विगत कल मंगलवार को इंदौर में ‘आजतक ‘के “हल्लाबोल “कार्यक्रम के दौरान हुई गुण्डागर्दी ने अनेक असहज प्रश्न खड़े कर दिये हैं। क्या अब देश की राजनीतिक दशा-दिशा गुंडे तय करेंगे? शिक्षित, अति शिक्षित होने का दावा करने वाले राजदलों के नेताओं /प्रवक्ताओं का मीडिया/ सार्वजनिक कार्यक्रमों में समर्थक गुंडों को ले कर जाना उचित है? सभ्यता की सीमा पार कर अपशब्दों का इस्तेमाल और हंगामे के लिए समर्थकों को उकसाना, हिंसक हावभाव, घोर असभ्यता का बेशर्म प्रदर्शन क्यों?
मीडिया आयोजित ऐसी बहसें राजदलों को अपना-अपना पक्ष रखने का अवसर प्रदान करते हैं। बहसों के ऐसे मंच वैचारिक होते हैं, मल-युद्ध के अखाड़े नहीं! लेकिन, इंदौर में क्या हुआ?बहस के दौरान कांग्रेस प्रवक्ता के आरोपों से असहज भाजपा प्रवक्ता डॉ संबित पात्रा ने सभ्यता की सारी सीमा पार कर गुंडेनुमा समर्थकों को मंच पर बुला लिया। मोदी-मोदी का नारा लगाते सड़क छाप उग्र गुंडे कुछ भी कर गुजरने की मुद्रा में तत्पर दिखे। जवाब में कांग्रेस प्रवक्ता राजीव त्यागी ने भी अपने समर्थकों को बुला उनसे भारत माता की जय और वन्देमातरम का नारा लगवाने लगे। अफरा- तफरी का ऐसा माहौल जैसे गुंडों के दो पक्ष आमने-सामने टकरा रहे हों। ऐंकर अंजना ओम कश्यप लाचार ! पुलिस भी बुलाई गयी। लेकिन व्यर्थ!
मुझे लगता है राजीव त्यागी को संबित पात्रा की गुंडई के जवाब मे संयम-शालीनता से काम लेना चाहिए था। पात्रा को बेनकाब होने देते। उनकी बेशर्मी को देश के लोग देख रहे थे।उचित समय पर जनता फैसलाकर देती। गुंडई का जवाब गुंडई से दे आप भी गुंडे बन जाते हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए।
टीवी चैनलों के लिए भी मंथन का अवसर। अनुभवों के पार्श्व में ये सुनिश्चित किया जाये कि बहसों के ऐसे आयोजनों में किसी भी राजदल के समर्थकों को प्रवेश नहीं मिले। सभ्य-शिष्ट दर्शक ही प्रवेश पा सकें। सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध किये जाएं। ऐसे मंच,चुनावी सभा मंच नहीं होते ।घरों में टीवी पर कार्यक्रम देख रहे दर्शक, विभिन्न विषयों पर, राजदलों के विचार जानना चाहते हैं। वे न तो अपशब्द सुनना चाहते हैं, न ही गुंडे बाहुबलियों के दर्शन!
वरिष्ठ पत्रकार एस.एन. विनोद जी की कलम से