सिर्फ नज़रिए की बात है ,खुशियां आपके दरवाजे पर दस्तक दे रही हैं अपने मन का दरवाजा खोलो और उन खुशियों को पहचानों।
मन की स्वतंत्रता को हम तभी महसूस करेंगे जब हमारे ऊपर कोई अनावश्यक दबाव ना हो… हम गुलामी व दास मानसिकता से मुक्त हों… हमारे चारों ओर पशु पक्षी जीव जंतु मुक्त भाव से विचरण करते हैं… पर यहां सृष्टि ऐसा कभी नहीं होने देती है जिसके भी हाथ में ताकत आई उसने अपने आश्रितों के पैरों में गुलामी की बेड़ियां डाल दी… हर बड़ा ताकतवर छोटे को खाने लगा एक असुरक्षा की भावना में जीवन चक्र यू ही घूमता रहा .. हिरण यह सोच-सोच कर तेज दौड़ता है ताकि शेर उसे खा ना जाएं और शेर यह सोचकर रोज तेज दौड़ता है कि वह भूखा ना रह जाए….. और इसी सोच में हम भी पीछे रह गए हमें खुद को लगने लग गया कि शेर आ गया लेकिन शेर था ही नहीं हम सिर्फ डर रहे थे, डर भी सिर्फ अंजान चीजों से। डर जरुरी है परंतु अनावश्यक नहीं, हर वक़्त नहीं।
अपने डर पर काबू पाकर आप सिर्फ कदम बढ़ाने की जरुरत है, चुनौतियाँ हर कदम ओर हैं। जिसने डर पर काबू पाया वो दुनिया की सबसे ऊँचें शिखर पर पहुँच गया, दुनिया का सबसे बड़ा दरिया पर किया। ऐसे बहुत सारे उदाहरण है किन्तु इन सबके लिए अपने को मजबूत बनाने की जरूरत होती है, अपनी सोच को अच्छा बनाने की जरुरत होती है।
एक छोटी सी बात आपके जीवन में उजाला भर सकती है, छोटी छोटी चीजें आपके जीवन को सुखमय बना सकती हैं। सिर्फ सोचने का नज़रिया है, अगर कोई सही सोचें तो वो सही होगा और सही बात को भी गलत मानकर चल लें या सही में भी गलत खोजें तो उसको स्वयं भगवान भी आकार सही नहीं कर सकते और ना ही ऐसे व्यक्ति के जीवन में कभी खुशियां आ सकती हैं।
ऐसी ही एक छोटे बच्चे की कहानी है हो सकता है ये कहानी आपके जीवन में रंग भर दे:-
एक छोटा सा बच्चा अपने दोनों हाथों में एक एक एप्पल लेकर खड़ा था
उसके पापा ने मुस्कराते हुए कहा कि
“बेटा एक एप्पल मुझे दे दो”
इतना सुनते ही उस बच्चे ने एक एप्पल को दांतो से कुतर लिया.
उसके पापा कुछ बोल पाते उसके पहले ही उसने अपने दूसरे एप्पल को भी दांतों से कुतर लिया
अपने छोटे से बेटे की इस हरकत को देखकर बाप ठगा सा रह गया और उसके चेहरे पर मुस्कान गायब हो गई थी…
तभी उसके बेटे ने अपने नन्हे हाथ आगे की ओर बढाते हुए पापा को कहा….
“पापा ये लो.. ये वाला ज्यादा मीठा है.
शायद हम कभी कभी पूरी बात जाने बिना निष्कर्ष पर पहुंच जाते हैं..
किसी ने क्या खूब लिखा है:
नजर का आपरेशन
तो सम्भव है,
पर नजरिये का नही..!!!
फर्क सिर्फ सोच का
होता है…..
वरना , वही सीढ़ियां ऊपर भी जाती है ,और निचे भी आती है
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माँ प्रभा किरण
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