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पितृपक्ष यानि “श्राद्ध’उपासना” (भाग एक) का सच्चा रहस्य-बता रहे है- श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येंद्र जी महाराज

 

 

 

 

“पित्रों को मनाने का समय! पितृपक्ष यानि श्राद्ध 24 सितंबर 2018 सोमवार से शुरू हो रहा है। यह 8 अक्टूबर 2018 सोमवार तक रहेगा, पितृपक्ष के दौरान लोग अपने पूर्वजों का तर्पण कराते हैं और उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं। ऐसी मान्यता है कि जो लोग पितृ पक्ष में पूर्वजों का तर्पण नहीं कराते, उन्हें पितृदोष लगता है। इससे मुक्ति पाने का सबसे आसान उपाय पितरों का श्राद्ध कराना है। श्राद्ध करने के बाद ही पितृदोष से मुक्ति मिलती है।”

 

 

श्राद्ध क्या है और क्या है इसका महत्त्व, श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज इसको विस्तारपूर्वक बता रहे हैं।

 

आओ..पहले इस विषय पर कुछ मान्यताओं और उस पर उठे तर्क पूर्ण प्रश्नों को जाने,तब ये गम्भीर और रहस्य भरा ज्ञान समझ आएगा। कि प्राचीनकाल से आज तक सभी सनातनी यानि हिन्दू धर्म और उससे जुडी अन्य धर्म शाखाएं के लगभग सभी लोग अपने मृत परिजनों की आत्मशांति तथा मुक्ति और अच्छे उच्च कुल में पुनर्जन्म लेने के लिए और अपने दैविक कृपा प्राप्ति के लिए श्राद्ध करते है। और ऐसा बहुत लोग नही करते व् ना ही पितरों की मृत्यु और उनके मुक्ति आदि के कर्मकांड को लेकर मान्यताओं को भी नहीं मानते है।

तब प्रश्न ये है की- ये पितृपक्ष या श्राद्ध क्या है? क्या पितृ इन दिनों में पितृलोक से हमारे पास अपना भोग फल ग्रहण करने के लिए आते है? क्या वे मृत मनुष्य व् अन्य योनियो में जन्म नही लेते है? अथवा वे प्रत्यक्ष शरीर से जन्म लेने के बाद भी अपने प्रत्यक्ष शरीर को त्याग कर, अपने पूर्व परिजनों यानि हमारे पास कैसे आ जाते है? मृतक मृत्यु के कितने समय बाद जन्म ले लेता है? आदि ज्ञान को बताये?

