सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाने व खड़ा होने को अनिवार्य बनाने को लेकर बैकफुट पर आई सरकार ने सुप्रीमकोर्ट में एक हलफनामा दाखिल करके कहा है कि सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाने और उस दौरान दर्शकों के खड़े होने को अनिवार्य न बनाया जाए। सरकार ने हलफनामा दायर कर यह भी कहा कि राष्ट्रगान बजाने का तरीका क्या हो, इस पर अंतर गठित समिति विचार कर रही है। जब तक समिति कोई निर्णय नहीं ले लेती, तब तक शीर्ष अदालत को 30 नवंबर, 2016 से पहले वाली स्थिति बहाल कर देनी चाहिए।
गौरतलब है कि 30 नवंबर, 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश पारित कर देशभर के सिनेमाघरों में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य कर दिया था। केंद्र सरकार का यह रुख पहले के रुख से साफ उलट है। उस वक्त सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का समर्थन किया था। सरकार की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल ने कहा था कि भारत विविधताओं का देश है और सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाना देश में एकरूपता लाने का एक जरिया है।
गत 23 अक्टूबर को हुई पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश में बदलाव के संकेत दिए थे। कोर्ट ने कहा था कि सिनेमाघरों में राष्ट्रगान न गाने और उस दौरान खड़े न होना राष्ट्रविरोधी नहीं है। किसी को भी देशभक्ति का प्रमाण देने के लिए बाजू में पट्टा लगाकर घूमने की जरूरत नहीं है। लिहाजा सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था कि ‘अगर उसे लगता है कि राष्ट्रगान के वक्त सभी व्यक्तियों को खड़ा होना चाहिए तो वह क्यों नहीं कानून बनाती है। क्यों नहीं वह खुद ही नेशनल फ्लैग कोड में संशोधन करती है। आखिरकार सरकार न्यायालय के कंधे पर रखकर गोली क्यों चलाना चाहती है।’
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को इस पर विचार करने के लिए कहा था। सुप्रीम कोर्ट से मांगे गए जवाब पर सरकार ने कहा है कि समिति इससे संबंधित तमाम पहलुओं पर विस्तृत परीक्षण करने के बाद छह महीने में अपनी सिफारिश दे देगी।
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