Sankashti Chaturthi 2019 संकष्टी चतुर्थी, सकट चौथ,नाम से प्रसिद्ध सभी संकटों को हरने वाली पवित्र कथा इस माघ महीने में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी 24 जनवरी दिन गुरूवार को पड़ रही है,जो गुरुवार के दिन पड़ने से बहुत शुभ है और इस दिन चंद्रोदय का समय रात्रि 08.37 मिनट पर शुभ मुहूर्त हैं।
इस 2019 में पड़ने वाले वर्ष के प्रमुख बड़े व्रत यानि संकष्टी चतुर्थी, सकट चौथ व्रत के पर्व पर विशेषकर उत्तर प्रदेश के सभी क्षेत्रों की लगभग सभी महिलाएं अपने परिवार की सुख और समृद्धि के लिए निर्जल व्रत रखेंगी और गणेश जी की बड़े ही धूमधाम से पूजा करेंगी। जिससे उनके परिवार पर कभी भी किसी तरह की कोई समस्याएं न आए। सकट चौथ को गणेश चतुर्थी, तिलकूट चतुर्थी , संकटा चौथ, तिलकुट चौथ के नाम से भी जाना जाता हैं।
इस व्रत का सत्य अर्थ और महत्त्व:-
सामान्यतया पुत्र की सफलता के लिए सभी महिलाएं रखती हैं ये सकट चौथ व्रत,पर ये अर्थ असत्य है क्योकि पुत्र और पुत्री दोनों ही के लिए ये व्रत किया जाता है,आओ मैं इसकी वेदिक अर्थ भरी सत्य कथा सुनाता हूँ..
एक बार वर्ष के समापन पर पड़ने वाली गुप्त नवरात्रि जिसे मोक्षीय नवरात्रि कहते है,उससे पहले पड़ने वाली चतुर्थी के दिन इस सभी विषय की महिमा जानने के विषय में ब्रह्मा ब्राह्मणी और विष्णु लक्ष्मी और शिव पार्वती अपने मुलावतार भगवान श्री सत्यनारायण और माता सत्यई पूर्णिमां के सत्यलोक में पहुँचे और उन्हें नमन करके बोले की-हे भगवन आप दोनों हमारे माता पिता है,सत्य और उसकी शक्ति सत्यई से हम सब त्रिगुण और उसकी त्रिगुणात्मक शक्तियों सहित समस्त जीव ब्राह्मण जन्मा और उसी में लय है।यो इस सबका लोककल्याण को सत्यार्थ बताये।इस पर मुस्कराती हुये माँ पुर्णिमाँ बोली-मेरी प्यारी संतानो आप सबको मेरे अंश होने से सम्पूर्ण ज्ञान है,फिर भी तुम मेरे मुख से ये सुनना चाहते हो तो-सुनो-की
सभी गण यानि मनुष्य जीव जंतु आदि को गण कहते है और इन सबकी आत्मा को ईश कहते है।अर्थात जो गणों का या गणों की ईश हो वहीं गणेश कहलाता या कहलाती है।यो ये गणेश और गणेशी यानि गणेश..भगवान सत्य जो सनातन पुरुष है उसके स+त+य से तुम तीन गुण हो और गणेशी यानि मैं ॐ यानि मुझसे अ+उ+म से समस्त स्त्री त्रिगुण है,चूँकि इस प्रकार से त्रिगुणों की उत्पत्ति चैत्र माह में होने से और उसका चतुर्थ बार विस्तारीकरण होने से यानि तीन गुणों का चार बार विस्तार होने ही ये चार धर्म-अर्थ-काम-धर्म-मोक्ष यानि जीव के ब्रह्मचर्य यानि शिक्षाकाल जिसमें वो जानता है की-मैं क्यों इस जगत में आया और मैं कौन हूँ और मैं का अर्थ क्या है और काम यानि मैं के दोनों पक्ष स्त्री और पुरुष का आधा आधा रूप का एक होना ही उसका परस्पर गृहस्थी भोग और योग का प्रेम विस्तार काम यानि कर्म है और इस भोग और योग के सन्तुलित कर्म को अपनी संतान को देना उसका वानप्रस्थ धर्म कहलाता है और अब उसे न देना न लेना है,इस सबसे परे रहकर वो अपनी ही आत्मा में ध्यान करता हुआ अपनी आत्मा के परमस्वरूप परमात्मा में स्थिर और स्थित होता है।