अब उत्तर ये है की-पहले तो ये ज्ञान निश्चित है कि– जो मनुष्य मर गया वो अपने प्रत्यक्ष कर्मो के आधार पर इसी धरती पर प्रत्यक्ष जन्म ले लेता है। वो भी 14 से 15 वे दिन में जिस भी योनि में अपने कर्मानुसार जन्म ले लेता है। 13 दिन की यात्रा करके वो मृत आत्मा अपने क्रमानुसार अन्य प्रत्यक्ष गर्भ में 14 वे दिन में प्रवेश करती है। और 15 वे दिन वो अपना नवजीवन की विकास प्रक्रिया में बद्ध यानि बंध हो जाती है। यो ही हम लोग उस मृतक की 13 तेरहवी मनाते है। और जो भी परिजन अपने मृत पितृ को जप ध्यान की शक्ति देना चाहे,वो उस मृत आत्मा को प्रदान की जा सकती है।यानि वो इन तेरह दिनों में ही ज्यादा से ज्यादा प्राप्त हो पाती है। क्योकि वो मृत आत्मा इन 13 दिनों में अपने सूक्ष्म शरीर में चैतन्य व् जाग्रत होती, आगामी जन्म यात्रा करती है। यो वो आपके द्धारा किये तप जप आदि को सहज ही ग्रहण कर लेती है। यो इन 13 दिनों में अपने उस पितृ को अधिक से अधिक जप यज्ञ आदि के द्धारा अपनी शुभ सङ्कल्प शक्ति को, उसकी आगामी उच्चतम जन्म ग्रहण करने की यात्रा में साहयता प्रदान करती है। जिसने इस पृथ्वी पर जन्म ले कर जो भी शुभ अशुभ कर्म किये है। वो इसी पृथ्वी यानि कर्मभूमि पर ही पुनः आकर यही अपने शेष व् आगामी कर्मो और उसके परिणामो को भोगेगा। और जिनके साथ वो कर्म किये है, उनकी संगत में ही उन्हें भोगेगा। अतः ऊपर कोई स्वर्ग या नर्क नही है। क्योकि अगर ऊपर जाकर अपने कर्मो का फल भोगेगा। तो नीचे इस पृथ्वी पर क्या करने आता है? क्रिया की प्रतिक्रिया नियम से भी उसी स्थान पर या उस स्थान के सातवे भाग अर्थात यही आकर प्रत्यक्ष सामने मिलेगी, ये निश्चित सिद्धांत है। तो कैसे स्वर्ग या नर्क में उसे कर्म व् फल मिलेगा? और मानो वहाँ मिला भी तो, क्या और कैसा कर्म अब शेष भी रह गया?, जिसके फलस्वरुप वो आत्मा वापस इस भूमि पर पुनःजन्म लेने आती है। जब उस मृत आत्मा ने अपना पूण्य या पाप कर्म का फल स्वर्ग या नर्क में रहकर वहीँ भोग लिया है। तो यहाँ आने के लिए अब कोन सा कर्म शेष रह गया? की- उस कर्म के बल से वो वापस धरती पर जीवन लेने आ गया? जब कोई कर्म व् फल शेष नही रहेगा, तो वो मृत आत्मा पुनः वापस आ ही नही सकती है। अतः सब कर्म और कर्मो का फल यही इस कर्म भूमि पर ही प्राप्त होता है। तभी इस पृथ्वी को कर्म भूमि ओर भोगभूमि कहते है। आत्मा मनुष्य शरीर अपनी अतृप्त इच्छा यानि मन के कारण धारण करती है। और मन को चन्द्रमा की 16 कलाओ के रूप में बाटा गया है-जैसे- 1 से 13 कलाये तो चरम मानी है। और 14 व् 15 वी कलाये पूर्णत्व में स्थापित होने या पूर्णत्व में समाहित होने को मानी है। व् 16 वी कला परावस्था या अवस्थातित मानी है, की- इसके उपरांत जीव नव जीवन में एक एक कला से अपना नव विकास प्राप्त करता है। अंड सो ब्रह्मांड यानि जो अंदर है-वहीँ बाहर है,जो प्रकर्ति या ब्रह्मांड में है,ठीक वही हमारे शरीर और अंदर घटता है- ये निश्चित सिद्धांत है।अतः मृतक इस 16 वीं कलाओ के रूप में जीवन चक्र पूर्ण करता है। और अब हम पितृपक्ष का सिद्धांत समझते है, की- पितृपक्ष वर्ष के 9 वें से 10 वें माह में आता है। नो संख्या सम्पूर्ण है। इसके उपरांत पुनः एक से संख्या का प्रारम्भ होता है। और अंत में 12 संख्या तक इस पृथ्वी पर जीवन और उसके लालन पालन यानि सृष्टि के लिए उपयोगी है। इसके उपरांत 13 वी कला से लय की प्रक्रिया प्रारम्भ होती है। व् 14 व् 15 वी कला संख्या प्रलय में प्रवेश करती है।और फिर 16 वी कला संख्या में प्रावस्था से पुनः प्रलय से नवीन जीव यानि मनुष्य सृष्टि की उत्पत्ति होती है। यो अनेक लोगो ने इन 14 वीं और 15 वीं व् 16 वीं कला या संख्या को तीन लोको में बदल दिया की- ये 14 वी ब्रह्मा लोक (तमगुण) व् 15वी विष्णु लोक (रज) व् 16वी शिव(सतगुण) लोक में आत्मा अपने कर्मो के अनुसार पाप या पूण्य कर्म व् फल पाती है। और इन्ही त्रिगुण संख्यात्मक लोको को निम्न और मध्य तथा उच्च लोको की क्रम श्रेणी में रख कर,इनमें से दो लोक तो मनुष्य के कर्म व् फलो को देने हेतु बना लिए जो स्वर्ग ओर नर्क कहे जाते है। व् शेष तीसरा लोक मनुष्य या जीव के कर्म फल प्राप्ति के बाद नवजीवन प्राप्ति के लिए की- यहाँ से ही अब मनुष्य आगामी जन्म धारण करेगा।यानि वहाँ आगामी जन्मों के इंतजार में बेठी आत्माओ का लोक ही ये पितृलोक माना गया है, की- अब इन पितरो को उनके जीवन्त परिजनों के द्धारा किये गए धार्मिक कर्मकांडो के बल से इन इंतजार कर रही आत्माओ को नवीन जन्म की- निम्न तथा मध्य व् उच्च योनि में जन्म प्राप्त होगा। ये ज्ञान मान्यता के आधार पर संसार में अपने पितरो को अधिक से अधिक तप सेवा दान करने कराने का प्रचलन प्रारम्भ हुआ। जो समयानुसार कर्मकांडो के विभिन्न विभत्सव रूप में लूट ठगी में बदल गया है। जबकि वर्ष के ये पितृपक्ष का 9 वा माह मनुष्य जीवन के प्रारम्भ से पूर्ण और पूर्ण से प्रलय यानि मृत्यु के समावेश का काल होने से ही, पितृपक्ष के लिए हमारी सेवा तप दान करने का काल समय माना है। अतः इस समय में अपने पितृ को स्मरण करके जो भी शुभ मंत्र या शुभ भावना का ध्यान से संचार किया जाता है। वो उस मृत आत्मा- जो की इस संसार में समय अनुसार जन्म ले चुकी है। और हमसे जुड़े कर्मो के अनुसार ही वो अन्य योनियो में या मनुष्य योनि में जन्म ले कर हमारे आसपास ही छोटे बड़े रूप में मित्र या शत्रु रूप में स्थित होती है, और उसको हमारी भेजी शुभ अशुभ भावना की प्राप्ति होती है।इसे सामन्य उदाहरण से हम ऐसे समझ सकते है, की-आजकल चल रहे मोबाईल में आपको अपने परिचित को अपना कोई सन्देश भेजना है। परन्तु आपको पता नही है की- वो कहां पर है? तो बस आप केवल अपना सन्देश उसके नम्बर पर भेज दे, स्वयं ही वो सन्देश उसके मोबाईल पर पहुँच जायेगा,वो जब समयानुसार उसे देख पढ़ लेगा। ठीक यही सिद्धांत इस पितृपक्ष में की गयी ध्यान साधना रूपी शुभ शक्ति सन्देश के भेजने को माने वेसे जो साधक जन अपने गुरु मंत्र का नियमित जप ध्यान करते रहते है। वो स्वयं ही साधना के समय अपने पितृ को स्मरण करने पर नियमित शुभ शक्ति सन्देश भेजते रहते है। और आपके पितृ नियमित उस शुभ शक्ति भावना सन्देश को प्राप्त कर आपके प्रति इसी जन्म में आपके शुभ हितेषी मित्र साहयक बन कर आपको अनेक जगह आपकी साहयता करते रहते है, जिसका हमे पता भी नही चलता है। और ध्यान देने पर आप स्वयं देखेंगे की- जाने अनजाने एक अंजान व्यक्ति ने आपकी परेशानी में अचानक आपकी साहयता कर दी है। यही तो है पितृ साहयता।जो लोग ये भ्रम करते है की- उनके पितृ किसी ने बांध या बंधवा रखे है। वो भी उस अज्ञान में छिपे इस सत्य को समझे की- पितरो को बाँधने का अर्थ है की- आपने अपने पितरो के लिए कुछ शुभ नही किया है। और आपके स्वप्नों में वे आकर जो कुछ माँगते आदि है, वो आपका उनके प्रति किया जाना अंजाना अशुभ विचार व् व्यवहार है। जो मृत्यु के बाद भी उनके भी और आपके अपने अंदर भी, उनके प्रति किये बुरे व्यवहार का छिपा स्वप्न रूपी बुरा परिणाम है। अतः इसका एक मात्र उपाय है- जो आपके पास गुरु मंत्र है या नही है, तो पहले गुरु मंत्र अवश्य ले। अथवा कोई भी पवित्र मंत्र का जप अपने पितरो को ध्यान करके नियमित इन पित्रपक्ष व् अन्य समय में भी करते रहे, तो शीघ्र आपको अनेक रूप में शुभ लाभ होगा। क्योकि जो प्रेम आपको अपने पितरो से होगा, वो पंडित या कर्मकांडी को नही होगा। पंडित के द्धारा किया यज्ञ तप जप का बहुत कम अंश व् बहुत कम शुभ सङ्कल्प आपके पितरो को पहुँचेगा।क्योकि उसकी चित्त की एकाग्रता आपके अपने पितरों के प्रेम समान नहीं हो सकती। अतः शुभ परिणाम चाहते है, तो स्वयं महनत व् तप जप करे।और जो महनत नही करना चाहते है व् अपने पितरो से प्रेम नही करते है। वही पंडितो को धन देकर अपना पीछा छुड़ा लेते है।की पंडित शुद्ध मंत्र उच्चारण व् सही कर्मकांड से पितरों को शांति व् मोक्ष दे दिला देगा। जबकि आप भी अगर पण्डित से मंत्र जप करा रहे है। तो पण्डित के साथ ही जप ध्यान अवश्य करे। तभी सही लाभ प्राप्त होगा अन्यथा नही होगा।

इस सम्बंधित शेष ज्ञान की- हमें स्वप्न में पितरों के दिखने के विभिन्न अर्थों और उससे सम्बंधित सहज सरल उपाय क्या है? वो (भाग-2) में बताऊंगा।ताकि आप अपने पितरों को शक्ति देकर उनसे कैसे भौतिक और आध्यात्मिक लाभ उठाये….इस लेख को बारबार पढ़ने पर अच्छे से पितृ पक्ष रहस्य समझ आ जायेगा और आप अपने पितरों को सही सदगति दिला सभी सुख पाएंगे।यही पितरों के प्रति ज्ञान भक्ति श्रद्धा ही श्राद्ध करना कहलाती है।

 

 

इस लेख को अधिक से अधिक अपने मित्रों, रिश्तेदारों और शुभचिंतकों को भेजें, पूण्य के भागीदार बनें।”

अगर आप अपने जीवन में कोई कमी महसूस कर रहे हैं घर में सुख-शांति नहीं मिल रही है? वैवाहिक जीवन में उथल-पुथल मची हुई है? पढ़ाई में ध्यान नहीं लग रहा है? कोई आपके ऊपर तंत्र मंत्र कर रहा है? आपका परिवार खुश नहीं है? धन व्यर्थ के कार्यों में खर्च हो रहा है? घर में बीमारी का वास हो रहा है? पूजा पाठ में मन नहीं लग रहा है?
अगर आप इस तरह की कोई भी समस्या अपने जीवन में महसूस कर रहे हैं तो एक बार श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज के पास जाएं और आपकी समस्या क्षण भर में खत्म हो जाएगी।
माता पूर्णिमाँ देवी की चमत्कारी प्रतिमा या बीज मंत्र मंगाने के लिए, श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज से जुड़ने के लिए या किसी प्रकार की सलाह के लिए संपर्क करें +918923316611

ज्ञान लाभ के लिए श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज के यूटीयूब

https://www.youtube.com/channel/UCOKliI3Eh_7RF1LPpzg7ghA से तुरंत जुड़े

 

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श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येंद्र जी महाराज

जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः

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