो एक बार श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज के पास जाएं और आपकी समस्या क्षण भर में खत्म हो जाएगी।
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जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज
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