उसके इसी स्वयं में लीन होने को उसके मैं का मोक्ष कहलाता है।यो इस चारों कर्मो को करना ही चार नवरात्रि यानि नव माने नयापन लिए अपने आने और जाने के अज्ञान यानि अज्ञान माने रात्रि को संशोघित करके शुद्ध आत्म ज्ञान प्राप्त करना ही नवरात्रि अर्थ है।यहाँ इस अज्ञान को संशोधित करने के कर्म को ही क्रिया योग यानि अपना मन्थन करना या ये समस्त प्रकार की पूजा पाठ मंत्र जप तप आदि कर्मकांड करना कहलाता है।यो इस सभी क्रियाओं के नो दिन होते है।यही नो दिन जीव की आत्मा की नो शुद्ध कलाएं ही उसकी नो कला रूप देव यानि पुरुष के नो रूप या देवी यानि स्त्री के नो रूप कहलाते है।और यहीं उनके नो रूप के चार बार ज्ञान प्रकट होने को चतुर्थी यानि चार माह या चार युग से लेकर युगांतर आदि नाम कहते है।यो चैत्र में ये सब प्रेम कर्म प्रकट होते है और चैत्र से युग प्रारम्भ होता है और फिर ज्येष्ठ गर्मियों के अंत में काम यानि ग्रहस्थ नवरात्रि और क्वार में वानप्रस्थ धर्म नवरात्रि और सर्दियों के अंत यानि माघ में मोक्ष कर्म को नवरात्रि पड़ती और मनाई जाती है।यो इन सब नवरात्रि के प्रारम्भ में पड़ने वाले चोथे दिन को चतुर्थी और नवरात्रि के मध्य की अष्टमी और नवमी और इनके अंत की एकादशी और चतुर्दशी और अंत में पूर्णिमां यानि पूर्णत्त्व की प्राप्ति ही मैं का मोक्ष है और उससे पुनः मैं का प्रकट होने से लेकर ही अमावस्या और उसकी चतुर्थी-अष्टमी-नवमी-एकादशी-चतुर्थी और पुनः पूर्णमासी का ज्ञान चक्र है।यो जो इस समय में 1-जप-2- सेवा-3- दान करता है,वो अपने सब कर्मो को शुद्ध करता है।क्योकि जप से बुद्धि मन शुद्ध होकर अपनी एकाग्रता को प्राप्त होता है और उससे वो सभी बौद्धिक बल एश्वर्य को प्राप्त होता है और सेवा से व्यक्ति को उसे समस्त प्रकार के परस्पर सहयोगों की प्राप्ति होती है। उससे उसे सभी प्रकार के प्रेम की प्राप्ति होती है। और दान से उसे सभी प्रकार के धन तन ज्ञान आदि एश्वर्य से लेकर अंत में अपने दिए प्रेम की पूर्णता की पुनः व्रद्धि के साथ प्राप्ति होती है।यो ये जप और सेवा और दान से त्रिगुण दोष शुद्ध होते है।यही सच्ची त्रिदेव या त्रिदेवी की पूजा कहलाती है और चौथा कर्म है मोक्ष यो जो इस तीनो कर्मो को करता है उसे अपनी सभी खोयी हुयी भौतिक से आध्यात्मिक सम्पत्ति की प्राप्ति होती है।अब वो चाहे उसका ब्रह्मचर्य यानि शिक्षा बल हो या उसका काम यानि गृहस्थी बल हो या उसका वानप्रस्थ यानि उसका गुरु ज्ञान बल हो या चौथा उसका अपनी मृत्यु यानि अपने में लय होने की समाधि कला का बल हो।वो सब प्राप्त होता है।यो स्त्री हो या पुरुष उसे ये सब व्रत यानि संकल्प करने चाहिए।यहाँ व्रत का अर्थ है की-मैं आज झूठ नहीं बोलूंगा और आज जो भी आत्मा को पवित्र करने वाले शब्द अर्थ है उन मंत्र का जप और तप करता हुआ अपनी सामर्थ्य अनुसार लोगो की जीवों की सेवा करते हुए जो साहयता बनेगी वेसा दान करूँगा।ये सब कुछ मिलाकर व्रत करना कहलाता है।यो यहीं सभी प्रकार के संकटों और अज्ञानों को हरने यानि शुद्ध करने वाले चार कर्म ही संकट चतुर्थी व्रत कहलाता है। यो इसे जो वर्ष के अंत में माह महीने की चतुर्थी को करता है,उसे इसका खोया धन तन या सन्तति सुख आदि की प्राप्ति होती है।इसी व्रत को जो भी स्त्री या पुरुष अपने अपने गुरु और इष्ट मंत्र के साथ जपता हुआ,और जो भी उससे खाने की वस्तु बने उसको गुरु और इष्ट को भोग लगाकर अन्य लोगो में बांटे तो उसे सभी कुछ प्राप्त होता है।यो जो इन सभी चतुर्थी को हमारे गणेश और गणेशी शक्ति भक्ति के स्वरूप और उनके इस ज्ञान को अपने में धारण करता है,वही हमारे इस सबसे पहले जगत में प्रकट स्वरूप गणेश और गणेशी की उपासना करता और उसका फल पाता है।यो इस कथा का बार बार मनन करना चाहिए।
ये सब विस्तार से सुनकर सभी त्रिदेव और त्रिदेवी प्रसन्न हुए और उन्होंने भगवान सत्यनारायण और भगवती सत्यई के इस गणेश और गणेशी स्वरूप की जिसे महागणेश शक्ति अवतार का चतुर्थी पर ज्ञान अवतरण कहते है,जिसका पहला स्वरूप सत्यनारायण और सत्यई पूर्णिमां के गोद में विराजमान उनके पुत्र अरजं यानि अमोघ और पुत्री हंसी है,और इन्हीं से पुनः पुनः जीव सृष्टि होती है,उसकी जय जयकार करते अपने अपने लोको को लोट गए और अपने पास आने वाले भक्तों को ये सब ज्ञान देकर उन्हें सदमार्ग पर लगते रहे।
1-यो इस चतुर्थी ज्ञान और उसके स्वरूप गणेश और उसकी शक्ति गणेशी को सप्त ऋषियों और उनकी प्रत्नियों ने अपने अपने शिष्यों और शिष्याओं को दिया।
2-यही ज्ञान ब्रह्मऋषि वशिष्ठ और ब्रह्मऋषि विश्वामित्र ने भगवान राम को और महासती अनसूया ने सीता को दिया,जिसे अपना कर वे सुखी हुए।
3-यही ज्ञान वेदव्यास जी ने सूत को और युधिष्ठर को दिया।परिणाम उन्हें राज्य सहित सदगति की प्राप्ति हुयी।
4-यही ज्ञान ब्रह्मर्षि विश्वामित्र ने राजा हरिश्चंद्र को दिया,जिससे उन्हें सत्य की प्राप्ति संग पुनः खोया राज्य व् पुत्र की प्राप्ति हुयी।
5-इसी ज्ञान को संदीपनी मुनि ने और भागवताकार वेदव्यास ने महाभारत उपरांत श्री कृष्ण को दिया जिससे उन्हें सभी शापों से मुक्ति होकर पुनः अपना योग स्वरूप की प्राप्ति और राधा वियोग के शाप से मुक्ति मिली।
6-इसी ज्ञान से अनगिनत भक्तों को अपना खोयी सम्पत्ति और संतान की प्राप्ति हुयी।
7-इसी ज्ञान के श्रवण मनन से अनेक अविवाहित कन्या और युवकों को उनका मनवांछित वर वधु से मनवांछित विवाह की प्राप्ति हुयी।
यो भक्तों इस दिन सभी भक्त अपने पूजाघर में अखण्ड घी की ज्योत जलाये तथा ऊपर दिए सत्य नियमों का पालन करना ही निर्जल व्रत करना होता है यानि जिस प्रकार से शरीर की जल की बड़ी आवश्यकता होती है ठीक उसी प्रकार सेआत्मा की इस सत्य कर्मो की आवश्यकता होती है। और खीर बनाकर पूर्णिमां माता को शाम को व्रत समाप्ति पर भोग लगाकर खाये और दिन में अपने परिचितों और अपने गुरु और बड़े जनों और छोटो को श्रद्धा से तिल और शक्कर से बनी तिल शक्करी और मूंगफली का दान करें।तो सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येंद्र जी महाराज
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
www.satyasmeemission.org