संत हरिदास जन्मदिवस
भाद्रपद राधा अष्टमी [सितम्बर]पर…कवित्त्व में
शुभकामना देते स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी..
सप्त राग ह्रदय जब उठते है
तब मिट अहं निज जाता है।
मैं कुछ नहीं सब कुछ तू है
मन शांत राग स्वं गाता है।।
संत हरिदास तानसेन त्यागराज
सप्त राग के ये थे ताज।
आत्म राग तक पहुँच थी इनकी
हरि चित्त एक बाजते साज।।
आत्म विरह बन करुणा बादल
बरसे कृपा बन मेघ मल्हार।
विरह अग्नि वेराग्य जगा
जले अंर्त ज्योत राग दीप बहार।।
हरि मिलन माधुर्य बढ़ता
रोम रोम खिलता नव प्रेम।
गा उठता मन मिलन महिमा
सप्त स्वर राग बन तू ले क्षेम।।
निज राग मुक्त मन तल जब पहुँचे
खाली घट प्रेम रस भर जाता।
पी रस डूब प्राण प्रिय बन
जोग भैरवी ललित मारवा गाता।।
हरि मैं जीव एक रूप है सारे
तन बदल बदल वो जीता एक।
कीट पतंग जल थल सब जंतु
सप्त स्वर राग बस मैं तू एक।।
कण कण देख उन्हें संग हर्षा
लय ताल खुद उन संग दर्शा।
होकर मुग्ध मन मयुरी नाचे
चौसठ कला नवमय राग वर्षा।।
हरि आत्मा दास है प्रेमी
यो रागे मिल बन दोनों हरिदास।
प्रेम चरम प्रेमिक बनो बिन अहं
सार यही प्रेम राग आत्मरास।।
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रचित- श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येंद्र जी महाराज
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः