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यूपीए की सरकार में ही नहीं बल्कि एनडीए की सरकार में भी मिलती है ईमानदारी की सज़ा, यकीन ना आये तो पढ़िए ये रिपोर्ट

 

 

 

यूपीए सरकार में कई बड़े अफसरों के तबादले और सस्पेंशन उन अफसरों की ईमानदारी की वजह बना और इसी के कारण या तो उनको उनके पदों से हटाकर होल्ड पर रख दिया गया, सस्पेंड कर दिया गया, या उनका तबादला किसी दूसरे डिपार्टमेंट में कर दिया गया।
भाजपा की सरकार आने के बाद ईमानदार अफसरों की आस बंधी थी लेकिन वो भी धराशायी हो गयी।

पिछले लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी ने भ्रष्टाचार को प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाया ‌था, अपनी तमाम चुनावी सभाओं में मोदी यूपीए सरकार के कार्यकाल में हुए भ्रष्टाचार को लेकर कांग्रेस पर प्रहार करते रहे थे।

ऐसे में यह माना गया था कि केंद्र में भाजपा सरकार आने के बाद सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ पुख्ता कदम उठाएगी और ईमानदार अधिकारियों का संरक्षण किया जाएगा। लेकिन राजनीति की तासीर कुछ ऐसी होती है कि सत्ता में आते ही यह अपना चाल चरित्र और चेहरा बदलने लगती है।

 

 

 

इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भाजपा राज में भी ईमानदार अधिकारियों का कोई पुरसेहाल नहीं है। केंद्र ही नहीं भाजपा शासित राज्यों में भी ईमानदार अधिकारियों को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। आइए आपको रूबरू कराते हैं ऐसे ही पांच अधिकारियों से जो यूपीए के बाद भाजपा राज में भी अपनी ईमानदारी की सजा भुगत रहे हैं।
👉ताजा मामला उत्तराखंड के कुमाऊ मंडल के कमिश्नर सैंथियल पांडियन का है। ईमानदार अधिकारी माने जाने वाले सैंथियन इन दिनों उत्तराखंड की भाजपा सरकार और केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गड़करी की आंखों की किरकिरी बने हुए हैं। प्रदेश सरकार ने हाल ही में उनका तबादला कर दिया है। और इस तबादले की वजह बना है 300 करोड़ का हाइवे घोटाला।

सैंथियन द्वारा हाइवे के लिए भूमि अधिग्रहण के दौरान दिए गए मुआवजे में 300 करोड़ के घोटाले का खुलासा करने के बाद ही प्रदेश सरकार ने यह मामला सीबीआई को सौंपने का फैसला किया था। लेकिन इसी बीच सैंथियन का तबादला कर दिया गया।

बताया जा रहा है कि इस घोटाले में हाइवे का‌ निर्माण करने वाली संस्‍था NHAI के कई अधिकारियों का नाम आने के बाद केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गड़करी नाराज चल रहे थे, वहीं एनएचआईए के चेयरमैन ने भी गड़करी और प्रदेश सरकार को पत्र लिखकर इस पर नाराजगी जताई थी। नतीजा ये हुआ कि इतना बड़ा घोटाला सामने आने के बाद जहां दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई होनी चाहिए थी वहीं उनकी जगह सैंथियन को ही बलि का बकरा बना दिया गया।
ईमानदारी की सजा ट्रांसफर के रूप में भुगतते हैं अशोक कुमार खेमका

👉 हरियाणा के चर्चित आईएएस अधिकारी अशोक कुमार खेमका मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा की सरकार में कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा और रियल एस्टेट कंपनी डीएलएफ के बीच हुए 58 करोड़ रुपये के जमीन सौदे को रद करने के बाद अचानक चर्चाओं में आ गए थे।

उस समय खेमका प्रदेश के स्टांप आयुक्त थे। इसके तुरंत बाद ही प्रदेश सरकार ने अशोक खेमका को हटाकर दूसरी जगह भेज दिया था। 20 साल की नौकरी में 40 से ज्यादा ट्रांसफर झेलने वाले खेमका के दुर्दिन प्रदेश में भाजपा की सरकार आने के बाद भी जारी रहे।

मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट‍्टर की सरकार में जब खेमका को परिवहन आयुक्त की जिम्मेदारी दी गई तो उन्होंने डग्गामार बसों पर अपना डंडा चला दिया। नतीजा फिर वही रहा कि उनकी पद से छुट्टी कर दूसरे विभाग में भेज दिया गया। हाल ही में उन्हें सूबे के राई स्पोर्ट्स स्कूल घोटाले की जांच सौंपी गई थी, लेकिन इससे पहले की वह जांच शुरू करते खेमका के सख्त स्वभाव से डरी सरकार ने इस जांच का जिम्मा उनसे छीन लिया।
ईमानदारी के लिए चर्चित संजीव चतुर्वेदी को केंद्र ने दी जीरो रेटिंग

👉 एम्स के मुख्य सतर्कता अधिकारी संजीव चतुर्वेदी को उनकी इमानदारी के लिए जाना जाता है। देश के सबसे बड़े स्वास्‍थ्य संस्‍थान एम्स में कई अनियमितताओं का खुलासा कर देशभर में प्रसिद्ध हुए संजीव चतुर्वेदी पूर्व की यूपीए सरकार के लिए मुसीबत बने रहे।

केंद्र में मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार आई तो माना गया था कि चतुर्वेदी की ईमानदारी और काबिलियत देखते हुए सरकार भारतीय वन सेवा के अधिकारी को कोई महत्वूर्ण जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। लेकिन हुआ इसके बिल्कुल उलट। केंद्र में भाजपा सरकार आने के बाद से ही संजीव चतुर्वेदी को साइड लाइन कर दिया गया। उन्होंने इसकी शिकायत भी कि उन्हें कोई काम नहीं सौंपा जा रहा है और जानबूझकर उनका शोषण किया जा रहा है।

दिल्‍ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने चतुर्वेदी को अपना ओएसडी बनाने के लिए केंद्र सरकार से उन्हें रिलीव करने की मांग की लेकिन उसे भी अनसुना कर दिया गया। कमाल तो तब हुआ जब केंद्र सरकार की प्रशासनिक अधिकारियों को दी जाने वाली सालाना रेटिंग में संजीव चतुर्वेदी को जीरो रेटिंग दी गई जबकि उस कार्यकाल के दौरान केंद्र सरकार ने ही चतुर्वेदी के काम की काफी तारीफ की थी।

इसी काम के लिए उन्हें मैग्सेसे सम्मान से भी सम्मानित किया गया। आईबी ने भी उन्हें अपनी जांच में ईमानदार अधिकारी बताया था। बरहाल आज भी चतुर्वेदी खुद के लिए कोई अच्छी भूमिका मिलने का इंतजार कर रहे हैं।
ईमानदार होने की सजा भुगत रहे हैं अमिताभ ठाकुर

👉 यूपी के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर उस समय अचानक सुर्खियों में आ गए थे जब उन्होंने सपा मुखिया मुलायम सिंह का धमकी देने वाला टेप वायरल कर दिया था। इसके बाद तत्कालीन सपा सरकार ने उन पर लापरवाही और अनुशासनहीनता का आरोप लगाते हुए ‌उन्हें निलंबित कर दिया था। लंबे समय तक निलंबित रहने के बाद ठाकुर कोर्ट और कैट के आदेश के बाद दोबारा बहाल हुए थे।

हालांकि सपा सरकार में उन्हें कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं दी गई और उन्हें लगातार साईडलाइन रखा गया। यूपी में भाजपा सरकार आई तो माना जा रहा था कि अमिताभ ठाकुर की ईमानदारी और योग्यता को देखते हुए उन्हें कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जा सकती है।

हालांकि ऐसा हुआ नहीं, और पिछले दो माह में तमाम अधिकारियों के तबादले के बाद भी ठाकुर के हिस्से में कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी नहीं आई आज भी वह साइड लाइन ही हैं। हालांकि इसकी बड़ी वजह आज भी अमिताभ ठाकुर की ईमानदारी और बेबाक कार्यशैली ही मानी ज रही है जो सरकारों की गलतियों पर सवाल करने से नहीं चूकते।
👉 छत्तीसगढ़ में आदिवासियों पर अत्याचारों के कई मामले सामने आते रहे हैं, सरकार के अधिकारियों और पुलिस पर भी ऐसे ही आरोप लगते रहे हैं लेकिन जब यही सवाल सरकार का कोई नुमाइंदा करे तो बात गंभीर हो जाती है।

कुछ ऐसा ही मामला सामने आया जब रायपुर की केंद्रीय जेल की डिप्टी जेलर वर्षा डोंगरे ने अपनी एक फेसबुक पोस्ट में जेल में आदिवासी महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों का काला चिट्ठा सबके सामने खोलकर रख दिया। जिसके बाद सरकार और तमाम छत्‍तीसगढ़ प्रशासन सवालों के घेरे में आ गया।

लेकिन आश्चर्यजनक रूप से वर्षा के आरोपों पर जांच करवाने के बजाय सरकार ने उन्हें ही निलंबित कर दिया। वर्षा पर तमाम आरोप लगाए गए और उन पर जांच बैठा दी गई। बहरहाल वर्षा अब इस मामले को लेकर कोर्ट पहुंच गई हैं।
ऐसे बहुत से अधिकारी कर्मचारी हैं जो आवाज उठाने के कारण सज़ा झेल रहे हैं, कुछ सामने आ गए कुछ को तो कुछ चुप हो गए। कुछ को ईमानदारी की सज़ा अपनी मौत से चुकानी पड़ी, तो किसी को चुप करा दिया गया।
सरकारें बदलती जाएँगी लेकिन सोच को बदलना काफी मुश्किल है।


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