सम्पूर्ण विश्वभर में 4 जनवरी को अंतरराष्ट्रीय ब्रेल दिवस मनाया जाता है।हर वर्ष विश्व ब्रेल दिवस 04 जनवरी को लुई ब्रेल के जन्मदिन के स्मरणोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, नेत्र रोगों की पहचान, रोकथाम और उनके पुनर्वास विषय पर सरकारी गरसरकारी संस्थानों द्धारा अनेक सार्वजनिक गोष्ठियां होती है।
संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार विश्व भर में करीब 39 मिलियन लोग देख नहीं सकते है, जबकि 253 मिलियन लोगों में कोई न कोई दृष्टि विकार है।विश्व ब्रेल दिवस का मुख्य उद्देश्य दृष्टि-बाधित लोगों के अधिकारो को उन्हें प्रदान करना और ब्रेल लिपि को उनके जीवन मे ज्ञान उपयोगी बनाकर बढ़ावा देना है।
ब्रेल दिवस ओर लिपि का उद्देश्य:-
विश्व ब्रेल दिवस को संचार के उत्तम साधन के रूप में ब्रेल लिपि पद्धति के महत्व के बारे में जागरूकता फैलाने हेतु मनाया जाता है।विश्वभर में 4 जनवरी 2019 को पहला अंतरराष्ट्रीय ब्रेल दिवस मनाया गया था।संयुक्त राष्ट्र महासभा ने विश्व ब्रेल दिवस के लिए 06 नवम्बर 2018 को प्रस्ताव पारित किया था।
ब्रेल लिपि क्या है?
ब्रेल एक लेखन पद्धति है। यह नेत्रहीन लुईस ब्रेल द्धारा अपने ओर नेत्रहीन व्यक्तियों के लिए सृजित की गई थी।ब्रेल एक स्पर्शनीय लेखन प्रणाली है।इसे एक विशेष प्रकार के उभरे कागज़ पर लिखा जाता है।चूंकि इसकी संरचना फ्रांसीसी नेत्रहीन शिक्षक और भाषा आविष्कारक लुइस ब्रेल ने की थी तो इन्हीं के नाम पर इस पद्धति का नाम ब्रेल लिपि रखा गया है।
ओर इसी ब्रेल लिपि दिवस पर इसके अविष्कार के संघर्ष भरे जीवन से मिलने वाले ज्ञान को दर्शाती कविता के माध्यम से स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी इस प्रकार से कहते है कि,
ब्रेल दिवस 4 दिसंबर पर कविता
आज जन्मदिवस लुई ब्रेल है
जिनका जीवन सीख भरा।
पांच वर्ष की अल्पायु में
दृष्टिहीन हो अंधकार भरा।।
फ्रांस देश के कुप्रे गांव जन्में
वहीं उन जीवन अंत हुआ।
केवल पैतालीस वर्षायु जी
रँगभरे जीवन छः बिन्दुओं से छुआ।।
बल्य खेल में चोट लगी
ओर खोयी दोनों आंखें।
आत्मविश्वास कभी न खोया
ओर ज्ञान पिपासा ले जग झांकें।।
वैलेंटाइन पादरी शिष्य ये
उन सहायता पा आगे बढ़े।
नेत्रहीन विद्यालय ले शिक्षा
अंध सीढ़ी से नवजीवन चढ़े।।
चार्ल्स बार्बर की कूटलिपि को
देख समझ आया नवज्ञान।
उसमें संशोधन कर बनाई
नवीन लिपि नेत्रहीन संज्ञान।।
आठ साल नवलिपि को परखा
छः बिंदुओं पर इसे सम्पूर्ण किया।
ओर नेत्रहीनों को प्रशिक्षण देकर
मान्यता दिलाने को संघर्ष किया।।
जीते जी नहीं मिली मान्यता
मिला सैन्य कूटनीति भाषा रूप।
शिक्षाविदों ने महत्त्व न देकर
ध्यान दिया न इस लिपि अनूप।।
लुईस ब्रेल अल्पायु मर गए
पर लिपि चल उठी नेत्रहीनों बीच।
जान गया उपयोगिता सब जग
पर बीत गए सो साल इस बीच।।
तब सरकार समाज समूचे ने
दिया सम्मान इन्हें मृत्युउपरांत।
राष्ट्र ध्वज शोक धुन बजाकर
इन शव को दिया पुनः राष्टकान्त।।
चार दिसंबर राष्ट्र दिवस कर घोषित
डाक टिकट किया जारी।
ब्रेल लिपि उजित नेत्रहीन जगत कर
ब्रेल तुम नमन विश्व सदा आभारी।।
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी
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